देश और कश्मीर घाटी के सुर अलग क्यों?

कश्मीर पर इंडिया टीवी की पड़ताल
कश्मीर पर इंडिया टीवी की पड़ताल

अभय सिंह,राजनैतिक विश्लेषक

बचपन में दूरदर्शन पर एक गीत अत्यंत लोकप्रिय था “मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा”
परंतु आज की परिस्थितियों में भारत के स्वर्ग कश्मीर घाटी के सुर देश के सुर से जरा भी नहीं मिल रहे है।पूरे घटनाक्रम पर प्रकाश डालना यथोचित होगा।

कुछ महीने पहले घाटी में सेना के वाहन पर एकाएक आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी जिसमे कई जवान शहीद हुए इस घटना पर स्थानीय विधायक ने आँखों देखा हाल एक मीडिया चैनल पर बताया जिसे बताना बिलकुल मुनासिब नहीं होगा कि किस कदर घाटी में सेना के जवानो के साथ अमानवीयता की जाती है,उन्हें लानत भेजी जाती है एवं आतंकियों को सलामी दी जाती है।

खूंखार आतंकी,जैश कमांडर बुरहान वानी के समर्थन में घाटी में जिस तरह का विरोधाभासी माहौल बना ये अत्यंत आपत्तिजनक,संदेहास्पद है।3 महीने बाद भी आज घाटी के हालात सुधरे नहीं है जिससे पर्यटन, उद्योग अन्य आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई है।

हाल ही में बारामुला में सेना,पुलिस के संयुक्त तलाशी अभियान में 700 घरों की तलाशी में चीन पाकिस्तान के झंडे, हथियार सहित ढेरों देश विरोधी सामग्री प्राप्त हुई जिससे कश्मीर घाटी में आतंक समर्थन की कलई खुलती है।
भारत सरकार से विकास के नाम पर हर साल अरबों रूपये डकार कर,बाढ़ में सेना के अहसानों की अनदेखी कर घाटी में पाकिस्तान के समर्थन में मुहीम चलना क्या न्यायोचित है।क्या पाकिस्तान के टुकड़ों पर पलने वाले अलगाववादी कश्मीर घाटी की जनता का भविष्य तय करेंगे ये यक्ष प्रश्न है।
भारतीय सेना आतंकियों के साथ-2 घाटी में मौजूद स्लीपर सेल से भी लड़ रही है।एलओसी पर घुसपैठ करके आतंकी बड़े पैमाने पर घाटी में शरण पाते है और आकाओं का आदेश मिलते ही घात लगाकर सेना,सुरक्षा बलों पर हमला करते है।अब हम कश्मीर के राजनैतिक पहलू पर भी गौर करते है की उरी की आतंकी घटना में 20 जवानों के शहीद होने पर कश्मीर घाटी के सियासतदानों ने घटना की निंदा तक नहीं की उल्टे पाकिस्तान से बातचीत का राग अलापने लगे।

ये बात जगजाहिर है की कश्मीर घाटी के दो प्रमुख राजनैतिक दल कश्मीरियत के नाम पर आतंकियों का दबे मुँह समर्थन करते है।फारुख अब्दुल्ला का ताजा बयान इसकी पुष्टि करता है।महबूबा मुफ़्ती का अतीत अलगाववादियों ,पत्थरबाजो के समर्थन से जुड़ा हुआ है लेकिन सत्ता में रहने पर वे ही उनकी सबसे बड़ी चुनौती बन गए है ।

पैलेट गन का रोना रोने वाले नेता सेना ,सुरक्षा बलों पर निशाना साधने से पहले पत्थरबाजो,स्लीपर सेल पर क्यों नहीं चिंता जाहिर करते।

अभय सिंह ,राजनैतिक विश्लेषक
अभय सिंह,
राजनैतिक विश्लेषक

देश के हुक्मरान सेना,सुरक्षा बलो को घाटी में लगातार तलाशी अभियान चलाने की इजाजत देने की बजाय संयम बरतने की सलाह देते है आखिर क्यों?क्या देश के जवानो के हाथों में बेड़िया डालकर उन्हे घाटी में निहत्थे मरने दिया जाय।पत्थरबाजी की आँड़ में उनपर ग्रेनेड,गोलियां बरसाई जा रही है उनको निसहाय बना दिया गया है आखिर क्यों?
शायद कश्मीर घाटी की आवाम पाकिस्तान के नापाक मंसूबो से बिलकुल वाकिफ नहीं है या बलूचिस्तान,गिलगित,बाल्टिस्तान,पीओके में पाकिस्तान के भयावह अत्याचारो को जानबूझकर अनदेखा कर रही है ये अत्यंत दुखद है।

वक्त की मांग यही है की कश्मीर घाटी की आवाम भारत की विकास यात्रा से कदम से कदम मिलाकर चले ताकि कश्मीर में खुशहाली, अमन और विकास हो।

अभय सिंह
राजनैतिक विश्लेषक

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