पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव की कलम से नरेंद्र मोदी की दिल्ली रैली का पोस्टमार्टम

विकास रैली की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट: दिल्ली, 29 सितंबर 2013

अभिषेक श्रीवास्तव@ guru.abhishek@gmail.com

modi-d-1हाल ही में एक बुजुंर्ग पत्रकार मित्र ने मशहूर शायर मीर की लखनऊ यात्रा पर एक किस्सा सुनाया था। हुआ यों कि मीर चारबाग स्टेनशन पर उतरे, तो उन्हें पान की तलब लगी हुई थी। वे एक ठीहे पर गए और बोले, ”ज़रा एक पान लगाइएगा।” पनवाड़ी ने उन्हें ऊपर से नीचे तक ग़ौर से देखा, फिर बोला, ”हमारे यहां तो जूते लगाए जाते हैं हुज़ूर।” दरअसल, यह बोलचाल की भाषा का फ़र्क था। लखनऊ में पान बनाया जाता है। लगाने और बनाने के इस फ़र्क को समझे बगैर दिल्ली से आया मीर जैसा अदीब भी गच्चा खा जाता है। ग़ालिब, जो इस फ़र्क को बखूबी समझते थे, बावजूद खुद दिल्ली में ही अपनी आबरू का सबब पूछते रहे। दिल्ली और दिल्ली के बाहर के पानी का यही फ़र्क है, जिसे समझे बग़ैर ग़यासुद्दीन तुग़लक से दिल्ली हमेशा के लिए दूर हो गई। गर्ज़ ये, कि इतिहास के चलन को जाने-समझे बग़ैर दिल्ली में कदम रखना या दिल्ली से बाहर जाना, दोनों ही ख़तरनाक हो सकता है। क्या नरेंद्रभाई दामोदरदास मोदी को यह बात कोई जाकर समझा सकता है? चौंकिए मत, समझाता हूं…।

modi-d-2अगर आपने राजनीतिक जनसभाएं देखी हैं, तो ज़रा आज की संज्ञाओं का भारीपन तौलिए और मीडिया के जिमि जि़प कैमरों के दिखाए टीवी दृश्यों से मुक्ता होकर ज़रा ठहर कर सोचिए: जगह दिल्ली, मौका राजधानी में विपक्षी पार्टी भाजपा की पहली चुनावी जनसभा और वक्ता इस देश के अगले प्रधानमंत्री का इकलौता घोषित प्रत्याशी नरेंद्र मोदी। सब कुछ बड़ा-बड़ा। कटआउट तक सौ फुट ऊंचा। दावा भी पांच लाख लोगों के आने का था। छोटे-छोटे शहरों में रैली होती है तो रात से ही कार्यकर्ता जमे रहते हैं और घोषित समय पर तो पहुंचने की सोचना ही मूर्खता होती है। मुख्य सड़कें जाम हो जाती हैं, प्रवेश द्वार पर धक्का-मुक्की तो आम बात होती है। दिल्ली में आज ऐसा कुछ नहीं हुआ। न कोई सड़क जाम, न ही कोई झड़प, न अव्यवस्था।। क्या इसका श्रेय जापानी पार्क में मौजूद करीब तीन हज़ार दिल्ली पुलिसबल, हज़ार एसआइएस निजी सिक्योरिटी और हज़ार के आसपास आरएएफ के बलों को दिया जाय, जिन्होंने कथित तौर पर पांच लाख सुनने आने वालों को अनुशासित रखा? दो शून्य‍ का फ़र्क बहुत होता है। अगर हम भाजपा कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवकों, मीडिया को अलग रख दें तो भी सौ श्रोताओं पर एक सुरक्षाबल का हिसाब पड़ता है। ज़ाहिर है, पांच लाख की दाल में कुछ काला ज़रूर है।

