जनता के बढते आक्रोश से बेखबर हरीश रावत

जनता के बढते आक्रोश से बेखबर हरीश रावत

चंद्रशेखर जोशी

जनता के बढते आक्रोश से जब तक तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री विजय बहुगुणा चेतते तब तक तो चिडिया चुग चुकी थी खेत- यही हाल कांग्रेस सरकार के 3साल पूर्ण होने के समय की है, वर्तमान मुख्‍यमंत्री इतने व्‍यस्‍त व घिरे हुए है कि जनता की दूरियां मन की तथा तन की बढृती जा रही है, व बढता जा रहा है जन आक्रोश- उत्‍तराखण्‍ड कांग्रेस सरकार ने मार्च मध्‍य माह 2015 में अपने तीन वर्ष पूर्ण किये, इसके लेकर पिथौरागढ् जनपद का रिपोर्ट कार्ड पेश किया है चन्‍द्रशेखर जोशी ने, उत्‍तराखण्‍ड कांग्रेस सरकार का पिथौरागढ जनपद का रिपोर्ट कार्ड- एक एक्‍सक्‍लूसिव स्‍टोरी-

जनता के बढते आक्रोश से बेखबर हरीश रावत
जनता के बढते आक्रोश से बेखबर हरीश रावत

अपना विधायक मुख्‍यमंत्री होगा, अच्‍छे दिन आएंगे, यही कहकर तो ठगा गया था हमको- यह कह रही हैं मुख्‍यमंत्री की धारचूला विधानसभा क्षेत्र की जनता, मुख्यमंत्री हरीश रावत सीमांत जिले के विकास के प्रति गंभीर हैं। धारचूला विधानसभा क्षेत्र के लिए विशेष योजनाएं संचालित होगी- कहां है यह सब। प्रश्‍न पूछ रही है आम जनता परन्तुा जवाब गायब। मुख्यमंत्री की विधानसभा होने के बावजूद उनकी मांग नहीं सुनी जा रही है। सड़क के अभाव में गांवों से तेजी से पलायन हो रहा है और सीमांत के ये गांव खाली हो रहे हैं। सीमांत तहसील धारचूला के तीन गांवों की आवाज 42 वर्षो बाद भी सरकार के कानों तक नहीं पहुंच सकी है मुख्‍यमंत्री की विधानसभा में बिजली है नहीं, केरोसिन मुश्किल से मिलता है। ग्रामीण अब भी सदियों पूर्व की भांति चीड़ के छिलकों से घर रोशन करते हैं। सबसे बड़ी समस्या गांव के छात्र-छात्राओं की है। आठवीं पास करने के बाद आगे की शिक्षा के लिए विद्यालय आने जाने में 6 से लेकर 13 किमी की खड़ी चढ़ाई पार करनी पड़ती है। गरीब परिवारों के बच्चों को रात को चीड़ के छिलकों की रोशनी में पढ़ना पड़ता है। अपना विधायक प्रदेश का मुखिया हो गया परंतु तीनों गांवों की तकदीर और तस्वीर जस की तस रही। चुनाव के दौरान गांवों में पहुंचे विद्युत पोल जंक खा रहे हैं। सात माह में एक भी पोल नहीं खड़ा नहीं हो सका। नेताओं के झूठे वादों से ग्रामीण आहत हैं। क्षेत्र के बीडीसी सदस्य विक्रम सिंह कहते हैं कि पहले अभयारण्य की बात कहकर उनकी बात नहीं सुनी जाती थी। अब बिजली नहीं होने को बड़ी समस्या मानने वाले नेता तवज्जो नहीं दे रहे हैं। अल्मोड़ा और बागेश्वर जनपद की सीमा से लगे चौनापातल के 12 ग्रामीण परिवारों के नसीब में बिजली का प्रकाश नहीं है। 22 वर्ष पूर्व बिछाई गई विद्युत लाइन में अब तक करंट नहीं दौड़ सका है। 22 वर्षो से बिजली आने के इंतजार में बैठे ग्रामीणों का भी धैर्य अब जबाव देने लगा है। 28 वर्षो तक अस्कोट कस्तूरा अभयारण्य का रोड़ा और अब व्यवस्था के फेर से तीन गांवों के 145 परिवारों के घरों का अंधेरा दूर होता नजर नहीं आ रहा है। सात माह पूर्व सीएम के चुनाव के दौरान 30 दिन में गांवों को जगमग करने का वादा 180 दिन बाद भी पूरा नहीं हो सका है। बिजली से वंचित तीन गांवों के ग्रामीण भी अब गांवों के जगमग होने के सपने को त्याग कर अपने ढंग से जीने का मन बना चुके हैं। 15 गांवों की महिलाएं पुनर्वास, पेयजल व सुरक्षा को लेकर सडकों पर उतरी वही जून 2013 की आपदा से प्रभावित धारचूला, कनालीछीना, मुनस्यारी और डीडीहाट विकास खंडों के 15 अनुसूचित गांवों की समस्याओं को लेकर महिलाओं ने आरोप लगाये हैं। तीन गांवों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए नौ वर्ष पहले से 63 लाख रुपए की लागत से बन रही पेयजल योजना में अभी तक पानी नहीं आया है। धारचूला में पांच दशक बाद भी भूमि का मालिकाना हक नहीं मिलने से परेशान ग्रामीणों ने सड़क पर उतर कर मुख्यमंत्री के खिलाफ नारेबाजी कर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। रोड़ा भी दूर हुआ, अपना विधायक प्रदेश का मुखिया हो गया परंतु तीनों गांवों की तकदीर और तस्वीर जस की तस रही। चुनाव के दौरान गांवों में पहुंचे विद्युत पोल जंक खा रहे हैं। सात माह में एक भी पोल नहीं खड़ा नहीं हो सका। हरीश रावत के झूठे वादों से ग्रामीण आहत हैं।

