दैनिक भास्कर के खिलाफ सौ फीसदी मामला दर्ज हो, भयभीत भास्कर ने खबर हटाई

– मयंक सक्सेना

दैनिक भास्कर ने अपनी वेबसाईट पर एक खबर छापी थी. खबर जेएनयू में हुए हादसे पर था. खबर का शीर्षक था – बदले के लिए करना चाहता था मर्डर:सेक्स तक कर चुकी थी गर्लफ्रेंड,पर बाद में उड़ाने लगी मजाक. इस खबर पर सोशल मीडिया में भास्कर की खूब फजीहत हुई. मीडिया खबर पर भी यह खबर छपी. अंततः दवाब में आकर भास्कर ने खबर वेबसाईट से हटा ली. लेकिन क्या उससे भास्कर का अपराध कम हो जाता है? इसी विषय पर युवा पत्रकार मयंक सक्सेना की टिप्पणी जो उनके फेसबुक वॉल से ली गयी है.

dainik-bhaskar-pornदैनिक भास्कर ने जो किया, दरअसल वो पहली बार नहीं किया…न ही पहली बार पत्रकारिता के इस पतन काल में किसी अखबार या टीवी चैनल ने किया है…दैनिक भास्कर महाकुंभ के दौरान जो कर चुका है, वो भी सबको याद ही होगा…दरअसल नवभारत टाइम्स ने वेब मीडिया में सॉफ्ट पोर्न परोसने की जो होड़ शुरू की थी, उसके पीछे कभी इंडिया टुडेज़ के बेवजह के सेक्स सर्वेज़ से मिली प्रेरणा थी…दैनिक भास्कर को नवभारत टाइम्स को पछाड़ना था…हिट्स चाहिए थीं…जो हुआ भी…लेकिन दरअसल पत्रकारिता के फटीचर काल का रोना यही है…नाक़ाबिल सम्पादकों की जमात रेस में आगे बने रहने के लिए नए और सकरात्मक तरीके सोचने में अक्षम थी…ज़ाहिर है मनोहर कहानियां पढ़ते रहे सम्पादक वैसे ही रास्ते खोजते रहे…

दैनिक भास्कर ने जो इस बार किया है वो इतना शर्मनाक है कि शायद मुझे ये कहते हुए भी शर्म आए कि मैं वहां काम करने वाले कई लगों का दोस्त हूं…कम से कम वो सारे साथी, जो इस कृत्य को डिफेंड कर रहे हैं…उनसे अनुरोध है कि वो मुझे तत्काल प्रभाव से अनफ्रैंड कर दें…मैं इतना क़ाबिल पत्रकार नहीं कि आप के साथ इतना प्रगतिशील पत्रकार हो पाऊं…

हां, ये ज़रूर है कि अगर भास्कर ये ख़बर इस तरह से न करता…तो शायद कोई न कोई टीवी चैनल ये काम ज़रूर कर देता…सवाल ये है कि आखिर हम क्यों तब ही चिल्लाएंगे जब हमारे आस पास किसी के साथ मीडिया के ये दलाल ये हरक़त करेंगे…
आपको याद है गीतिका की खुदक़ुशी…या फिर कश्मीर की वो लड़की…या फिर और तमाम लड़कियां जिनसे धोखे और हत्या के बाद उनका चरित्र हनन हुआ था…
आज से ही ऐसे अखबारों और चैनलों का बहिष्कार कीजिए…उनके सम्पादकों के घर के बाहर धरने पर बैठना शुरु कीजिए…उनको अहसास कराइए कि नेता के घर धरने पर वो चटखारे लेकर ख़बर चलाते हैं…उनके घर पर भी वो ही होगा…अगर वो ख़ुद को उस जगह खड़ा कर लेंगे…

लेकिन मेरे उन साथियों से एक सवाल जो अब जागे हैं…जब उनके आस पास ऐसा हुआ है…क्या जेएनयू के बाहर की लड़कियों का चरित्र हनन आपको जगाने के लिए काफी नहीं था…मुझे ये कहते हुए बुरा लग रहा है…पर कहना चाह रहा हूं…मैं भी इस घटना से आप जितना ही आक्रोशित हूं…टीवी की नौकरी के दौरान कई बार दफ्तर के अंदर इसका विरोध भी करता रहा…जहां तक कर सका, इन ख़बरों को रोका भी…लड़ा भी…सम्बंध भी खराब किए…

आप शायद समझ रहे हों कि मैं क्या कह रहा हूं…हमको आंच ख़ुद तक आने से पहले ही जागना होता है…वरना लोग आपको मार्टिन नीलोमर की कविता याद दिलाने लगते हैं…वो कविता जो उससे पहले तक आप दूसरों को अक्सर सुनाते रहे हों….

बाकी दैनिक भास्कर के खिलाफ सौ फीसदी मामला दर्ज होना चाहिए…ये भी जान लीजिए…ये सब मालिकों के कहने पर नहीं होता है…मालिकों को खुश करने के लिए हिट्स बढ़वाने के लिए होता है…चापलूस सम्पादकों की कौम ऐसी ही है…इनके घर में भी महिलाएं हैं…और ये बेशर्म उनसे आंखें भी मिलाते हैं…रिपोर्टर पर नहीं सम्पादक पर केस दर्ज हो…जेल जाएं…ब्लैक लिस्टेड हों…कहीं नौकरी न मिले….

लेकिन जेएनयू के साथियों से एक विनम्र निवेदन…हर बार उतने ही संवेदनशील हों…हर बार इतना ही आक्रामक….

तो शायद कभी ऐसा नहीं होगा…किसी के साथ नहीं…

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