modi-d-3आयोजन स्थल पर जो कोई भी सवेरे से मौजूद रहा होगा, वह इस काले को नंगी आंखों से देख सकता था। मोदी की जनसभा का घोषित समय 10 बजे सवेरे था, जबकि वक्ता की लोकप्रियता और रैली में अपेक्षित भीड़ को देखते हुए मैं सवेरे सवा सात बजे जापानी पार्क पहुंच चुका था। उस वक्त ईएसआई अस्पताल के बगल वाले रोहिणी थाने के बाहर पुलिसवालों की हाजि़री लग रही थी। सभी प्रवेश द्वार बंद थे। न नेता थे, न कार्यकर्ता और न ही कोई जनता। रोहिणी पश्चिम मेट्रो स्टेशन वाली सड़क से पहले तक अंदाज़ा ही नहीं लगता था कि कुछ होने वाला है। अचानक मेट्रो स्टेशन वाली सड़क पर बैनर-पोस्टर एक लाइन से लगे दिखे, जिससे रात भर की तैयारी का अंदाज़ा हुआ। बहरहाल, आठ बजे के आसपास निजी सुरक्षा एजेंसी एसआइएस के करीब हज़ार जवान पहुंचे और उनकी हाजि़री हुई। नौ बजे तक ट्रैक सूट पहने कुछ कार्यकर्ता आने शुरू हुए। गेट नंबर 11, जहां से मीडिया को प्रवेश करना था, वहां नौ बजे तक काफी पत्रकार पहुंच चुके थे। गेट नंबर 1 से 4 तक अभी बंद ही थे। सबसे ज्यादा चहल-पहल मीडिया वाले प्रवेश द्वार पर ही थी। दिलचस्प यह था कि तीन स्तरों के सुरक्षा घेरे का प्रत्यक्ष दायित्व तो दिल्ली पुलिस के पास था, लेकिन कोई मामला फंसने पर उसे भाजपा के कार्यकर्ता को भेज दिया जा रहा था। तीसरे स्तर के सुरक्षा द्वार पर भी भाजपा की कार्यकर्ता और एक स्था्नीय नेतानुमा शख्स। दिल्ली पुलिस को निर्देशित कर रहे थे।

यह अजीब था, लेकिन दिलचस्प। साढ़े नौ बजे पंडाल में बज रहे फिल्मी गीत ”आरंभ है प्रचंड” (गुलाल) और ”अब तो हमरी बारी रे” (चक्रव्यूबह) अनुराग कश्यप व प्रकाश झा ब्रांड बॉलीवुड को उसका अक्स दिखा रहे थे। इसके बाद ”महंगाई डायन” (पीपली लाइव) की बारी आई और भाजपा के सांस्कृतिक पिंजड़े में आमिर खान की आत्मा तड़पने लगी। जनता हालांकि यह सब सुनने के लिए नदारद थी। सिर्फ मीडिया के जिमी जि़प कैमरे हवा में टंगे घूम रहे थे। अचानक मिठाई और नाश्ते के डिब्बे बंटने शुरू हुए। कुछ कार्यकर्ता मीडिया वालों का नाम-पता जाने किस काम से नोट कर रहे थे। फिर पौने दस बजे के करीब अचानक एक परिचित चेहरा दर्शक दीर्घा में दिखाई दिया। यह अधिवक्ता प्रशांत भूषण को चैंबर में घुसकर पीटने वाली भगत सिंह क्रांति सेना का सरदार नेता था। उसकी पूरी टीम ने कुछ ही देर में अपना प्रचार कार्य शुरू कर दिया। ”नमो नम:” लिखी हुई लाल रंग की टोपियां और टीशर्ट बांटे जाने लगे। कुछ ताऊनुमा बूढ़े लोगों को केसरिया पगड़ी बांधी जा रही थी। कुछ लड़के भाजपा का मफलर बांट रहे थे। जनसभा के घोषित समय दस बजे के आसपास पंडाल में भाजपा कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवकों और मीडिया की चहल-पहल बढ़ गई। सारी कुर्सियां और दरी अब भी जनता की बाट जोह रही थीं और टीवी वाले जाने कौन सी जानकारी देने के लिए पीटीसी मारे जा रहे थे।

