केजरीवाल की ‘भक्ति’ में ‘बाबा’ पत्रकारों के बीच कहीं लट्ठ न चल जाए !

आजतक पर पुण्य प्रसून की क्रांतिकारिता
आजतक पर पुण्य प्रसून की क्रांतिकारिता

वेद विलास उनियाल

वेद विलास उनियाल
वेद विलास उनियाल

अरविंद केजरीवालजी आपकी असली परीक्षा यही है कि आप आम आदमी के करीब हैं या बाबा किस्म के कुछ पत्रकारों के। आपकी चमचागिरी में इन्होंने पुराने रजवाड़ों के भाटों को भी पीछे छोड़ दिया है। क्रांतिकारी शब्द इनकी जुबान पर ऐसे रहता है मानों क्रांति पनसारी की दुकान पर खरीदी जाती हो। बहुत खतरनाक हैं ये लोग। इनके मंसूबे बहुत ऊंचे हैं। इनकी चाह बहुत सर्पीली है। आपको इनसे बचना है। इनसे नजदीकी बढ़ाने से पहले इन बाबाओं के आश्रम में झांक कर देख लो। आप डर जाओगे। अन्ना का आंदोलन केवल नेताओं के खिलाफ नहीं था। धर्म के बाबा और पत्रकारिता के बाबाओं के खिलाफ भी था।

दिल्ली को केवल भाजपा और कांग्रेस से ही मुक्त नहीं होना, उसे कुछ बाबा किस्म के पत्रकारों से भी मुक्त होना है। जो यह तय कराने की कोशिश करते हैं कि किसकी सरकार हो कैसे सरकार बने। सौभाग्य या दु्र्भाग्य इस समय इन बाबा किस्म के पत्रकारों का आशीर्वाद केजरीवाल के लिए बना हुआ है। अब केजरीवाल पर निर्भर है कि इनसे मुक्ति पाएं या इन्हें गले लगाए। कहीं इनमें ही एक दो बाबा पत्रकार दो साल बाद राज्यसभा में नजर न आएँ।

अरविंदजी इन बाबाओं से बचिए। ये पुखराज नहीं पहनाते हैं। ये माया रचते हैं। इनके पास शब्द हैं। इन्हें देश की गरीबी , आम आदमी की जलालत , उसकी दिक्कतों से कोई लेना देना नहीं। ये जयप्रकाश के दिए नारे से खेलते हैं। उन नारों पर अपनी दुकान सजाते हैं। इन्हें साल दो साल को कोई अरविंद केजरीवाल चाहिए होता है। जब तक केजरीवाल न मिले ये लालू मुलायम नितिश से भी काम चला लेते हैं। बचिए इन बाबाओं से । हम सतर्क ही कर सकते हैं।

वैसे दिल्ली में राज्यसभा में जाने के लिए कहीं बाबा किस्म के तीन चार पत्रकारों में आपस में लट्ठ न चल जाए। कौन केजरीवाल का बड़ा भक्त, इस पर कहीं आपस में संग्राम न हो जाए। दिल्ली असली रणक्षेत्र कहीं अब न बन जाए। बाबा किस्म के पत्रकारों से डर रही है दिल्ली।

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