दलाली करने वाली संस्था के कार्यक्रम में पुराने संपादकों को गुस्सा क्यों आया?

अभिषेक श्रीवास्तव

pr journalismहम लोग जब किसी गोष्‍ठी-वोष्‍ठी में जाकर टीवी चैनलों के कंटेंट का विरोध करते हैं तो चट से मंच पर से किसी संपादक का जवाब आता है कि टीवी एक cost intensive माध्‍यम है, कारोबार है, बाज़ार है, इत्‍यादि। यानी हमारे सवालों को बाज़ार और राजस्‍व की बाध्‍यता तले कुचल दिया जाता है।

शनिवार को जब मीडिया महारथी में 50 मालिक/पत्रकारों की रैंकिंग की गई, तो आखिर कुछ पुराने संपादकों को गुस्‍सा क्‍यों आ गया?

अरे भाई, एक्‍सचेंज फॉर मीडिया तो दलाली करने वाली एक संस्‍था है ही। उससे आप क्‍यों अच्‍छे पत्रकारों को पुरस्‍कार दिए जाने की उम्‍मीद करते हैं?

गुस्‍सा किस बात का? क्‍या आप भी पावर डिसकोर्स का हिस्‍सा बनना चाहते हैं/थे? क्‍या आप भी बाज़ार के एक दलाल से पुरस्‍कृत होना चाहते थे? साफ-साफ बोलिए न!

(अभिषेक श्रीवास्तव के एफबी वॉल से)

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