सवा दस बजे एक पत्रकार मित्र के माध्यम से सूचना आई कि नरेंद्र मोदी 15 मिनट पहले फ्लाइट से दिल्ली के लिए चले हैं। यह पारंपरिक आईएसटी (इंडियन स्ट्रे चेबल टाइम) के अनुकूल था, लेकिन आम लोगों का अब तक रैली में नहीं पहुंचना कुछ सवाल खड़े कर रहा था। साढ़े दस बजे के आसपास माइक से एक महिला की आवाज़़ निकली। उसने सबका स्वागत किया और एक कवि को मंच पर बुलाया। ”भारत माता की जय” के साथ कवि की बेढंगी कविता शुरू हुई। फिर एक और कवि आया जिसने छंदबद्ध गाना शुरू किया। कराची और लाहौर को भारत में मिला लेने के आह्वान वाली पंक्तियों पर अपने पीछे लाइनें दुहराने की उसकी अपील नाकाम रही क्यों कि कार्यकर्ता अपने प्रचार कार्य में लगे थे और दुहराने वाली जनता अब भी नदारद थी।

पौने ग्यारह बजे की स्थिति यह थी कि आयोजन स्थल पर बमुश्किल दस से बारह हज़ार लोग मौजूद रहे होंगे। एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर ने (नाम लेने की ज़रूरत नहीं) बताया कि कुल सात हज़ार के आसपास सुरक्षाबल (सरकारी और निजी), 500 के आसपास मीडिया, तीन हज़ार के आसपास कार्यकर्ता और स्वयंसेवक व छिटपुट और लोग होंगे। ”लोग नहीं आए अब तक?”, मैंने पूछा। वो मुस्कराकर बोला, ”सरजी संडे है। हफ्ते भर नौकरी करने के बाद किसे पड़ी है। टीवी में देख रहे होंगे।” फिर उसने अपने दो सिपाहियों को चिल्लाकर कहा, ”खा ले बिजेंदर, मैं तुम दोनों को भूखे नहीं मरने दूंगा।” ग्यारह बज चुके थे और पंडाल के भीतर तकरीबन सारे मीडिया वाले और पुलिसकर्मी भाजपा के दिए नाश्ते। के डिब्बों को साफ करने में जुटे थे। मंच से कवि की आवाज़ आ रही थी, ”मोदी मोदी मोदी मोदी”। उसने 14 बार मोदी कहा। मंच के नीचे पेडेस्ट़ल पंखों और विशाल साउंड सिस्टम के दिल दहलाने वाले मिश्रित शोर का शर्मनाक सन्नाटा पसरा था और हरी दरी के नीचे की दलदली ज़मीन कुछ और धसक चुकी थी।

कुछ देर बाद हम निराश होकर निकल लिए। मोदी सवा बारह के आसपास आए और दिल्ली में हो रही जोरदार बारिश के बीच एक बजे की लाइव घोषणा यह थी कि रैली में पांच लाख लोग जुट चुके हैं। मोदी ने कहा कि ऐसी रिकॉर्ड रैली आज तक दिल्ली में नहीं हुई। इस वक्त मोबाइल पर उनका लाइव भाषण देखते हुए हम बिना फंसे रिंग रोड पार कर चुके थे। पंजाबी बाग से रोहिणी के बीच रास्ते में गाजि़याबाद से रैली में आती बैनर, पोस्टर और झंडा बांधे कुल 13 बसें दिखीं। अधिकतर एक ही टूर और ट्रैवल्स की सफेद बसें थीं। निजी वाहनों के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। हरेक बस में औसतन 20-25 लोग थे। लाल बत्तियों पर लगी कतार को छोड़ दें तो पूरी रिंग रोड (जो हरियाणा को दिल्ली से जोड़ती है), रोहिणी से धौला कुआं वाली रोड (गुड़गांव वाली), कुतुब से बदरपुर की ओर जाती सड़क(जो फरीदाबाद को दिल्ली से जोड़ती है) और बाद में उत्तर प्रदेश से दिल्ली को जोड़ने वाली आउटर रिंग रोड खाली पड़ी हुई थी। और यह दिल्ली( की बारिश में था जबकि जाम एक सामान्य दृश्य होता है।