लचर कानून व्यवस्था, अवैध खनन, विकास कार्यो की अनदेखी और आपदा पीड़ितों को अब तक मदद नहीं दिए जाने के विरोध में जनता में नाराजगी है। अवैध खनन धडल्‍ले से चल रहा हैं। खननकर्ता गोरी नदी से सीधे रेत निकाल रहे हैं। इसके लिए नदी तल तक अवैध सड़क भी बनाई गई है। खड़िया खनन से जमीन को खतरा पैदा हो गया है, पिथौरागढ़ के देवलथल क्षेत्र में खड़िया खनन के लिए पोकलैंड मशीन लगाने से नाराज जोशी गांव की महिलाओं ने रामकोट में चक्का जाम कर दिया। प्रदेश की हरीश रावत सरकार को कोरी घोषणाएं करने वाली सरकार बताया जा रहा है। गौरतलब है कि तीन वर्ष पूरे होने जा रहे हैं पिथौरागढ सीमांत जिले में एक इंच सड़क का निर्माण नहीं हुआ है। शिक्षा और स्वास्थ्य के हाल इससे भी बुरे हैं। वही धारचूला क्षेत्र में गैस उपभोक्ताओं की संख्या 16987 है। उपभोक्ताओ को गैस की समस्‍या का समाधान नही पाया हैं। चिकित्सा विहीन क्षेत्रों में सचल वाहन के जरिए चिकित्सा पहुंचाने की सरकारी मंशा सफल होती नहीं दिख रही है। सुविधा विहीन ये वाहन अब सिर्फ ईधन फूंकने तक सीमित हैं, गरीब जनता को स्वास्थ्य सेवा के नाम पर गुमराह किया जा रहा है। वही बीएडीपी के तहत मिलने वाला बजट सीमांत क्षेत्रों में खर्च नहीं किया जा रहा है। बजट जिला मुख्यालय में खर्च करने से सीमांत के लोगों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। राज्य वित्त से संचालित योजनाओं के लिए 50 फीसद धनराशि अग्रिम भुगतान के बाद भी धरातल पर कोई कार्य नहीं हो रहा है। पिथौरागढ जनपद में सरकार की झूठी घोषणाओं की पोल खुल रही है। पुरान से चमाली, जाख से रावलगांव, जीआइसी से पौण, पपदेव, अशोक नगर से भाटीगांव, बडारी से पंथ्यूड़ी, जमतड़ी से हल्दू, घंटाकरण से पुनेड़ी, छेड़ा से भुरमुनी तक लगभग 27 ग्रामीण सड़कों में कांग्रेस शासनकाल में एक इंच भी कार्य नहीं हुआ है। इन सड़कों को भाजपा जहां पर छोड़ गई थी कांग्रेस ने उन्हें आगे बढ़ाने का कार्य नहीं किया है।

मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में हो रहे विकास कार्यो में भ्रष्टाचार
वही डीडीहाट के विधायक विशन सिंह चुफाल ने कांग्रेस की घेराबंदी करते हुए मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में हो रहे विकास कार्यो में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कार्यो की सीबीआइ जांच की मांग की है। चुफाल का कहना है कि विकास कार्यो में मात्र 20 से 25 फीसद धन खर्च कर शेष कांग्रेसियों की जेब में डाला जा रहा है। कहीं-कहीं पर मात्र 5 से 10 फीसद कार्य पर ही पूर्ण भुगतान कर दिया गया है। उन्होंने दैवीय आपदा के कार्यो में बड़े घोटाले का आरोप लगाते हुए कहा कि क्षेत्र में विवेकाधीन कोष की खुली बंदरबांट हो रही है। सीडीओ ने दैवी आपदा के कार्यो की जांच की, तमाम अनियमितता पाते हुए नोटिस जारी किया, लेकिन इस जांच को ऊपरी आदेश पर दबा दिया गया है। भ्रष्टाचार नहीं रुका तो पार्टी उग्र आंदोलन को बाध्य होगी। वही कांग्रेस के असफल रिपोर्ट के विपरीत भाजपा पार्टी के सदस्यता अभियान में भारी भीड़ जुट रही है, इससे साफ है कि भाजपा अपने लक्ष्य से कहीं अधिक नए सदस्य पार्टी से जोड़ने में कामयाब हो रही है। भाजपा ने सांगठनिक रूप से बनाये गये डीडीहाट जनपद में 18 हजार नए सदस्य बनाये हैं यह सूबे मे कांग्रेस के भविष्‍य के लिए सुखद संदेश नही है।

पिथौरागढ जनपद में सरकार की झूठी घोषणाओं की पोल खुल रही है। पुरान से चमाली, जाख से रावलगांव, जीआइसी से पौण, पपदेव, अशोक नगर से भाटीगांव, बडारी से पंथ्यूड़ी, जमतड़ी से हल्दू, घंटाकरण से पुनेड़ी, छेड़ा से भुरमुनी तक लगभग 27 ग्रामीण सड़कों में कांग्रेस शासनकाल में एक इंच भी कार्य नहीं हुआ है। इन सड़कों को भाजपा जहां पर छोड़ गई थी कांग्रेस ने उन्हें आगे बढ़ाने का कार्य नहीं किया है। कांग्रेस सरकार की घोषणाएं झूठ का पुलिंदा बनकर रह जा रही हैं। भाजपा शासनकाल में कमलेश्वर पॉलिटेक्निक कॉलेज के लिए ढाई करोड़ रुपये स्वीकृत हुए थे। कांग्रेस सरकार ने मात्र एक करोड़ रिलीज किए हैं। सरकारी मिशनरी बेलगाम हो चुकी है। जनप्रतिनिधि और सीएम मात्र घोषणाएं करने तक सीमित हैं। प्रदेश के मुखिया पिथौरागढ जिले से ही विधायक हैं, परन्‍तु आज तक जिला मुख्यालय नहीं आए हैं। क्षेत्रीय विकास का धन जनप्रतिनिधियों और अफसरों की जेब में जा रहा है।

;; पिथौरागढ़ के सीमांत क्षेत्र विकास कार्यक्रम (बीएडीपी) के तहत दो वर्ष पूर्व स्वीकृत हुए कार्य अब तक धरातल पर नहीं उतर सके हैं। जिलाधिकारी ने संबंधित विभागों को स्वीकृत कार्य 31 मार्च तक पूरा करने के निर्देश दिए हैं। भारत-नेपाल और भारत-चीन सीमा से लगे विकास खंडों में केंद्र सरकार के सहयोग से बीएडीपी योजना चलाई जा रही है। इस योजना के तहत जिले को पर्याप्त बजट मिल रहा है। वर्ष 2013 में धारचूला विकास खंड में जिप्ती से मालपा तक पैदल मार्ग, मुनस्यारी विकास खंड के पांछू में पैदल मार्ग और विश्राम गृह का निर्माण, चामी में आंगनबाड़ी केंद्र, जौलजीबी में हैंडपंप का निर्माण और कैलास मानसरोवर यात्रा पथ में गब्र्याग में शौचालय का निर्माण कार्य स्वीकृत किए गए थे, लेकिन दो वर्ष बीत जाने के बाद भी ये कार्य पूरे नहीं हो पाए हैं। जिलाधिकारी सुशील कुमार ने विभागों की उदासीनता पर गहरी नाराजगी जताते हुए 31 मार्च तक हर हाल में इन कार्यो को पूरा करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा है कार्यो को आधा-अधूरा छोड़ने की प्रवृत्ति बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि क्‍या स्‍थिति हैं। वही बेरीनाग में जिलाधिकारी सुशील कुमार ने थल- पांखू मार्ग में हुए डामरीकरण की जांच के आदेश दिए हैं।

