सामने खड़ा है मीडिया का आपातकाल- सतीश के सिंह

मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव में ‘राजनीतिक दलों की पत्रकारिता : वॉररूम, सोशल मीडिया और प्राइम टाइम की बहसें’ पर परिचर्चा

टीवी पत्रकारिता प्रायोजित जर्नलिज्म के दौर से गुजर रही है। हम राजनीतिक दलों के ‘टूल’ बनते जा रहे हैं। पत्रकारिता पर आर्थिक दबाव पत्रकारिता के लिए एक बड़ा संकट बन कर सामने खड़ा है। दरअसल, पूरा परिदृश्य ‘मीडिया के आपातकाल’ की ओर अग्रसर हो रहा है। ये बातें वरिष्ठ पत्रकार और लाइव इंडिया चैनल के संपादक सतीश के सिंह ने 27 जून को पुरोधा पत्रकार एस पी सिंह की स्मृति में दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित सातवें मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव में ‘राजनीतिक दलों की पत्रकारिता : वॉररूम, सोशल मीडिया और प्राइम टाइम की बहसें’ शीर्षक परिचर्चा में भाग लेते हुए कही।

इस अवसर पर अपने विचार रखते हुए वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा कि पत्रकारिता के स्वरूप में बदलाव का सिलसिला अनवरत जारी रहा है और हर दौर की अपनी चुनौतियां होती हैं। उन्होंने पत्रकारिता पर किसी संकट की अवधारणा को खारिज करते हुए कहा कि मुख्य धारा की पत्रकारिता हमेशा कॉरपोरेट से प्रभावित रही है और पत्रकारिता में इमरजेंसी जैसी कोई बात नहीं है। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष ने पत्रकारिता पर राजनीतिक दबाव की बात को रेखांकित करते हुए कहा कि पत्रकारिता में बुनियादी तौर पर बदलाव तथा बाजार और पत्रकारिता में संतुलन की जरूरत है। इंडिया न्यूज के संपादक दीपक चौरसिया ने राजनीतिक दलों के मीडिया प्रबंधन में आए बदलाव को समझाते हुए कहा कि आज कोई भी नेता बिना अपनी पार्टी के मीडिया कॉडिनेटर की सहमति के किसी चैनल के कार्यक्रम में हिस्सा लेने को तैयार नहीं होता और राजनीतिक दल अपनी सहूलियत से मीडिया से बातें करना चाहते हैं।

पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर मंडराते संकट की चर्चा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार शैलेश कुमार ने कहा कि अगर मीडिया खुद को बड़े बदलाव ने नहीं गुजारता है तो न्यू मीडिया इसे खत्म कर देगा। हिन्दुस्तानी चैनलों के मुकाबले पाकिस्तानी चैनलों को ज्यादा पेशेवर करार देते हुए और अंग्रेजी चैनलों को हिन्दी चैनलों की नकल करने वाला बताते हुए उन्होंने अनर्गल कार्यक्रमों के पीछे पत्रकारों और संपादकों की अकर्मण्यता को जिम्मेदार ठहराया। न्यूज चैनलों पर किसी सियासी दबाव होने की बात को खारिज करते हुए आज तक चैनल की तेज-तर्रार एंकर अंजना ओम कश्यप ने कहा कि हम राजनीतिक दलों से सवाल करने और उनकी नींद हराम करने की स्थिति में हैं और हम ऐसा कर रहे हैं, इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा कि हम रेंग रहे हैं। मीडिया में महिलाओं के प्रति परंपरागत सोच को कठघरे में खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें राजनीतिक पत्रकारिता करने के लिए लड़ना पड़ा। कार्यक्रम में अपने विचार रखते हुए राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता डॉ. अरुण कुमार ने कहा कि पत्रकारिता में आई गिरावट को राजनीति, न्यायपालिका और शिक्षा में आई गिरावट से अलग करके नहीं देखा जा सकता। कमजोर होते मूल्यों के इस दौर में पीढियां कुंठित और दिशाहीन पैदा हो रही हैं।

कार्यक्रम के अंतिम चरण में प्रश्नोत्तर सत्र का आयोजन हुआ, जिसमें वक्ताओं ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों के सवालों के जवाब दिए। कार्यक्रम का संचालन पत्रकार निमिष कुमार ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन मीडिया खबर के संपादक पुष्कर पुष्प ने किया।

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