क्या राष्ट्रीय चैनलों ने जानबूझकर दबाया आम्बेडकरी लेखक कृष्ना कीरवले ह्त्या मामला ?

सुजीत ठमके
सुजीत ठमके

डॉक्टर कृष्ना किरवले जी हां। दलित, आम्बेडकरी साहित्य जगत का एक बड़ा नाम। लगभग ५० से ज्यादा एक से बढ़कर एक किताबे जिसमे कथा, कादम्बरी, कविताएं, कई बेहतर विषयो पर रिसर्च पेपर उनके नाम से शुमार है। कई राष्ट्रीय, आंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी की अगुवाई कृष्ना किरवले ने की है। कृश्णा किरवले पुणे विश्वविद्यालय में सहपाठक थे। तथा कोल्हापुर विश्वविद्यालय के अधीन डॉक्टर आम्बेडकर रिसर्च केंद्र के निदेशक थे।

अपराधी दोपहर के समय किरवले के बंगलो में जाता है। दोनों के बीच  विवाद होता है। और चन्द समय में अपराधी किरवाले की ह्त्या कर देता है। थोड़ी देर में किरवले के बंगले से रफूचक्कर हो जाता है। आम्बेडकरी लेखक किरवले हत्या मामला नेशनल टीवी चैनल की सुर्खिया नहीं बनी। किरवले की ह्त्या कर दी गई यह खबर सोशल मीडिया फिल्टर्ड हुई। अखबारों में थोड़ी बहुत जगह दी। रीजनल चैनल ने खानापूर्ति के स्ट्रीकर चलाये। नेशनल टीवी चैनल इस खबर से किनारा कर देते है। और इतनी बड़ी खबर ने केवल इसी बहस में उलझाकर रख दिया की यह ह्त्या निजी कारणों से हुई है।

पुलिस बता रही की किरवले की ह्त्या आर्थिक लेनेदेन को लेकर हुई है। कृष्ना किरवले की हत्या को महज केवल आर्थिक पहलू से जोड़कर छोड़ देना यानी खबर से नाइंसाफी करना है। जिस तरह रेशनलिस्ट डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर, कम्यनिस्ट लीडर कॉमरेड गोविन्द पानसरे, रेशनलिस्ट कलबुर्गी की हत्या कर दी गई और उसमे जो आपराधिक तथ्य पाए गए वे बेहद चौकाने वाले है। दाभोकर, कलबुर्गी, पानसरे ह्त्या के अंतिम नतीजो तक तभी क्राइम ब्रांच , खुफिया एजंसी और सरकार नहीं पहुची है । ऐसेमे क्या नेशनल टीवी चैनल ने जानबूझकर आम्बेडकरी लेखक डॉक्टर कृष्ना किरवले ह्त्या मामला दबाया है ? या फिर क्या प्रोफेशनल मजबूरिया है ?

सुजीत ठमके

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