मुख्यमंत्री ने घोषणाओं की झड़ी लगाई थी
03 Dec 2014 को मुनस्यारी के सैणरांथी गांव पहुंचे मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तल्ला जोहार क्षेत्र में घोषणाओं की झड़ी लगाई थी। महावीर चक्र विजेता स्व. दीवान सिंह दानू के गांव को सड़क से जोड़ने और क्षेत्र के एक विद्यालय का नाम उनके नाम पर रखने की घोषणा की गई थी। तल्ला जोहार में छह खेल के मैदानों सहित आधा दर्जन सड़कों की घोषणा की गयी थी। वही देवलथल में तहसील सृजन का शासनादेश 12 फरवरी 2014 को जारी हो गया था। नौ माह बीतने के बाद भी देवलथल में तहसील कार्यालय नहीं खुल सका है। आज भी क्षेत्रवासियों को तहसील संबंधी कार्यो के लिए 65 किमी दूर डीडीहाट जाना पड़ रहा है। वहीं दूसरी तरफ भवन की व्यवस्था होने के बावजूद आइटीआइ संचालित नहीं हो रहा है। देवलथल में स्वीकृत तहसील और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान अब तक शुरू नहीं होने से नाराज क्षेत्रवासियों ने जिला मुख्यालय पहुंचकर कलक्ट्रेट पर प्रदर्शन किया। शीघ्र तहसील कार्यालय और आइटीआइ नहीं खुलने पर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है।

धारचूला में पांच दशक बाद भी भूमि का मालिकाना हक नहीं
धारचूला में पांच दशक बाद भी भूमि का मालिकाना हक नहीं मिलने से परेशान ग्रामीण शुक्रवार को सड़क पर उतर आए। इस दौरान ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ नारेबाजी कर विरोध-प्रदर्शन किया। इस दौरान ग्रामीणों ने मालिकाना हक दिए जाने की मांग उठाई। जौलजीबी, गौ, घाटीबगड़, छारछूम, नया बस्ती तल्ला और मल्ला, कालिका, गोठी, निंगालपानी, गलाती में दारमा घाटी के पांच हजार परिवार पांच दशक से बसे हुए हैं। इन लोगों ने मेहनत से लाखों रुपये की लागत से क्षेत्र में अपने मकान बनाए हैं, लेकिन भूमि और भवन का मालिकाना हक आज तक इन ग्रामीणों को नहीं मिल पाया है। ग्रामीण कई बार इसके लिए आवाज उठा चुके हैं। मुख्यमंत्री ने अपनी विधानसभा भ्रमण के दौरान लोगों की इस समस्या का समाधान निकालने का वायदा भी किया था, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। ऐसे में परेशान ग्रामीणों ने तहसील मुख्यालय पर जोरदार प्रदर्शन किया। ग्रामीणों ने कहा कि भूमि पर मालिकाना हक नहीं होने के कारण उनका स्थाई निवास प्रमाण पत्र तक नहीं बन पा रहा है, वे अपने संपत्ति का क्रय-विक्रय भी नहीं कर पा रहे हैं। ग्रामीणों ने इस मामले में निर्णय नहीं लिये जाने पर क्षेत्रवासियों को साथ लेकर उग्र आंदोलन शुरू करने की चेतावनी दी है। प्रदर्शन करने वालों में जीवन मार्छाल, शेर सिंह, महेंद्र सिंह, कल्याण राम, जोगा सिंह, विजय सिंह, मनोज मार्छाल, जगत चलाल, निशा सिंह सहित दर्जनों ग्रामीण शामिल थे।

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बदहाल
भारत-नेपाल सीमा पर स्थित झूलाघाट प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बदहाल है। यहां पर वर्षो पूर्व आई एक्सरे मशीन और ईसीजी मशीनें अब तक नहीं खुल सकी हैं। क्षेत्र की 15 हजार की आबादी को अब तक उपचार करने के लिए चिकित्सक तक नहीं मिल सका है। बीमारी होने पर अस्पताल जाने पर मर्ज देखने को डॉक्टर ही नहीं मिलता है। ऐसे में मरीजों की फजीहत हो रही है। दूरदराज के गांवों से पैदल चल कर मरीज पहुंचते हैं। अंत में जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ जाना पड़ता है। ऐसी व्यवस्था में जनता को कहा से स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध होगी।

मुख्यमंत्री की विधानसभा होने के बावजूद उनकी मांग नहीं सुनी जा रही है
हरीश रावत सरकार से हताश व निराश होकर अस्कोट में धौलाकोट के ग्रामीणों ने सड़क के माध्यम से सरकार को आइना दिखाया है। ग्रामीणों ने स्वयं के प्रयासों से गांव तक एक किमी सड़क का निर्माण कर दिया, सड़क भी ऐसी, जो सरकारी निर्माण संस्थाओं को आइना दिखा रही है सीमांत तहसील धारचूला के तीन गांवों की आवाज 42 वर्षो बाद भी सरकार के कानों तक नहीं पहुंच सकी है तीन गांवों के लोगों की संयुक्त सुमसौं विकास समिति की बैठक में सरकार की उपेक्षा पर रोष जताते हुए ग्रामीणों ने कहा कि मुख्यमंत्री की विधानसभा होने के बावजूद उनकी मांग नहीं सुनी जा रही है। क्षेत्र में सड़क नहीं होने से लोगों को तमाम दिक्कतें उठानी पड़ती हैं। सबसे अधिक परेशानी प्रवास के दौरान होती है। लोगों को 60 किलोमीटर दूर तहसील मुख्यालय पहुंचने के लिए दो दिन खर्च करने पड़ते हैं। सड़क के अभाव में गांवों से तेजी से पलायन हो रहा है और सीमांत के ये गांव खाली हो रहे हैं।

जनता ने निर्णय लिया कि राज्‍य सरकार सड़क निर्माण के लिए शीघ्र पहल नहीं करती है तो सड़क पर उतरना उनकी मजबूरी होगी। धारचूला तहसील मुख्यालय से 60 किलोमीटर चौदांस घाटी के अंतर्गत आने वाले सिर्खा, सिर्दाग और रूंग के लोगों ने वर्ष 1972 में गांवों को सड़क से जोड़ने की मांग की थी। तब से अब तक कई बार इन गांवों को सड़क से जोड़ने का आश्वासन दिया गया, लेकिन आश्वासन कभी पूरा नहीं हुआ। कभी अस्कोट अभयारण्य तक, कभी क्षेत्र की विषम भौगोलिक परिस्थितियों का हवाला देते हुए सड़क निर्माण में अड़ंगे डाले गए। दो वर्ष पूर्व इन गांवों को अस्कोट अभयारण्य की सीमा से बाहर कर दिया गया। बावजूद इसके सड़क निर्माण के लिए कोई पहल नहीं हुई। इन गांवों के लोग सड़क की आशा में दुनिया से विदा हो गए, लेकिन सरकारों ने इस दिशा में पहल नहीं की। वही मड़मानले विकास खंड के धूर्चू गांव के लोगों को अब भी सड़क नसीब नहीं हो सकी है। इस गांव के लिए पांच वर्ष पूर्व सड़क स्वीकृत हुई थी, जो अब तक लटकी हुई है। क्षेत्रवासियों ने मार्ग निर्माण अविलंब नहीं कराने पर सड़क पर उतरने की चेतावनी दी है।