रैली में आखिर लाखों लोग आए कहां से? क्या सिर्फ 26 मेट्रो से? बसों और निजी वाहनों से तो जाम लग जाता, जबकि ग़ाजि़याबाद से रोहिणी और वहां से वापस रिंग रोड, आउटर रिंग रोड व भीतर की पंजाबी बाग वाली रोड को कुल 125 किलोमीटर हमने पूरा नापा। ग़ाजि़याबाद का जि़क्र इसलिए विशेष तौर पर किया जाना चाहिए क्योंकि राजनाथ सिंह यहां से सांसद हैं और पिछले दो दिनों से बड़े पैमाने पर यहां रैली की तैयारियां चल रही थीं। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि मोदी की जनसभा में जितने भी नेताओं के कटआउट आए थे, सब ग़ाजि़याबाद से आए थे जिन्हें एक ही कंपनी ”आज़ाद ऐड” ने बनाया था। सवेरे साढ़े आठ बजे तक ये कटआउट यहां ट्रकों में भरकर पहुंच चुके थे, हालांकि ग़ाजि़याबाद से श्रोता नहीं आए थे। वापस पहुंचने पर इंदिरापुरम, ग़ाजि़याबाद के स्थानीय भाजपा कार्यकर्ता टीवी पर मोदी का रिपीट भाषण सुनते मिले।

बहरहाल, मोदी जब बोल चुके थे तो भाजपा कार्यालय के एक प्रतिनिधि ने फोन पर बताया कि रैली में आने वालों की कुल संख्या 50,000 के आसपास थी। अगर हम इसे भी एकबारगी सही मान लें, तो याद होगा कि इतने ही लोगों की रैली पिछले साल फरवरी में दिल्ली में कुछ मजदूर संगठनों ने की थी और समूचा मीडिया यातायात व्यवस्था और जनजीवन अस्तव्यस्त हो जाने की त्राहि-त्राहि मचाए हुए था। अजीब बात है कि बिना हेलमेट पहने और लाइसेंस के बतौर भारत का झंडा उठाए दर्जनों बाइकधारी नौजवानों के आज सड़क पर होने के बावजूद कुछ भी अस्तव्यस्त नहीं हुआ, लाखों लोग रोहिणी जैसी सुदूर जगह पर आ भी गए और चुपचाप चले भी गए। यह नरेंद्रभाई मोदी की रैली में ही हो सकता है। उत्तराखंड की बाढ़ में फंसे गुजरातियों को जिस तरह उन्होंने एक झटके में वहां से निकाल लिया था, हो सकता है कि ऐसा ही कोई जादू चलाकर उन्हों ने दिल्लीं की विकास रैली में लाखों लोगों को पैदा कर दिया हो। ऐसे चमत्कांर आंखों से दिखते कहां हैं, बस हो जाते हैं।

