पत्रकारिता में पेड न्यूज है और फेसबुक पर पेड व्यूज

ओम थानवी, संपादक, जनसत्ता

पत्रकारिता में Paid News है: झूठी खबर लिखने के लिए उगाही होती है; उसी तरह फेसबुक पर Paid Views हैं: विरोधियों को गाली देने, बदनाम करने, निरर्थक बहस में उलझाने के पैसे मिलते हैं। पेड न्यूज से पेड व्यूज शायद आसान काम है, क्योंकि उसे अकेले और एकांत में चुपचाप अंजाम देना होता है। पकड़े जाने पर पेड न्यूज वाले को मुश्किल पेश आ सकती है; पेड व्यूज वाले का तो कुछ न बिगड़ेगा क्योंकि उसकी पहचान ही नहीं है, ब्लॉक हुए तो सौ फर्जी आइ-डी जेब में मौजूद मिलेंगी। 62 के चीनी सैनिकों की तरह: मारते जाइए, गिनते जाइए!

मजा यह कि कुछ पेड व्यूज वाले तो उनकी वाल से ही पकड़ में आ जाएंगे: अज्ञातकुलशील, नाम नकली, संदिग्ध चित्रावली। थोड़े बुद्धिमान हों तो भ्रमित करने को स्कूल-कालेज का पता, नौकरी का ठिकाना (अब जांच करने कौन बैठेगा!) और इधर-उधर की असल-सी तसवीरें, यहाँ तक कि ‘रिश्तेदारों’ की भी फर्जी आइ-डी बना कर जड़ लेते हैं। … सच्चे विरोधी की मैं कद्र करता हूँ, मगर दाद दीजिए कि फर्जी लोगों को ढूंढ़ निकालता हूँ और निर्ममता से विदा कर देता हूँ। बस वक्त मिल जाय। अभी राज्यसभा टीवी के लिए निकल रहा हूँ। एक-दो ‘पेड व्यूज’ के धनी रास्ते में टपका दूंगा। बाद को रोते रहें। लोकतांत्रिक हूँ, पर हवा-हवाई नहीं हूँ।

(स्रोत-एफबी)

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