मीडिया से दूर मोदी

रामनारायण श्रीवास्तव

ANJANA-KASHYAP-MODI-MODIलाल किले के प्राचीर तथा संसद और सरकारी कार्यक्रमों से लेकर पार्टी के मंच तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जनता से सीधा संवाद जारी है। वे जहां भी जाते हैं, देश-दुनिया का मीडिया उन्हें कवर करने के लिए दौड़ा जाता है, फिर भी मोदी ने अपने व मीडिया के बीच एक निश्चित दूरी बना रखी है। लेकिन प्रधानमंत्री का कोई मीडिया सलाहकार या संवाद के लिए कोई अधिकृत व्यक्ति न होने के कारण दोतरफा संवाद की कमी के चलते मीडिया की दिक्कतें लगातार बढ़ रही हैं।

टीवी, रेडियो, अखबार, यू-ट्यूब, फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग आदि सभी जगह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो मौजूद हैं, फर्क सिर्फ इतना आया है कि पिछले कई सालों से प्रधानमंत्री व उनके कार्यालय में सूचनाओं के लिए जुटने वाली पत्रकारों की भीड़ गायब है। प्रधानमंत्री अपने दौरों में पत्रकारों को अब साथ लेकर नहीं जा रहे हैं। उनके साथ सिर्फ सरकारी मीडिया होता है।

दरअसल यह मोदी की अपनी एक खास कार्यशैली है। जनता तक कैसे पहुंचा जाए और उसे कैसे पास लाया जाए, यह वे बखूबी जानते हैं। उनके लिए मीडिया जनता से संवाद का मात्र एक माध्यम भर है, जिसका वे और उनकी सरकार भरपूर उपयोग कर रहे हैं। यही वजह है कि सरकार अब परंपरागत मीडिया के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय है। दरअसल यह सब वन वे है, जो मीडिया की कई जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा है, लेकिन जनता से सीधे हो रहे संवाद के कारण मोदी सरकार इसे लेकर ज्यादा चिंतित नहीं है।

प्रधानमंत्री मोदी ने ढाई महीने में 5,495 ट्वीट किए हैं। फेसबुक पर उन्हें दो करोड़ से ज्यादा लाइक मिले हैं। उनके पेज के 58 लाख से ज्यादा फॉलोअर हैं। दरअसल मोदी ने सोशल मीडिया को अपना नया माध्यम बनाया हुआ है। उनका मानना है कि जनता तक इसी की सीधी पहुंच है, खास कर उस युवा वर्ग तक, जिसे जोड़ कर मोदी इस मुकाम तक पहुंचे हैं। उन्होंने अपनी सरकार के साथियों को भी पत्रकारों के सवाल-जवाब में उलझने की बजाय सोशल मीडिया पर ज्यादा संवाद करने को कहा है।

मोदी के करीबियों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि मोदी का मीडिया को लेकर रवैया ही ऐसा है। गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से पहले मोदी भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव थे। तब वे मीडिया से खुल कर मिलते थे। पार्टी कार्यालय में उनके कक्ष में पत्रकारों की भीड़ होती थी। वे खुल कर औपचारिक व अनौपचारिक रूप से बतियाते थे। सहज इतने थे कि अगर कोई संपादक मिलने की बात करे तो उन्हें बुलाते नहीं थे, खुद ही उनके दफ्तर में मिलने पहुंच जाते थे। उन दिनों की तुलना में आज एकदम उल्टा दिखता है।

मोदी भाजपा व राजग में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के उत्तराधिकारी हैं, इसलिए कई बातों में उनकी तुलना वाजपेयी से की जा रही है। मीडिया के मामले में भी यह होना स्वाभाविक है। वाजपेयी के साथ पत्रकार जितने सहज थे, वाजपेयी भी पत्रकारों के साथ उतने ही मिलनसार थे। प्रधानमंत्री रहते हुए वाजपेयी किसी भी कार्यक्रम में हिस्सा लेने किसी भी राज्य में गए हों, हर जगह वे प्रेस वार्ता कर वहां के पत्रकारों से मिलते थे और लखनऊ के पत्रकार तो उन पर पूरा हक जता कर बात करते थे।

वाजपेयी के बाद प्रधानमंत्री बने मनमोहन सिंह भले ही कम बोलते हों, लेकिन मीडिया से उनकी बातचीत होती रहती थी। अपने दोनों कार्यकाल में उन्होंने तीन-चार पत्रकार वार्ताएं भी की। देसी व विदेशी दौरों के समय भी पत्रकारों को उनसे हर तरह के सवाल पूछने का मौका मिलता था और वे किसी सवाल को टालते भी नहीं थे।

मगर मोदी के मामले में ऐसा नहीं है। उनकी मीडिया से एक निश्चित दूरी है। इसके पीछे कारण भी कम नहीं हैं। इस बारे में भाजपा नेताओं का कहना है कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए बीते 12 साल में मीडिया व मोदी के जो रिश्ते रहे, उसमें वे सहज नहीं थे। एक वर्ग से तो वे लगातार जूझते रहे। इसके बावजूद उनकी तरफ से मीडिया के लिए सूचनाओं का प्रवाह कभी कम नहीं हुआ है। हां, कुछ बदलाव जरूर हुए हैं, मगर यह बदलाव भी केवल मीडिया के लिए नहीं हैं। व्यवस्था में भी कई जगह बड़े बदलाव किए जा रहे हैं। उनमें से मीडिया भी एक है।

मीडिया मैनेजमेंट

’प्रधानमंत्री अपने साथ विदेशी दौरों पर दूरदर्शन, ऑल इंडिया रेडियो और कुछ चयनित न्यूज एजेंसियों की टीम को लेकर जा रहे हैं, जबकि पिछली सरकारें अपने साथ पत्रकारों का दल लेकर जाया करती थीं।

’अपने प्रेस सलाहकार के रूप में मोदी ने किसी हाई प्रोफाइल पत्रकार की नियुक्ति नहीं की है।

’ प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रियों और नौकरशाहों से कहा है कि वह पत्रकारों से तभी बातचीत करें, जब जरूरी हो।

’ मोदी ने अपने मंत्रियों, पार्टी कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों को सलाह दी है कि रोज प्रेस ब्रीफिंग न कर सरकार और पार्टी के संदेशों को पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करें। (स्रोत-हिन्दुस्तान)

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