मीडिया के क्षेत्र में जंगल का कानून चलता है। यहां वही टिकेगा, जिसमें दम होगा

मीडिया मजदूर
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विकास मिश्रा,पत्रकार,आजतक @fb

विकास मिश्रा
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फेसबुक पर चैट बॉक्स अचानक खुलता है- सर प्रणाम…। जवाब-नमस्कार क्या हाल है..। सर बढ़िया हूं, आप कैसे हैं। जवाब- बढ़िया। चैट बंद। महीने में 15 बार यही सवाल यही जवाब..। फिर एक एक्स्ट्रा सवाल- सर भूल गए क्या हमको। जवाब- नहीं भाई। सर आपका आशीर्वाद चाहिए था। फिर कभी फोन पर मैसेज- सर प्रणाम। आपके चरणों में रहकर आपका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता हूं। एक मौका दीजिए आपके निर्देशन में काम करना चाहता हूं। कभी फोन पर- सर प्रणाम, डिस्टर्ब तो नहीं किया, सर अपनी शरण में ले लीजिए।…दूसरा फोन–सर आपका आशीर्वाद मिल जाए तो तर जाऊंगा…। तीसरा फोन–सर प्रणाम.. आप चाहें तो क्या नहीं हो सकता है…। अगला फोन– सर एक कुछ कर दीजिए, जिंदगी भर आपकी शरण में रहूंगा। जिंदगी भर एहसान मानूंगा…। ये बानगी है फेसबुक पर चैट, मोबाइल पर बातों और मैसेज का।

कभी कभी मन कचोट जाता है कि ये नई पीढ़ी इतनी बेचारी क्यों हो जाती है किसी से नौकरी की बात करने में। क्यों ‘सर’ लोगों के डिस्टर्बेंस की इतनी चिंता करती है। मकसद है पत्रकार बनना… पत्रकार बनकर सरकार हिला देना, लेकिन ‘सर’ से बात करने में खुद ही हिले नजर आते हैं। किसी की भी बात में कोई दावा नहीं होता। विनम्रता की पराकाष्ठा पर जाकर बात करते हैं, इतना विनयशील कोई पत्रकार हो नहीं सकता।

जानता हूं कि कुछ सर ऐसे हैं, जो फोन उठाते ही डांट सकते हैं। कह सकते हैं कि फोन मत करना। लेकिन इंडस्ट्री में ऐसे भी सीनियर हैं जिनसे कई लोगों ने बहस की और नौकरी भी पाई। मैं कहना चाहता हूं कि जो पत्रकार बनना चाहते हैं, उन्हें पहले तो बेचारा नहीं होना चाहिए। पत्रकारिता में कदम रखने वाले साथियों से कहना चाहता हूं कि पहले पूरी तैयारी कर लीजिए। फिर सोचिए यहां आने की।

मीडिया के क्षेत्र में जंगल का कानून चलता है। यहां वही टिकेगा, जिसमें दम होगा। जैसे जंगल में वही हिरन सुरक्षित है, जो शेर, चीते, गीदड़, लकड़बग्घे से तेज दौड़ सकता है। कई नए साथियों को टेस्ट के लिए बुलाया, लेकिन ठीक से चार लाइन हिंदी भी नहीं लिख सकते। अब किस बिना पर आशीर्वाद ‘दे’ दें।

आशा है कि नए साल में मेरे नए साथी नौकरी के लिए दावे के साथ फोन करेंगे। पूरी तैयारी के साथ। हिंदी अच्छी होनी चाहिए। टाइपिंग स्पीड अच्छी होनी चाहिए। बिल्कुल उसी तैयारी की साथ, जैसे कोई फौजी हथियारों से लैस होकर सीमा पर जाता है। मुझसे जितना बन पाता है कोशिश करता हूं। कई बार कामयाब तो कई बार नाकाम। 2013 में जितना हो सका किया, 2014 में भी कोशिशें जारी रहेंगी।

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