मीडिया ने किसी दंगे की ऐसी चीड़फाड़ पहले कभी नहीं की थी

राजीव रंजन झा

nishant muzzfarnagar>मुजफ्फरनगर का दंगा पहला ऐसा दंगा है जिस पर मीडिया के कैमरों के लेंस सबसे ज्यादा फोकस हुए हैं। यह भारतीय इतिहास का पहला ऐसा दंगा है, जिसके हर चरण को मीडिया ने खोल कर रख दिया है। किसी को ठेस न पहुँचाने और भावनाओं को न भड़काने वाली रिपोर्टिंग के नाम पर मीडिया अब तक कभी किसी दंगे की ऐसी चीड़फाड़ नहीं कर पाया था। जब घटनाक्रम साफ नहीं हो तो यह कहना आसान हो जाता था कि दंगे हमेशा फलाँ कराते हैं। अब सबको दिख रहा है कि दंगे कैसे शुरू होते हैं। इसीलिए कुछ लोगों को यह चीड़फाड़ बहुत नागवार गुजर रही है। लेकिन यह चीड़फाड़ जख्म बढ़ाने वाली नहीं है, बल्कि नासूर साफ करने वाली चीड़फाड़ है। समाज के समझदार लोगों का काम है कि इस पर मरहम का लेप करें।

>मुजफ्फरनगर के दंगों पर पुलिस अधिकारियों का स्टिंग साफ दिखाता है कि मामले ने सांप्रदायिक रंग लेना तभी शुरू किया, जब 27 अगस्त को तीन हत्याओं के बाद एसएसपी और डीएम ने कुछ घरों की तलाशी करवा दी और पुलिस ने संदिग्धों को पकड़ लिया। एसएसपी और डीएम का तबादला चंद घंटों के अंदर हो गया। यानी तलाशी कराना उनका गुनाह था।

देश के छोटे-बड़े हर शहर-कस्बे में कुछ ऐसे ‘संवेदनशील’ क्षेत्र हैं, जहाँ पुलिस-प्रशासन का प्रवेश वर्जित माना जाता है। यहाँ तक कि सैन्य-अर्द्धसैन्य बलों का प्रवेश मुश्किल माना जाता है। बनारस में एक बार ऐसे ही एक संवेदनशील क्षेत्र में कल्याण सिंह ने पीएसी का प्रवेश करवा दिया। उस गुनाह के लिए प्रगतिशील लोग कभी कल्याण सिंह को माफ नहीं कर पाये।

लेकिन किसी सफल, आधुनिक, पेशेवर मुस्लिम को आप ऐसे संवेदनशील जगहों में रहते हुए शायद ही पायें। इन ‘सुरक्षित किलों’ में बुनियादी सुविधाएँ जरा भी नहीं। लेकिन भय ग्रंथि के कारण लोग इन किलों से बाहर निकलने की कोशिश भी नहीं करते। लेकिन अगर बाहर इतना ही खतरा होता तो ये सफल, आधुनिक, पेशेवर मुसलमान, जिनके पास खोने के लिए कहीं ज्यादा कुछ है, बाहर कैसे रह लेते हैं? मुस्लिम मित्रों, अपनी भलाई के लिए इन किलों से बाहर निकलें, बाहर दुनिया बहुत हसीन है। अपनी भय ग्रंथि से बाहर निकलें, जिसके अंदर कैद रह कर आप सिर्फ एक वोट-बैंक बन गये हैं।

>जितने भी मुस्लिम प्रगतिशील बुद्धिजीवी नाम आपको याद आते हैं, जरा उनकी फेसबुक वाल देख लीजिए। आपको मुजफ्फरनगर के दंगों के संदर्भ में, और खास कर टीवी स्टिंग के बारे में या तो आजम खान के बारे में सहानुभूति के शब्द मिलेंगे या फिर इस पूरे मामले पर मौन दिखेगा। ऐसे मित्रों के नाम के आगे अब से प्रगतिशील और बुद्धिजीवी जैसे शब्द लगाने की गलती न करें। जो अपवाद मिलें, उनके कुछ और पुराने पोस्ट देख लीजिएगा। वहाँ आपको सपा के विरोध और बसपा के समर्थन वाले बयान मिल सकते हैं। अगर इन सबके बदले सीधे-सीधे आजम खान की कारगुजारियों पर गुस्से वाली टिप्पणियाँ मिले, तो उनका नाम यहाँ जरूर लिखिए। मैं उनका अभिनंदन करूँगा।

(एफबी से साभार)

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