वही क्षेत्र के बुगौर गांव से धूर्चू तक सड़क की स्वीकृति पांच वर्ष पूर्व हुई थी। धीमी गति से बन रही यह सड़क अब तक पूरी नहीं हो पाई है। धूर्चू के ग्रामीणों को अब भी सड़क तक पहुंचने के लिए ढाई किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पार करनी पड़ रही है। सड़क नहीं होने से गांव का विकास भी प्रभावित हो रहा है। कई बार मांग करने के बाद भी सड़क का निर्माण पूरा नहीं होने से ग्रामीणों में खासा आक्रोश है।
ग्रामीण वर्षो से सड़क बनने के इंतजार में हैं

पिथौरागढ़ में प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत नैनी से कनारी पाभै तक स्वीकृत सड़क का निर्माण शीघ्र कराए जाने की मांग को लेकर ग्रामीणों में आक्रोश है। सड़क निर्माण को लेकर ग्रामीणों ने जिला कार्यालय परिसर के समीप प्रदर्शन किया। सड़क निर्माण को लेकर आयोजित सभा में वक्ताओं ने कहा कि हवाई पट्टी प्रभावितों की मांग पर शासन ने नैनी-सैनी मुख्य सड़क से कनारी ग्राम सभा तक सड़क की स्वीकृति दी थी।

बेरीनाग विकास खंड के चामाचौड़ क्षेत्र को अब तक सड़क की सुविधा नहीं मिल पाई है। दो हजार की आबादी वाले इस क्षेत्र के लोगों को सड़क तक पहुंचने के लिए कई किलोमीटर की पैदल दूरी तय करनी पड़ रही है। बेरीनाग तहसील के चामाचौड़ क्षेत्र को सड़क से जोड़ने के लिए सर्वे कराया जा चुका है, लेकिन सड़क का निर्माण अब तक शुरू नहीं हुआ है। ग्रामीण वर्षो से सड़क बनने के इंतजार में हैं। सड़क नहीं होने से ग्रामीणों को तमाम परेशानियां झेलनी पड़ रही है। क्षेत्र का विकास ठप पड़ा है। ग्रामीणों का कहना है कि क्षेत्र को सड़क से जोड़ने के लिए अभी तक सिर्फ कोरे आश्वासन दिए गए हैं। मजबूर ग्रामीण सड़क पर उतरने को बाध्य हैं।

वही थल में 18 वर्ष पूर्व स्वीकृत थल-लेजम सड़क के अभी तक पूरा नहीं होने से ग्रामीण आक्रोशित हो उठे। नाराज लेजम क्षेत्र के ग्रामीणों ने थल में अस्कोट-कर्णप्रयाग और पिथौरागढ़-मुनस्यारी मार्ग पर पांच घंटे तक चक्काजाम कर प्रदर्शन किया। इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें भी होती रही। वर्ष 1997 में थल से लेजम तक चार किमी हल्का वाहन मार्ग स्वीकृत हुआ था। इस सड़क का लेजम से आगे भी विस्तार होना था। वर्ष 2008 के शासनादेशों के बाद सभी हल्का वाहन मार्गो को भारी वाहन मार्ग बनाने के शासनादेश जारी हुए। थल-लेजम हल्का वाहन मार्ग 18 वर्षो में भी पूरा नहीं हो सका है। इससे नाराज लेजम क्षेत्र के ग्रामीण थल पहुंच गए थे। थल में रामगंगा नदी पुल के पास जाम लगाकर अस्कोट -कर्णप्रयाग और पिथौरागढ़- मुनस्यारी मार्ग में वाहन संचालन ठप कर दिया।

वही टनकपुर -तवाघाट हाईवे पर बलुवाकोट बाजार के मध्य सड़क की हालत बेहद खराब है। आपदा के दौरान क्षतिग्रस्त हो चुकी सड़क की 21 माह बाद भी ग्रिफ के द्वारा दशा नहीं सुधारे जाने पर क्षेत्रीय जनता ने उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है। जून 2013 की आपदा से बलुवाकोट बाजार बुरी तरह प्रभावित हुआ था। इस दौरान बाजार के मध्य गुजरने वाले हाईवे में जगह-जगह गढ्डे बने हैं। सड़क में डामर का नामोनिशान नहीं है। गढ्डों में बरसात का पानी भरा रहता है। जिससे वाहनों के संचालन में दिक्कतें हो रही हैं, वहीं सड़क से उड़ने वाली धूल से जन स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। ग्रिफ इसके बाद भी सड़क की दशा नहीं सुधार रहा है।

वही टनकपुर-तवाघाट हाईवे चौड़ीकरण से प्रभावित भवन, दुकान, फड़ खोखा मालिक तय मुआवजा राशि को लेकर भड़क उठे हैं। उन्होंने मुआवजा राशि को मजाक बताते हुए जिलाधिकारी से इसमें बढ़ोत्तरी की मांग की है। टनकपुर – तवाघाट हाईवे चौड़ीकरण के तहत सैकड़ों भवन, दुकान , फड़ खोखा प्रभावित हो गए थे। इसके लिए प्रशासन और सड़क संचालक ग्रिफ द्वारा मुआवजे की राशि तय की गई है। जौलजीवी दूतीबगड़ में जमीन और मकान संबंधित धनराशि वितरण के लिए शिविर लगाया गया। शिविर में मौजूद एसडीएम एके पांडेय और ग्रिफ के इंजीनियर शामिल थे। इस मौके पर प्रभावितों को बताया गया कि मुआवजा राशि आठ से 30 हजार रुपये तय किए गए हैं। प्रभावितों का कहा कि जौलजीवी पिछले दो साल से आपदा से जूझ रहा है। नेपाल को जोड़ने वाला पुल नहीं बनने से व्यापारी अपने परिवारों के भरण-पोषण के लिए जूझ रहे हैं। सभी लोग बैंक कर्ज से दबे हैं। ऊपर से सड़क चौड़ीकरण के दौरान टूटने वाले मकानों, दुकानों और फड़ खोखा का मुआवजा काफी कम तय किया गया है। प्रभावितों ने जिलाधिकारी से वर्तमान रेट के आधार पर मुआवजा राशि तय करने और प्रभावितों के पुनर्वास की मांग रखी। वर्तमान में तय मुआवजा राशि को मजाक बताते हुए इसे स्वीकार्य नहीं बताया।

नाचनी के हरड़िया और रातीगाड़ में सड़क की हालत कैसी है, इसका पता बीते वर्ष बरसात के 100 दिन गवाह हैं। 100 दिनों में इन दोनों स्थानों पर 117 बार मार्ग बंद हुआ। चार दिन पहले मार्ग तीन-तीन दिनों के लिए बंद रहा। जीसी जोशी, प्रभारी ईई लोनिवि डीडीहाट का कहना है कि हरड़िया और रातीगाड़ में दैवीय आपदा मद के तहत ट्रीटमेंट कार्य होना है। इस मद में अभी तक धन नहीं मिलने से कार्य शुरू नहीं हो सका है।

