खान तिकड़ी पर मीडिया की मेहरबानी !

तारकेश कुमार ओझा

three khanकिस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान वाली कहावत को शायद बदलते दौर में बदल कर मीडिया मेहरबान तो गधा पहलवान करने की जरूरत है। क्योंकि व्यवहारिक जीवन में इसकी कई विसंगितयां देखने को मिल रही है। इसकी वजह शायद पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसा वाले चलन का समाज के हर क्षेत्र में हावी होते जाना है। अब बालीवुड की चर्चित खान तिकड़ी ( सलमान खान, आमिर खान व शाहरुख खान) का ही उदाहरण लें।

मीडिया खास कर न्यूज चैनलों की इनके प्रति अति सदाशयता व मेहरबानी आम आदमी के लिए किसी अबूझ पहेली से कम नहीं। इस तिकड़ी के तीनों खानों का फिल्मी दुनिया में प्रवेश 90 के दशक में हुआ। बेशक इनकी कुछ फिल्में चल निकली। लेकिन एेसी भी नहीं कि उन्हें कालजयी या असाधारण कहा जा सके। तीनों की अभिनय क्षमता भी एेसी नहीं है कि इन्हें अद्वितीय , सुपर स्टार या बादशाह कहा जा सके। इनकी भौतिक सफलता का एक बड़ा कारण शायद यह भी है कि जिस दौर में इन्होंने अभिनय शुरू किया , उसी कालखंड में आर्थिक उदारीकरण व बाजारवाद की भी शुरूआत हुई। चैनलों का प्रसार भी इसी दौर में हुआ। जिसके सहारे दो कौड़ी की फिल्मों को भी आक्रामक प्रचार के जरिए चर्चा में ला पाना संभव हो पाया।

लेकिन मीडिया की इस खान तिकड़ी के प्रति मेहरबानी का आलम यह कि इनकी किसी फिल्म के रिलीज का समय आते ही जैसे न्यूज चैनलों का नवरात्र शुरू हो जाता है। रात -दिन रिलीज होने वाली फिल्म का भोंपू बजाया जाता है। प्रचलित परंपरा को देखते हुए संभव है कि आने वाले दिनों में चैनलों के एंकर फिल्म की रिलीज के दौरान तिकड़ी के खानों की तस्वीर पर धूप – बत्ती दिखाने के बाद न्यूज पढ़ना शुरू करें। चैनलों के नवरात्र की पुर्णाहूति रिलीज वाले दिन फिल्म को महासुपरहिट घोषित करके होती है।

अब ताजा उदाहरण शाहरुख खान का लें। जनाब पिछले पांच सालों से हाशिए पर पड़े हुए हैं। उनका बाडीलैंग्वेज इस बात की चुगली करता है कि वे काफी थके हुए और असुरक्षा के दौर में है। कई साल पहले वानखेड़े स्टेडियम में सुरक्षा जवान व अन्य अधिकारी से उलझना भी इसकी पुष्टि करता है। यह और बात है कि चैनल वाले शाहरुख की इस बेअदबी को भी उनकी खासियत के तौर पर प्रचारित करते रहे। अभी कुछ दिन पहले एक चैनल मुंबई में समुद्र किनारे स्थित शाहरुख के बंगले को ही केंद्र कर घंटों स्टोरी देता रहा। बताया गया कि बादशाह का यह बंगला सैकड़ों करोड़ का है। इस आधार पर कथित बादशाह की तथाकथित संघर्षगाथा का खूब बखान भी हुआ। उसी शाम एक दूसरा चैनल बाजीगर बना जादूगर शीर्षक से शाहरुख का अपने अंदाज में महिमामंडन करता रहा। लेकिन चैनलों को उस सक्षम चरित्र अभिनेता रघुवीर यादव की जरा भी याद नहीं आई, जो बेचारा इन दिनों काफी बुरे दौैर से गुजर रहा है। अपनी पत्नी को मासिक 40 हजार रुपए देने में असमर्थ यह कलाकार अदालतों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं।

बालीवुड में ऐसे कई कलाकार होंगे, जो बेहद सक्षम व प्रतिभावान होने के बावजूद गुमनामी के अंधेरे में खोए हुए हैं। शायद इसलिए भी किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया। लेकिन चैनलों को इनकी सुध लेने की फुरसत नहीं है। जबकि शाहरुख को बादशाह आमिर को मिस्टर परफेक्सनिस्ट और सलमान खान को दरियादिल साबित करने का कोई मौका न्यूज चैनल नहीं छोड़ते, लेकिन ऐसा साबित करने के पीछे तर्क क्या है, इस पर कम ही बात की जाती है। बस गाहे – बगाहे खान तिकड़ी के महिमामंडन में ही चैनल अपनी ताकत झोंक रहे हैं। आखिर इस मेहरबानी का राज क्या है…

(लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं। तारकेश कुमार ओझा, भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास वार्ड नंबरः09 खड़गपुर ( प शिचम बंगाल))

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.