ऐसे चमत्कारों का हालांकि खतरा बहुत होता है। उत्तराखंड वाले चमत्कार में ऐपको नाम की जनसंपर्क एजेंसी का भंडाफोड़ हो चुका है। दिल्ली् में किस एजेंसी को भाजपा ने यह रैली आयोजित करने के लिए नियुक्त़ किया, यह नहीं पता। देर-सवेर पता चल ही जाएगा। मेरी चिंता हालांकि यह बिल्कुकल नहीं है। मैं इस बात से चिंतित हूं कि मोदी जैसा कद्दावर शख्स दिल्ली में बोल गया और दिल्ली वाले नहीं आए। वजह क्या है? कहीं तुग़लक जैसी कोई समस्या तो इसके पीछे नहीं छुपी है? मोदी दिल्लीवालों को न समझें न सही, क्या? विजय गोयल आदि आयोजकों से भी कोई चूक हो गई? ठीक है, कि टीवी चैनलों के हवा में लटकते पचास फुटा कैमरों ने टीवी देख रहे लोगों को काम भर का भरमाया होगा, जैसा कि उसने अन्ना हज़ारे की गिरफ्तारी के समय किया था। अन्ना से याद आया- वह भी तो रोहिणी जेल का ही मामला था जहां दो-चार हज़ार लोगों को कैमरों ने एकाध लाख में बदल दिया था। इत्तेफाक कहें या बदकिस्मती, कि रोहिणी में ही इतिहास ने खुद को दुहराया है। मोदी चाहें तो किसी ज्योतिषी से रोहिणी पर शौक़ से शोध करवा सकते हैं। वैसे रोहिणी तो एक बहाना है, असल मामला दिल्ली के मिजाज़ का है जिसे भाजपा (प्रवृत्ति और विचार के स्तर पर इसे अन्ना आंदोलन भी पढ़ सकते हैं) समझ नहीं सकी है।

भाजपा और संघ के पैरोकार वरिष्ठ पत्रकार वेदप्रताप वैदिक ने आज तक एक ही बात ऐसी लिखी है जो याद रखने योग्य है। उन्हों ने कभी लिखा था कि इस देश का दक्षिणपंथ जनता की चेतना से बहुत पीछे की भाषा बोलता है और इस देश का वामपंथ जनता की चेतना से बहुत आगे की भाषा बोलता है। इसीलिए इस देश में दोनों नाकाम हैं। कहीं मोदी समेत भाजपा की दिक्कत यही तो नहीं? कहीं वे भी तो शायर मीर की तरह ”लगाने” और ”बनाने” का फर्क नहीं समझते? मुझे वास्तव में लगने लगा है कि किसी को जाकर नरेंद्रभाई दामोदरदास मोदी को यह बात गंभीरता से समझानी चाहिए कि 29 सितंबर, 2013 को दिल्ली के जापानी पार्क में उनकी ”बनी” नहीं, ”लग” गई है। ग़ालिब तो शेर कह के निकल लिए, इस ”भारत मां के शेर” का संकट उनसे कहीं बड़ा है। दिल्ली वालों ने आज संडे को टीवी देखकर मोदी और भाजपा की आबरू का सरे दिल्ली में जनाज़ा ही निकाल दिया है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

25 COMMENTS

  1. क्यों झूठी कहानियाँ गढ़ रहे हो भाई। आज मैं खुद मोदीजी की दिल्ली रैली में मौजूद था। तिल धरने की भी जगह नहीं थी। अगर मोदीजी इतने महत्वपूर्ण नहीं हैब्तो आपको ये न्यूज़ लिखने की भी क्या आवश्यकता थी भाई। आप चुप रहते तो भी चल सकता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आपके हाथ की कठपुतली पहले से ही हैं। पर सत्य कुछ और है ना। आपलोग मोदी का बढ़ता जनसमर्थन से घबरा गए हैं, इसीलिए तो ऐसी बकवास न्यूज़ बनाने की ज़रुरत पड़ रही है।

  2. The content of this news and the views of the author looks pretty much biased to me. Please publish only unbiased news. Truth may be that there were not much people there. But the selection of of language is not appropriate for a standard publication.

  3. Mr. abhishek shrivastav , I think you are not seen the actually crowd over there, becoz you may be one follower of “Indian National Corruption Party” , so you have no patience to see the crowd at the maidan.

