दिल्ली में चार मंजिला राष्ट्रीय मीडिया केंद्र का उदघाटन,24 वर्क स्टेशन

राष्ट्रीय मीडिया सेंटर के बहाने ?

दिल्ली में आज राष्ट्रीय मीडिया सेंटर का उदघाट्न हुआ. उदघाटन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने किया. रायसीना रोड पर 1.95 एकड़ में बने इस सेंटर को वाशिंगटन एवं टोक्यो के मीडिया सेंटर की तर्ज पर बनाया गया है. यह सेंटर नई तकनीकी और सूचना के नए उपकरणों से लैस है. मीडिया सेंटर में प्रेस इन्फर्मेशन ब्यूरो के ऑफिस के साथ और भी कई सारी आधुनिक सुविधा उपलब्ध होंगी. इस चार मंजिला सेंटर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस हॉल है, जिसमें एकसाथ 280 मीडियाकर्मी बैठ सकते हैं. 60 लोगों की क्षमता वाला एक ब्रीफिंग रूम है. इसके अलावा मीडियाकर्मियों के लिए 24 वर्क स्टेशन, एक लाइब्रेरी, मीडिया लाउंज और कैफेटेरिया भी है. मीडिया सेंटर को निर्माण नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉर्पेरेशन ने तीन साल में किया है. 7-E रायसीना रोड में स्थित मीडिया सेंटर राष्ट्रपति भवन से कुछ ही दूरी पर है.

राष्ट्रीय मीडिया केंद्र के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री का भाषण
‘‘सार्वजनिक जीवन में एक ऐतिहासिक अवसर पर उपस्थित होते हुए मुझे अपार प्रसन्नता हो रही है। राष्ट्रीय मीडिया केंद्र का उद्घाटन न केवल देश की ऐतिहासिक उपलब्धि है बल्कि यह हमारी उस क्षमता का भी परिचायक है कि हम विश्वभर में ऐसी अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ बराबरी कर रहे हैं। यह केंद्र हमारे देश में मौजूदा मीडिया भू-परिदृश्य के सशक्त स्वरूप का प्रतीक है। मुझे पूरा विश्वास है कि एक ‘संचार केंद्र’ और ‘एकल खिड़की’ सुविधा के रूप में यह केंद्र हमारे मीडियाकर्मियों, जिनमें से अनेक यहां मौजूद हैं, की जरूरतों को भलीभांति पूरा करेगा।

भारत के मीडिया क्षेत्र का व्यापक विस्तार 1990 के दशक में शुरू हुआ। यह एक संयोग कहा जाएगा कि उस अवधि में देश में शुरू किए गए आर्थिक सुधारों की लहर का लाभ उठाने वाले प्रमुख वर्गों में मीडिया भी शामिल था। बढ़ते आर्थिक क्रियाकलापों ने बेहतर और गहन संचार की आवश्यकताओं को जन्म दिया, जिसके साथ एक वाणिज्यिक पहलू भी जुड़ा हुआ था। संचार व्यवस्था में एक सुखद चक्र की शुरुआत हुई, जिससे प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों ही प्रकार के मीडिया की पहुंच में बढ़ोतरी हुई, नए बाजारों का विकास हुआ, जिसका लाभ निर्माताओं और उपभोक्ताओं दोनों को समान रूप से पहुंचा। वास्तव में, मैं सोचता हूं कि क्रिकेट में भारत के विश्व शक्ति बनने की धारणा के पीछे यह तथ्य रहा है कि हमारा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उपभोक्ताओं का एक विशाल वर्ग तैयार करने में सफल रहा है, जहां पहुंचना अनेक विपणन व्यवसायियों का सपना रहा है।

मीडिया क्षेत्र में सुधार और उदारीकरण स्वाभाविक रूप से सफल रहे हैं और तत्संबंधी प्रक्रिया अभी भी जारी है। इस बात का अंदाजा मीडिया उद्योग के आकार से ही भलीभांति लगाया जा सकता है। किंतु मीडिया सिर्फ व्यापारिक गतिविधियों का दर्पण नहीं है; वह समूचे बृह्त्त समाज को व्यक्त करता है। पिछले दो दशकों और उससे भी अधिक समय से आर्थिक सुधार और उदारीकरण हमारे देश में व्यापक सामाजिक परिवर्तन लाने में सफल रहे हैं। हमारे मीडिया ने इस प्रक्रिया को व्यक्त किया है और सम्बद्ध परिवर्तनों का उस पर भी असर पड़ा है। मैं तो यहां तक कहना चाहूंगा कि इन परिवर्तनों की रफ्तार इतनी तेज रही है कि मीडिया पर उनका असर कुछ हद तक अपर्याप्त रहा है। इंटरनेट, दूरसंचार क्रंाति, कम लागत का प्रसारण, सोशल मीडिया और सस्ती प्रकाशन सुविधाएं, जो आज मौजूद हैं, वे दो दशक पहले नहीं थीं।