थल-मुनस्यारी मार्ग में हरड़िया नाला, रातीगाड़, नया बस्ती और कालामुनि का ट्रीटमेंट नहीं हो सका है। हल्की सी बरसात में बंद होने वाले इस स्थानों पर अभी तक कार्य शुरू नहीं होने से मार्ग की हालत सुधरने के आसार नहीं हैं। मुनस्यारी के प्रवेश द्वार में स्थित इन दोनों स्थानों पर विगत एक दशक से सड़क की हालत दयनीय है। दोनों स्थानों पर पहाड़ की तरफ से 500 मीटर की ऊंचाई से मलबा आ रहा है। जिसके चलते नया बस्ती नामक गांव बर्बाद हो गया है। हल्की सी बरसात में मलबा आने से मार्ग बंद हो जाता है। जून से लेकर अक्टूबर तक इस मार्ग में अमूमन प्रतिदिन मार्ग दो से लेकर 14 घंटों तक बंद रहता है। हरड़िया नाला लाइलाज बन चुका है। सड़क से नब्बे डिग्री कोण पर लगभग 10 मीटर नीचे रामगंगा नदी बहती है। नदी के दूसरी तरफ बागेश्वर जनपद में भी कमोवेश यही स्थिति बनी है। इस स्थान पर सड़क को डाइवर्जन करने के लिए भी विकल्प नहीं है। सड़क का 20 मीटर हिस्सा धंसता जा रहा है। कभी भी सड़क पूरी तरह रामगंगा नदी में विलीन होने के आसार हैं। इस क्षेत्र में जून पहले सप्ताह से ही वर्षा शुरू हो जाती है। अभी तक पुल निर्माण के लिए कोई कार्रवाई शुरू नहीं हो सकी है। वहीं लोनिवि ने ट्रीटमेंट के लिए दैवी आपदा मद से हरड़िया के लिए 22 लाख, रातीगाड़ के लिए 20 लाख और नया बस्ती के लिए 18 लाख रुपये के टेंडर लगाए। टेंडर लगे दो माह बीत चुके हैं। शासन से दैवीय आपदा मद के तहत धन ही नहीं मिला है। बिना धन के लगे टेंडर किसी काम के नहीं हैं। इससे स्पष्ट हो रहा है कि थल-मुनस्यारी मार्ग पर हरड़िया और रातीगाड़ इस बार भी आंसू बहाने वाला है।

पीएमओ की दिलचस्‍पी से धारचूला और मुनस्यारी में सबसे अधिक सड़कें स्वीकृत
पिथौरागढ़ जनपद के अन्‍तर्गत चीन और नेपाल सीमा से सटे धारचूला और मुनस्यारी विकास खंडों में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत सड़कों का जाल बिछाया जाना चाहिए था। धारचूला तथा मुनस्‍यारी दोनों ब्लॉकों में 29 मोटर मार्गो का निर्माण होना है। इन सड़कों को लेकर पीएमओ की दिलचस्‍पी से धारचूला और मुनस्यारी में सबसे अधिक सड़कें स्वीकृत हुई हैं। सीमांत में स्वीकृत सड़कों में मदकोट -तौमिक 27 किमी, बला होकरा -नामिक 19 किमी, सेलापानी -बुई 12 किमी, मुनस्यारी -हरकोट 9.75 किमी मुनस्यारी क्षेत्र की हैं। धारचूला विकास खंड में एलागाड़- जुम्मा 14.50 किमी, टनकपुर तवाघाट हाईवे से रांथी 20.50 किमी, छिरकिला से जम्कू 8.50 किमी, हाईवे से खेला गर्गुवा नौ किमी, स्यांकुरी – धामीगांव 7 किमी, पांगला जयकोट – कुरीला 22.70 किमी, सोसा से सिर्दाग -सिर्खा 7 किमी, बलुवाकोट से पय्यापौड़ी 16 किमी, गोठीमल्ला -तल्ला लिणुवा छह किमी शामिल हैं। इसके अलावा मुनस्यारी में मदकोट -फाफा 16 किमी, सेराघाट -गोल्फा 15 किमी, आदिचौरा -सीणी 15 किमी, सोबला-उमचिया 15 किमी, कालिका-खुम्ती 13 किमी, गलाती -रमतोली 15 किमी, बंगापानी -जाराजिबली 19 किमी सहित अन्य सड़कें नए निर्देशों के तहत कार्रवाई में हैं। बरम से कनार और चामी से मेतली सड़कों की जिम्मेदारी वन विभाग को सौंपी जा रही है।

22 वर्षो से बिजली आने के इंतजार में
अल्मोड़ा और बागेश्वर जनपद की सीमा से लगे चौनापातल के 12 ग्रामीण परिवारों के नसीब में बिजली का प्रकाश नहीं है। 22 वर्ष पूर्व बिछाई गई विद्युत लाइन में अब तक करंट नहीं दौड़ सका है। 22 वर्षो से बिजली आने के इंतजार में बैठे ग्रामीणों का भी धैर्य अब जबाव देने लगा है। सेराघाट ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले चौनापातल तोक गांव में 12 परिवार रहते हैं। इस तोक गांव को ऊर्जीकृत करने के लिए वर्ष 1992 में बिजली की लाइन खींची गई। लाइन तो खींच दी परंतु 22 वर्षो बाद भी लाईन में करंट नहीं दौड़ा। हालत यह है कि बिजली लाइन क्षतिग्रस्त हो चुकी है। बीच में ग्रामीणों को विभाग सहित नेतागण राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के तहत बिजली देने का आश्वासन देते रहे। इधर उक्त योजना का नाम बदल कर दीनदयाल विद्युतीकरण हो गया, परंतु गांव की तस्वीर नहीं बदली। 22 वर्षो से ठगे जा रहे ग्रामीण अब किसी आश्वासन पर भरोसा नहीं कर रहे हैं।