  4. Dalal sahab Jalo mat barabari karo.Angoor khatte hain jinke liye tum dalali karte ho.
    Waisey yah post likhne k 4-5 thousand mile hongey. Bcoz issey jyada teri aukat nahi hai.

  5. अगर इनकी मान ले तो वहां केवल पुलिस और १०-१२ हज़ार लोग ही होंगे , समस्या ये है की इन लोगों को अपनी आंह से केवल कांग्रेस और उसकी उपलब्धियां ही दिखाई देती हैं ,ये बिना गैरत के लोग हैं जिन्हें समाज में कांग्रेस द्वारा किये जा रहे घोटाले और लूट दिखने के बाद भी नहीं दीखते . अंधे ही हुए न ये .पत्रकारिता के नाम पे ये लोग और इन जैसे ही पूरा कलंक हैं जिसका धर्म निष्पक्ष लिखना होता है किसी के भी विर्रुध नहीं पर इन जैसो ने अपने गिरने की कोई सीमा ही नहीं छोड़ी खाली कुर्सियों की फोटो देख कर ही समझ गया की ये लेखक बिका हुआ और गिरा हुआ दलाल है उनका जो एक पोलिटिकल पार्टी चलाते हैं और ये सब दल्ले उनके प्रचार में लगे हुए हैं .फिर झूट की भी कोई इन्तहा होगी हम सबने जो देखा वो तो एकदम अलग था , ऐसे मक्कारों को आप स्थान देते हैं ये तो हुआ आप भी बिके हुए हो

  6. Dear Mr. Abhishek Srivastava,

    It would have been better if you had devoted your time for actual problems in the country, but your contents show that you are very much biased and your visibility has become zero to see actual things in life, your such a big amount of the words are enough to prove the actual situations of the rally, however your frustration can be seemed easily over the position of the peoples you are supporting .As a journalist it must be your responsibility to write actual contents, also as you have said that as per your knowledge rally was to start sharp at 10 AM and security reached at 9 AM and other journalists also reached around 9 AM, so I have never seen such a dumb and foolish person like you to reach the venue at 7 AM and now crying no one was there, actually you don’t deserve to become journalist and must leave this profession as soon as possible.

    • Dear Mr. Abhishek Srivastava,

      It would have been better if you had devoted your time for actual problems in the country, but your contents show that you are very much biased and your visibility has become zero to see actual things in life, your such a big amount of the words are enough to prove the actual situations of the rally, however your frustration can be seemed easily over the position of the peoples you are supporting .As a journalist it must be your responsibility to write actual contents, also as you have said that as per your knowledge rally was to start sharp at 10 AM and security reached at 9 AM and other journalists also reached around 9 AM, so I have never seen such a dumb and foolish person like you to reach the venue at 7 AM and now crying no one was there, actually you don’t deserve to become journalist and must leave this profession as soon as possible.

  7. kitne me bike ho jabab aap is khabar ko likhne ke liye me 10 baje wahan tha tab 2 lakh log the or 11.30 tak 5 lakh se adhik log raily me the besharmiyat ki had hai yah patrkaar nahi dalaal ban gaye ho sab .

  8. http://indiatoday.intoday.in/story/narendra-modi-delhi-rally-bjp-pm-candidate-gujarat-cm-japanese-park/1/312260.html

    ye dekho nd is patrkaar ko batao ki joothi khabre na felaye … desh ka bhala karne ki bajay sab ke sab bikau bante ja rahe he …………khud ka bhala dekh rahe he desh ka bhala nahi soch rahe

    jo sacchayi he wo nahi dikhate nd jhothi afwah fela kar logo ko gumrah karte he aise reporter ..
    aise reporter ko tho media me aane dena hi nahi chahiye
    in par pratibandh lag jana chahiye..
    jai hind.. jai bharat

  9. कसम से भाई ! पूरा लेख पढते पढते पेट में हंसी से दर्द होने लगा. बस यही सोच रहा हु की क्या कोई इससे भी घटिया लिख सकता है. आप को तो इसके लिय पदमश्री मिलना चाहिए आखिर आप के ही मालिको की सरकार है न , तो वो भी आराम से मिल जायेगा .

