न्‍यूज़ एक्‍सप्रेस ने ‘भ्रष्‍ट पत्रकारिता’ का स्टिंग कर दिया और काजल की कोठरी से गंगा नहाकर निकल लिया

अभिषेक श्रीवास्तव

एक चैनल गरीब आदमी को अपने चिटफंडिया जाल का शिकार बनाकर उसकी बचत के पैसे से चलता है और जमा अवधि पूरी होने पर गरीब का पैसा नहीं लौटाता। इसी पैसे से शुरू किया अपना अखबार अचानक बंद कर के सैकड़ों लोगों को सड़क पर ला पटकता है। यह सहारा, न्‍यूज़ एक्‍सप्रेस, पी7, कोई भी हो सकता है। दूसरा चैनल अपनी फ्रेंचाइज़ी बेचता है, गनमाइक बेचता है, ब्‍यूरो ठेके पर रखता है और खबरों के बदले पैसे उगाहता है। यह जनसंदेश, चैनल 1, साधना, कुछ भी हो सकता है।

दोनों तरीके चैनल चलाने के अलहदा आर्थिक मॉडल हैं। दोनों बराबर भ्रष्‍ट हैं। दोनों को एक-दूसरे से तब तक दिक्‍कत नहीं होती जब तक एक रेवेन्‍यू मॉडल दूसरे वाले के फटे में टांग नहीं अड़ाता। गड़बड़ तब होती है जब एक-दूसरे से ही ये चैनल पैसा बनाने लगते हैं। चैनल 1 के न्‍यूज़ एक्‍सप्रेस द्वारा किए गए स्टिंग की कहानी यही है। दरअसल, चैनल 1 चिटफंड से चलने वाले सहारा, न्‍यूज़ एक्‍सप्रेस और सहारा के खिलाफ खबरें चलाता था और इनसे पैसे ऐंठता था। वे सहर्ष उसे पैसे देते भी थे खबरें दबाने के लिए। जब पानी सिर के ऊपर चला गया, तो न्‍यूज़ एक्‍सप्रेस ने ”भ्रष्‍ट पत्रकारिता” का स्टिंग कर दिया और काजल की कोठरी से गंगा नहाकर निकल लिया।

विनोद कापड़ी वही कर रहा है जो उससे बालासाहब भापकर करवा रहा है। अवनी सिन्‍हा वही कर रहा था जो उससे ज़हीर करवा रहा था। फ़र्क बस इतना है कि अवनी सिन्‍हा मार्केटिंग का आदमी था, कापड़ी तथाकथित पत्रकार है। मुझे अफ़सोस है कि इस गोरखधंधे में मेरे कुछ मित्र फंस गए हैं और अपने किए को वे ठसक से पत्रकारिता माने चले जा रहे हैं। उनका ईश्‍वर उन्‍हें भ्रष्‍ट होने से बचाए…

(स्रोत-एफबी)

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