15 गांवों की महिलाएं पुनर्वास, पेयजल व सुरक्षा को लेकर सडकों पर उतरी
15 अनुसूचित गांवों की समस्याओं को लेकर महिलाओं ने आरोप लगाया
पिथौरागढ़ में 15 गांवों की महिलाएं पुनर्वास, पेयजल व सुरक्षा को लेकर सडकों पर उतरी। इस दौरान जून 2013 की आपदा से प्रभावित धारचूला, कनालीछीना, मुनस्यारी और डीडीहाट विकास खंडों के 15 अनुसूचित गांवों की समस्याओं को लेकर महिलाओं ने शासन-प्रशासन पर मात्र दस्तावेजी कार्रवाई करने का आरोप ल्रगाया है। जून 2013 की भीषण आपदा में चारों विकास खंडों के लगभग 15 अनुसूचित जाति बाहुल्य ओढ़गांव, लोहारगांव, गर्जियाधार, तोली, बलमरा, संगलतड़, घट्टाबगड़, बरम, हुड़की, चामी, मवानी दवानी, उमरगड़ा, ढुंगातोली, गोठी, घाटीबगड़ काली और गोरी नदी के कटाव से त्रस्त हुए थे। इनमें से कुछ गांव आपदा राहत और पुनर्वास से वंचित रह गए थे। इससे नाराज महिला अधिकार संगठन की महिलाओं ने गांवों मे ंपुनर्वास, पेयजल योजनाओं की मरम्मत और गांवों को बचाने के लिए सुरक्षा दीवारों के निर्माण की मांग कर करते हुए उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है।

कुकिंग गैस की किल्लत
पिथौरागढ़ जनपद में कुकिंग गैस की किल्लत गहरा गई है। कई उपभोक्ताओं को खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। जिले में पिछले तीन दिनों से गैस का संकट बना हुआ है। जिला मुख्यालय में ही हर रोज पांच वाहन कुकिंग गैस की जरूरत होती है, लेकिन यहां एक-दो वाहन ही पहुंच रहे हैं। इसके चलते संकट गहरा गया है। गैस का संकट पैदा होने से लोगों में गहरा आक्रोश है। लोगों को जरूरी काम छोड़कर गैस सिलेंडर के लिए घंटों लाइनों में लगना पड़ रहा है। पिथौरागढ़ नगर के टकाना क्षेत्र में विगत कई दिनों से गैस सिलेंडर नहीं बंटे हैं। टकाना क्षेत्र में उपभोक्ता रोज गैस सिलेंडर के लिए लाइन लगाते रहे हैं।

सीएम की विधानसभा में प्राथमिक विद्यालय की दुर्दशा
पिथौरागढ जनपद के धारचूला तहसील के रांथी ग्राम पंचायत के अंतर्गत पड़ने वाला प्राथमिक विद्यालय दायर में होली अवकाश के बाद से विद्यालय में ताले नहीं खुले है। कारण तैनात दो स्थाई शिक्षक अवकाश के बाद से नदारद हैं। ऐसे में बच्चे स्कूल में ताला लटका देख घर लौट जाते हैं। प्राथमिक विद्यालय दायर में 35 बच्चे पढ़ते हैं। इन बच्चों को पढ़ाने के लिए विभाग ने दो शिक्षक तैनात किए हैं। मुख्‍यमंत्री की विधानसभा में प्राथमिक स्‍कूलों का यह हाल है, इससे ग्रामीणों का धैर्य भी जबाव दे जा रहा है। ग्राम प्रधान लीला धामी के नेतृत्व में पहुंचे ग्रामीणों ने तहसील मुख्यालय पहुंच कर उपजिलाधिकारी एके पांडेय के समक्ष रोष व्‍यक्‍त किया।

वही विकास खंड मूनाकोट के बड़ालू ग्राम पंचायत में किए गए बीपीएल सर्वे को लेकर ग्रामीणों में आक्रोश है। गरीब को अमीर और अमीर को गरीब दर्शाए गए सर्वे के खिलाफ गांव की महिलाओं ने 26 किमी दूर जिला मुख्यालय पहुंच कर सर्वे को निरस्त कर नए सिरे से सर्वे कराने की मांग की गई। महिलाओं ने कहा कि गांव के संपन्न परिवारों को बीपीएल दर्शा दिया गया है। वास्तविक बीपीएल परिवार जो मेहनत, मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं, उन्हें एपीएल दर्शाया गया है। सर्वे में पूर्व से ही बीपीएल घोषित परिवार भी नए सर्वे में एपीएल दर्शा कर गरीबों के साथ अन्याय किया गया है। महिलाओं का कहना है कि बीपीएल परिवारों के चिन्हीकरण के दौरान ही पक्षपात पूर्ण नीति अपनाई जा रही थी। ग्रामीणों ने इसका विरोध भी किया, परंतु सर्वे कर रहे सरकारी मुलाजिमों ने बीपीएल परिवारों की एक नहीं सुनी।

अस्‍पतालों का यह हाल है
लोहाघाट क्षेत्र में: अस्‍पतालों का यह हाल है कि पीपीपी मोड के तहत संचालित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर प्रसव पीड़िता के तपड़ने के बाद भी अस्पताल कर्मचारी नहीं पसीजे। तीन घंटे तक तड़पती महिला को वे देखते रहे। आखिरकार प्राथमिक उपचार के बाद महिला को चम्पावत के लिए रेफर कर दिया गया। जबकि राज्‍य सरकार इस बारे में बडे बडे विज्ञापन जारी करती है। ज्ञात हो कि होली पर्व पर बाराकोट विकास खंड की ग्राम सभा नौमाना के ग्रामीण श्याम जोशी अपनी पत्‍‌नी ज्योति जोशी को प्रसव कराने के लिए लोहाघाट सीएचसी लाए हुए थे। यहां चिकित्सकों व अस्पताल कर्मियों ने महिला की तीन घंटे तक कोई सुध नहीं ली। इसके कारण महिला प्रसव पीड़ा से तड़पती रही। बाद में अस्पताल कर्मियों द्वारा परिजनों से अभद्रता करते हुए महिला को बिना देखे ही चम्पावत रेफर कर दिया।