  10. Lagta hai ye patrakar raaly main khud gaya nahi tha nahi to pata chal jata ki wo rally thi ya raila… ek inch ki jgaha tak nahi thi… aur gaya bhi hoga to raolly suru hone ke ghanto pehle ki pic leke aagya ye patrakar …

    Aur waise bhi ye jgah wo lag nahi rahi jahain ye rally hui thi

  11. @ abhishek srivastav, Bhai tu apna photo bhi laga le , jisse hum log tujhe dheker phechaan jaye ki tu ek andha aur bika hua patrkar hai, kirpya apna photo jarur dikha,…..
    Baki teri batoo ka jabab hum 2014 ke election me “Modi” ko PM banake ke denge.

  12. dear abhishek srivastava
    u to mai bhi srivastava hu par tumhare itna nich sri.shayd pahli baar dekh raha aur mujhe bahut hi sharm aati hai ki tumhare jaise srivastava log bhi hote hai .aisa pratit hota apne apna imaan puri tarah se bechh diya hai aur aap kisi purvgrah se prerit ek bike huye reporter ho jo modi satya se muh chura rahe ho aur jhth pe juth bol rahe hai mai to kal raily me nahi gaya tha par hamare office se ek kattar congreshi gaya huaa tha aur o bol raha tha ki kam se kam 5lakh se uper ki public thi aur til rakhne ka jagah nahi tha aur waisa t.v me bhi dikh raha tha fir tum kis aankh se khali kursi dekh aaye nisandeh tum ek bike dalal lag rahe ho mujhe shame

  13. मोदी का विरोध किया जाना गलत नहीं है। सभी को हक है, मगर ऊल-जुलूल ढंग से विरोध करना उचित नहीं है। भले ही 5 लाख का दावा अतिशयोक्ति है लेकिन श्रीवास्तव जी का विश्लेषण शुतुरमुर्गाना है। सत्य को अस्वीकार करने से वह छिप नहीं जाता। अगर वह भाषण के समय से ठीक पहले निकल चुके थे, तो उन्हें टीवी देख लेना चाहिए। टीवी देखकर अंदाजा हो रहा था कि लोग कितने हैं। (http://timesofindia.indiatimes.com/…/23274117.cms) जिस तरह से मोदी समर्थक तर्कहीन बातें करके उसके समर्थन में उतर आते हैं, उसी तरह से मोदी विरोधियों को तर्कहीन बातों पर उतर आना दुखद है। कुछ तो स्तर होना चाहिए। दोनों पक्ष फेकू हो जाएं तो क्या मतलब रह जाता है

  14. वैसे मीर के जमाने में रेलगाड़ी किस महान पत्रकार ने चलवा दी भाई?

  15. अभिषेक जी लिखा आपने अच्छा है लेकिन सब कुछ तथ्यों के परे है…पता हम सबकी मुश्किल ये है कि अगर सड़क जाम नही हुई तो भी दिक्कत है कि साला कोई आया क्यो नही…और अगर जाम हो गई तो फिर वही सवाल की रैलियों के चलते आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है…इसलिए सबसे जरुरी ये है कि आप तय करें कि आप चाहते क्या है…या पूरा सच या फिर पूरा झुठ क्योंकि आधा सच और आधा झूठ जैसा कुछ भी नही होता है..ये महज एक भ्रम है…

  16. Yaar patrakar bhai tum to pure ke pure Cngresh ke gulam lagte ho.
    pura hindustan me narendra modi ke liye bhir lag gati hai.
    mujhe lagata hai ya tumahara aakh rung nahi dikhata hai ya pura bulind ho.

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