परिवर्तन अपने साथ चुनौतियां भी लेकर आता है। पिछले दो दशकों के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों से उत्पन्न चुनौतियों को समझना, उनसे निपटना और उन पर काबू पाना मीडिया उद्योग के विशेषज्ञों के नाते आपका परम दायित्व है। हमारे जैसे सशक्त लोकतंत्र में, जो मुक्त जांच और सवालों के जवाब के लिए अन्वेषण में विश्वास रखता है, यह दायित्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। किंतु इस दायित्व का निर्वाह करते समय सावधानी की आवश्यकता है। जांच की भावना मिथ्या आरोप के अभियान में तब्दील नहीं होनी चाहिए। संदिग्ध व्यक्तियों की तलाश खोजी पत्रकारिता का विकल्प नहीं हो सकती। व्यक्तिगत पूर्वाग्रह जनहित पर हावी नहीं होने चाहिए।

अंततः विश्वसनीयताएं मीडिया का मूल्य है जो उसके पाठकों या दर्शकों के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। सामाजिक सद्भाव और सार्वजनिक व्यवस्था के दायित्व का सवाल इससे जुड़ा हुआ है। मैं सोशल मीडिया क्रांति के संदर्भ में इस बात पर विशेष रूप से बल देना चाहता हूं क्योंकि इस मीडिया ने सम्बद्ध नागरिक और व्यावसायिक पत्रकार के बीच अंतर समाप्त कर दिया है। यदि हम पिछले वर्ष हुई उस त्रासदी से बचना चाहते हैं, जिसमें ऑनलाइन दुष्प्रचार के चलते अनेक निर्दोष लोगों को अपने जीवन के प्रति आशंकित होकर गृह प्रांतों में लौटना पड़ा था, तो यह जरूरी है कि हम इस धारणा से परिपक्वता और बुद्धिमतापूर्वक ढंग से निपटें।

यह वास्तविकता है कि पत्रकारिता को उसके काम से अलग नहीं किया जा सकता। किसी भी मीडिया संगठन का दायित्व सिर्फ उसके पाठकों और दर्शकों तक सीमित नहीं है। कंपनियों का दायित्व अपने निवेशकों और शेयरधारकों के प्रति भी होता है। बॉटम लाइन और हेड लाइन के बीच खींचतान उनके लिए जीवन की सच्चाई है। किंतु, इसकी परिणति ऐसी स्थिति में नहीं होनी चाहिए कि मीडिया संगठन अपने प्राथमिक लक्ष्य को भूल जाएं, जो समाज को दर्पण दिखाने का है तथा सुधार लाने में मदद करने का है।

मीडिया और सिविल सोसायटी लोकतंत्र और राष्ट्र निर्माण का अनिवार्य हिस्सा हैं। आज जब हम राष्ट्रों के समुदाय में अपना न्यायोचित स्थान हासिल करने के निर्णायक स्तर पर हैं, तो मुझे विश्वास है कि मीडिया एक बहु-समुदायवादी, समावेशी और प्रगतिशील समाज के रूप में भारत को एकजुट करने के संयुक्त प्रयासों में कोई कमी नहीं आने देगा।

मैं इस अवसर पर एक मुक्त, बहुपक्षीय और स्वतंत्र मीडिया को सुदृढ़ करने के प्रति यूपीए सरकार की वचनबद्धता दोहराना चाहता हूं। हमारे प्रयासों का लक्ष्य ‘सूचना भेद’ को दूर करना और नागरिकों को सूचना और ज्ञान प्रदान करना है ताकि उन्हें सामाजिक, आर्थिक और प्रौद्योगिकी संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार किया जा सके। हमारे सूचना तंत्र का लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण जानकारी देकर लोगों को अधिकारिता प्रदान करना है। सामाजिक मीडिया के मौलिक इस्तेमाल के जरिए, मुझे विश्वास है कि हमारी सरकार एक महत्वाकांक्षी भारत की संचार जरूरतों को सुदृढ़ करने और युवा पीढ़ी को उनके साथ जोड़ने में योगदान करेगी।

राष्ट्रीय मीडिया केंद्र भविष्य में देश की विविध संचार जरूरतें पूरी करने की दिशा में एक अद्यतन कदम मात्र है। मैं सूचना और प्रसारण मंत्रालय को इस उपलब्धि पर बधाई देता हूं और उम्मीद करता हूं कि मीडिया को अत्याधुनिक बनाने के प्रयास हमेशा जारी रहेंगे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.