नौ वर्ष पहले से 63 लाख रुपए की लागत से बन रही पेयजल योजना में अभी तक पानी नहीं
पिथौरागढ़ में तीन गांवों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए नौ वर्ष पहले से 63 लाख रुपए की लागत से बन रही पेयजल योजना में अभी तक पानी नहीं आया है। तीनों गांवों की लगभग ढाई हजार की आबादी पानी के लिए तरस रही है। बगना शक्तिपुर पेयजल योजना अक्टूबर 2006 से बननी शुरु हुई। 15.6 किमी लंबी इस पेयजल योजना में दो किलो लीटर और पांच किलो लीटर के दो जलाशय भी बने हैं। योजना में कुल 19लाख 22 हजार रुपए लागत के जीआइ पाइप लगे हैं। तीनों गांव बगना शक्तिपुर, सितोली और ख्वांकोट के ग्रामीणों को पानी पिलाने के लिए 34 स्टैंड पोस्ट लगाए गए हैं। प्रति परिवार पांच रुपये प्रतिमाह के हिसाब से जलमूल्य वसूलने का प्राविधान है। विभाग के अनुसार अक्टूबर 2006 से शुरु पेयजल योजना का निर्माण जून 2012 में पूरा होना गया है। नौ वर्ष पूरे होने को हैं। योजना में पानी नहीं आ रहा है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली लड़खड़ा गई
पहाड़ में आज भी बड़ी आबादी सार्वजनिक वितरण प्रणाली से मिलने वाले राशन पर ही निर्भर है। गरीब लोग इसी राशन से अपना गुजारा करते हैं। चैत्र माह नजदीक है और इस माह लोगों को सबसे अधिक गेहूं की जरूरत पड़ती है और इसी माह गेहूं उपलब्ध नहीं होने से लोग परेशान हैं। चैत्र माह में पर्वतीय क्षेत्रों में भिटौला का महीना होता है। इसके लिए विवाहिता बहनों को गेहूं के आटे के पकवान बना कर भेजे जाते हैं। इसके चलते इस माह गेहूं की मांग अधिक रहती है। – पिथौरागढ जनपद के डीडीहाट व अन्‍य तहसीलों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली लड़खड़ा गई है। जरूरत का आधा गेहूं ही जिले में पहुंचने से लोगों को राशन की दुकानों से खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। गेहूं न मिलने से गरीबों में आक्रोश बढ़ रहा है। सीमांत जिले पिथौरागढ़ को हर माह 9600 कुंतल गेहूं मिलता है, लेकिन इस माह जिले को 4500 कुंतल गेहूं कम दिया गया, जिसके चलते जिले भर की राशन की दुकानें खाली हैं। सबसे अधिक समस्या डीडीहाट क्षेत्र में हैं। यहां की दो दर्जन राशन की दुकानों में से डेढ़ दर्जन दुकानों में गेहूं उपलब्ध नहीं है। उपभोक्ताओं को दुकानों से खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। उपभोक्ता राशन की दुकानों के चक्कर काट रहे हैं, जनता ने शीघ्र गेहूं उपलब्ध नहीं कराए जाने पर सड़कों में उतरने की चेतावनी दी है।

क्रमिक अनशन शुरू करने की चेतावनी
वही पिथौरागढ़ में लंबे समय से जर्जर पांडेगांव पुल सुधारीकरण के लिए पहल नहीं होने से खिन्न क्षेत्रवासियों ने जिला कार्यालय परिसर में प्रदर्शन किया। क्षेत्रवासियों ने एक सप्ताह में पुल सुधारीकरण के लिए पहल नहीं होने पर क्रमिक अनशन की चेतावनी दी है। ज्ञात हो कि डिग्री कालेज, जीआइसी, इंजीनिय¨रग कालेज सहित तमाम बड़े संस्थानों और हजारों की आबादी को जोड़ने वाला पांडेगांव पुल लंबे समय से जर्जर है। पुल से दिनभर वाहन गुजरते रहते हैं, जिसमें स्कूल बसें भी शामिल हैं। खुद लोनिवि इस पुल की हालत को दयनीय बता चुका है, बावजूद इसके पुल के सुधारीकरण के लिए कोई पहल नहीं हो रही है। क्षेत्रवासी बड़े हादसे की आशंका से सहमे हुए हैं। क्षेत्रवासियों ने पुल सुधारीकरण के लिए पहल नहीं होने पर जिला कार्यालय परिसर में क्रमिक अनशन शुरू करने की चेतावनी प्रशासन को दे दी है।

कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर अतिक्रमण
कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर अतिक्रमण हो गये हैं। कैलास मानसरोवर यात्रा पूर्व में थल, डीडीहाट, अस्कोट होते हुए धारचूला तक पहुंचती थी। इसके लिए यात्री थल से पैदल मार्ग का उपयोग करते थे। इस मार्ग पर लंबे समय से अतिक्रमण चल रहा था। दर्जन भर भवन स्वामियों ने नौ फिट चौड़े इस मार्ग पर सात फिट तक अतिक्रमण कर लिया था, जिसके चलते लोगों को आवागमन में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था, क्षेत्रवासी लंबे समय से ऐतिहासिक महत्व के इस मार्ग से अतिक्रमण हटाए जाने की मांग उठा रहे थे। कैलास मानसरोवर यात्रा के पैदल मार्ग पर अतिक्रमण कर मकानों का निर्माण हो चुका है। नौ फिट चौड़ा पैदल मार्ग पड़ावों के आसपास सिमट कर मात्र दो फिट रह गया है। वर्ष 1960 से पूर्व कैलास मानसरोवर यात्रा काठगोदाम और टनकपुर से पैदल होती थी। इसके लिए काठगोदाम और टनकपुर से भारत तिब्बत सीमा लिपूलेख तक पैदल मार्ग बने थे।

काठगोदाम से बना मार्ग अल्मोड़ा, बेरीनाग, थल, डीडीहाट, अस्कोट होते धारचूला और लिपूलेख तक जाता था। पैदल मार्ग छह फिट चौड़ा था और पड़ावों के निकट मार्ग की चौड़ाई नौ फिट थी। वर्ष 1960 के भारत चीन युद्ध के बाद कैलास मानसरोवर यात्रा 21 सालों तक बंद रही। वर्ष 1981 में भारत और चीन सरकारों के बीच वार्ता के बाद कैलास मानसरोवर शुरू हुई। इस अवधि में धारचूला से आगे तवाघाट तक सड़क बन जाने से यात्रा तवाघाट तक वाहनों से होने लगी। पैदल यात्रा मार्गो का संचालन लोक निर्माण विभाग के पास है। पैदल यात्रा मार्ग धरोहर होने के बाद भी लोनिवि इन मार्गो का संरक्षण नहीं कर रही है। थल बाजार सहित आसपास के गांवों में कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग में अतिक्रमण कर मकान तक बन चुके हैं। नौ फिट चौड़ा मार्ग दो फिट भी नहीं रह चुका है।

पिथौरागढ़ में आठ माह के रुके मानदेय भुगतान की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे 156 मनरेगा कर्मियों की सेवाएं समाप्त कर दी हैं। सात वर्षो से सेवा दे रहे कर्मचारियों में प्रशासन के इस फैसले से आक्रोश फैल गया है। आंदोलनरत मनरेगा कर्मचारियों को काम से हटाए जाने की धमकी के बाद कर्मचारियों में गहरा आक्रोश है। कर्मचारियों ने शीघ्र मांगें नहीं माने जाने पर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है। आठ माह से रुके वेतन का भुगतान करने, यात्रा भत्तों का भुगतान करने, राज्य कर्मचारी घोषित किए जाने की मांग को लेकर मनरेगा कर्मी धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।

