कुंभ मेले से पीटूसी करते कनफुंकवा रिपोर्टर

आज का पूरा दिन कुंभ मेले के नाम रहा. टेलीविजन चैनलों पर सुबह से प्रसारण शुरू हो गया. दिल्ली से टेलीविजन पत्रकारों को चैनलों ने कुंभ मेले की कवरेज के लिए भेजा. पूरे कवरेज पर मीडिया मामलों के विशेषज्ञ विनीत कुमार की कुछ टिप्पणियाँ:

  • क्रांति और मकर संक्रांति की बेतहाशा कवरेज देखकर लगता है कि इस टीवी इन्डस्ट्री को कनफुकवा मीडियाकर्मी चला रहे हैं. जिनके कान फुंके हुए होते हैं या फिर हमारी कान इस कदर फूंकना चाहते हैं कि इसके अलावे हमें कुछ सुनाई न दे. इन कनफुकवा मीडियाकर्मियों की खास बात होती है कि वो पीटूसी करते हुए इतने आत्ममुग्ध हो जाते हैं कि लगता नहीं किसी व्यावसायिक चैनल के लिए बोल रहे हैं, लगता है अंदर महंतों के आश्रम से तर माल( नदिया के पार से साभार) चापकर सार्वजनिक हुए हैं और उनका कर्ज अदा कर रहे हैं. हिन्दू होने और ऐसे महाकुंभ का हिस्सा होने का गर्व चरम पर है. दिलचस्प होगा गर कोई मुस्लिम मीडियाकर्मी को कवरेज के लिए भेजा जाए और खुली छूट हो कि वो अपने तरीके से इस पर बात करे. वैसे कैमरामैन तो कई होते ही हैं.

  • ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे महाकुंभ करने का मौका मिला… चैनलों पर जब इस तरह की लाइन सुनता हूं तो लगता है कि रिपोर्टर के भीतर का भक्त कितना मुखर हो जाता है कई बार. जब वो वापस नोएडा फिल्म सिटी आएंगे तो सबसे पहले अपने बॉस के पैर छुएंगे जिन्होंने ये सौभाग्य प्रदान किया, उनका रिपोर्टर योनि में शामिल होना सार्थक हो गया. अगर आज लाइव और फीड का जमाना नहीं होता तो क्या पता टेप के साथ-साथ पंड़ो,महंतों के चरणामृत भी पीपी पन्नी में अपने बॉस के लिए भेजते.


  • बाढ़ और जलसंकट के मौके पर हमारे जो संवाददाता हाय-तौबा मचाते हैं ( मुद्दे तो जरुरी होते हैं, संदर्भ और प्रस्तुति उटपटांग) कायदे से महाकुंभ की कवरेज के लिए उन्हें होना चाहिए न कि भक्तगण संवाददाताओं को. वो बेहतर बता पाते कि ऐसे मौके पर पर्यावरण संकट को विस्तार देनेवाले कौन-कौन से तत्व मौजूद होते हैं ? महाकुंभ की कवरेज पर्यावरण को ध्यान में रखकर की जाए तो आस्था का बैंजो बाजा बज जाएगा.


  • कुछ मीडियाकर्मी महाकुंभ की मैंचिंग कलर के कपड़े मसलन भगवा,दक-दक लाल, मरुन,पीला दिल्ली से ही लेकर गए हैं. स्क्रीन पर देखते हुए लग रहा है कि हम हिन्दी सिनेमा देख रहे हैं जिसमे हीरो,होराईन के रिश्तेदार मरे नहीं कि उधर झक-झक सफेद लखनवी चिकन में पूर परिवार चिता के आगे सज-धजकर तैयार.


  • महाकुंभ कवरेज का सबसे बड़ा सुख है कि शाम ढलते ही देर रात तक जब मीडियाकर्मी रसरंजन करते हैं, तब भी वो धर्म और पत्रकारिता का ही हिस्सा बन जाता है. लगता नहीं कि कुछ अस्वाभाविक है. इससे रमणीय जगह क्या हो सकती है कवरेज की, जहां धर्म भी चट्टान की तरह खड़ा रहे और पत्रकारिता का पताका भी लहराता रहे. है न ?

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