मार्ग अक्‍सर यातायात के लिए बंद
धारचूला में तवाघाट- गर्बाधार मार्ग अक्‍सर यातायात के लिए बंद हो जाता है। मार्ग बंद होने से गर्बा, जिप्ती सहित व्यास घाटी का शेष दुनिया से संपर्क कटा जाता है। वर्षा से तवाघाट-गर्बाधार मार्ग में मार्ग बंद हो जाता है। मार्ग बंद होने से गाला, जिप्ती, मांगती सहित लगभग एक दर्जन से अधिक गांवों के ग्रामीणों को पैदल आवाजाही करनी पड़ती है। यही मार्ग व्यास घाटी को भी जोड़ता है। हालांकि व्यास घाटी में इस समय लोग नहीं रहते हैं परंतु सेना और अ‌र्द्ध सैनिक बलों के जवानों की आवाजाही जारी रहती है। मार्ग बंद होने के कारण आठ किमी की अतिरिक्त पैदल दूरी नापनी पड़ती है।
बेरीनाग में वर्षा से अल्मोड़ा-बेरीनाग- मुनस्यारी मार्ग पर मलबा आने से कई कई घंटे बंद होता रहता है। इस दौरान सैकड़ों वाहन फंस जाते हैं। हल्द्वानी, अल्मोड़ा, मुनस्यारी, बेरीनाग, डीडीहाट, धारचूला आने जाने वाले सैकड़ों यात्री फंसते हैं। व्यस्ततम मार्ग होने के कारण देखते ही देखते हल्द्वानी, अल्मोड़ा, बेरीनाग, गंगोलीहाट, थल, मुनस्यारी, डीडीहाट और धारचूला से आने जाने वाले वाहनों की कतार लग जाती हैं।

परिवहन निगम की बस सेवा
पिथौरागढ जिले में परिवहन निगम की बस सेवा के हाल बेहाल है। बस के मार्ग पर खराब होने पर यात्रियों को बेसहारा छोड़ा जा रहा है। इसे लेकर जनता में रोष व्याप्त है। हाल में पिथौरागढ़ डिपो की धारचूला से दिल्ली जाने वाली बस थल में खराब हो गई। यात्रीगण विकल्प की मांग करते रहे। इसी दौरान दिल्ली से धारचूला आ रही बस भी थल पहुंच गई। रोडवेज के चालक, परिचालक ने रोडवेज कार्यालय पिथौरागढ़ से संपर्क साधा। कार्यालय से मिले निर्देशों के बाद धारचूला से दिल्ली जा रहे यात्रियों को खराब बस से उतार कर दिल्ली से धारचूला जा रही बस में बैठा दिया। उस बस को थल से ही वापस फिर दिल्ली की तरफ जाने के आदेश दे दिए। दिल्ली से धारचूला जा रहे आठ यात्रियों को थल में ही उतार दिया गया। यात्री थल से टैक्सियों से धारचूला को गए। यात्रियों ने रोडवेज की इस कार्रवाई पर गहरा रोष जताया है। स्थानीय जनता ने भी यात्रियों को इस तरह उतारने पर नाराजगी जताई है।

खड़िया खनन ;जमीन को खतरा पैदा
पिथौरागढ़ के देवलथल क्षेत्र में खड़िया खनन के लिए पोकलैंड मशीन लगाने से नाराज जोशी गांव की महिलाओं ने रामकोट में चक्का जाम कर दिया। तीन घंटे तक लगा जाम पुलिस कर्मियों के पहुंचने के बाद खुला। महिलाओं ने पोकलैंड मशीन का उपयोग बंद नहीं किए जाने पर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है। क्षेत्र में हो रहे खड़िया खनन के लिए पोकलैंड मशीन लगाने से ग्रामीणों में गहरा रोष है। ग्रामीण इसका लगातार विरोध कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन द्वारा मशीनों का उपयोग बंद नहीं कराए जाने से खिन्न महिलाओं ने पिथौरागढ़-थल मोटर मार्ग पर रामकोट के पास चक्का जाम कर दिया। भीषण ठंड में महिलाएं रात्रि सात बजे से सड़क पर बैठ गई। महिलाओं ने कहा कि भारी मशीनों के उपयोग से उनकी जमीन को खतरा पैदा हो गया है, जल स्रोतों के प्रभावित होने की भी पूरी संभावना है। क्षेत्र के साथ इस तरह के खिलवाड़ को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। महिलाओं ने अविलंब पोकलैंड मशीनों का उपयोग बंद कराए जाने की मांग की। पोकलैंड चालक द्वारा दोबारा क्षेत्र में मशीन न लाने के आश्वासन पर महिलाओं ने जाम खोला। देर रात वाहनों की आवाजाही शून्य होने के कारण लोगों को जाम के चलते किसी तरह की परेशानी नहीं उठानी पड़ी।

30 दिन में गांवों को जगमग करने का वादा 180 दिन बाद भी पूरा नहीं
28 वर्षो तक अस्कोट कस्तूरा अभयारण्य का रोड़ा और अब व्यवस्था के फेर से तीन गांवों के 145 परिवारों के घरों का अंधेरा दूर होता नजर नहीं आ रहा है। सात माह पूर्व सीएम के चुनाव के दौरान 30 दिन में गांवों को जगमग करने का वादा 180 दिन बाद भी पूरा नहीं हो सका है। बिजली से वंचित तीन गांवों के ग्रामीण भी अब गांवों के जगमग होने के सपने को त्याग कर अपने ढंग से जीने का मन बना चुके हैं। जुलाई माह में इस क्षेत्र से जब प्रदेश के मुखिया हरीश रावत चुनाव लड़ रहे थे। गोरीछाल क्षेत्र के सड़क से छह से लेकर 13 किमी की दूरी पर स्थित देवथल, बरमधार और वन बाननी गांवों में नेताओं का जमघट लगा रहता था। यहां पहुंचे कांग्रेस के नेताओं ने चुनाव संपन्न होने के 30 दिन के भीतर गांवों को बिजली देने का वादा ही नहीं किया अपितु चुनाव के दौरान ही ग्रामीणों को आकर्षित करने के लिए बिजली के पोल तक गांवों में पहुंचा दिए। गांवों में बिजली आने की खुशी में ग्रामीणों ने भी नेताओं को पूरा सहयोग दिया। चुनावों में सीएम हरीश रावत जीत गए। चुनाव जीते सात माह गुजर गए। 30 दिनों के भीतर गांवों में आने वाली बिजली अब तक नहीं पहुंची है।

आपदा प्रभावित क्षेत्र के तीनों गांव देवथल, बरमधार और वन बाननी की समस्याएं तो अनगिनत हैं। ग्रामीणों को वाहन पकड़ने के लिए 6 से लेकर 13 किमी की पैदल दूरी नापनी पड़ती है। 28 वर्षो तक क्षेत्र में पैदल रास्ते से लेकर पेयजल लाईन तक अभयारण्य के चलते नहीं बन सके। बीते वर्ष ये गांव अभयारण्य की सीमा से बाहर हो गए, वहीं क्षेत्र के विधायक प्रदेश के मुखिया हरीश रावत बन गए।

रोड़ा भी दूर हुआ, अपना विधायक प्रदेश का मुखिया हो गया परंतु तीनों गांवों की तकदीर और तस्वीर जस की तस रही। चुनाव के दौरान गांवों में पहुंचे विद्युत पोल जंक खा रहे हैं। सात माह में एक भी पोल नहीं खड़ा नहीं हो सका। हरीश रावत के झूठे वादों से ग्रामीण आहत हैं।

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