दिल्ली में मोदी की रैली के बहाने

दिल्ली में मोदी की रैली के बहाने

वेद विलास उनियाल

वेद विलास उनियाल
वेद विलास उनियाल

भाजपा की कमी-
1- नरेंद्र मोदी से शुरू होकर मोदी पर ही खत्म। भाजपा का क्या यही व्यक्तित्व रह गया है। क्या कल विश्वविद्यालय के छात्र संघ के चुनाव में भी मोदी की जनसभाओं की जरूरत पड़ेगी। अभी तो सफल नुस्खा है। आगे दिक्कत हो सकती है।

2- केजरीवाल की टीम ने अगर दिल्ली के राज्य के संदर्भ में मुद्दा उछाला था, तो उस पर कोई न कोई टिप्पणी की जानी चाहिए थी। इस तरह रैली में बच कर निकलना ठीक नहीं

3- आप पार्टी पर इतनी आक्रामकता। आप हर राज्य में इस तरह संदेश देते हैं मानों यह राज्य हाथ से गया तो सब चौपट हो जाएगा। माना दिल्ली आपसे निकल भी गया तो क्या देश ने आपको बहुत कुछ नहीं दे दिया। वहां कुछ करके दिखाइए। चुनाव आखिरी बार थोड़े हो रहे हैं। जितना देश आपको दे चुका है, वो क्या किसी परिणाम की अपेक्षा नहीं करता।

रामलीला मैदान में नरेंद्र मोदी की रैली
रामलीला मैदान में नरेंद्र मोदी की रैली

4- दिल्ली के चुनाव हैं। आपके मंच पर हरियाणा, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, जम्मू कश्मीर से केंद्र में मंत्री बने नेता। क्या दिल्ली के पार्टी नेताओं पर पूरा विश्वास नहीं हो पा रहा है।

5- प्रधानमंत्रीजी मतदाता से क्या कहा जाए और कैसा कहा जाए, लोकतंत्र आपको आजादी देता है। पर अच्छा लगेगा अगर आप उस ऊंचाई को कायम रखें। बात बात पर अपनी किसी बात पर लोगों से हामी भरवाना कहां तक ठीक। और हामी भरने वाले ज्यादातर लोग कौन। भीड़ में आपके कार्यकर्ता। आप पार्टी से इस तरह मत लड़िए जैसे मरण जीवन का सवाल। आप पार्टी का बचकानापन चल जाता है। भाजपा बड़ी और पुरानी पार्टी है।
केजरीवाल पर अप्रत्यक्ष अमित शाह कह ही चुके थे। आप नहीं भी कहते तो काम चल जाता।

आप पार्टी की कमी।

1- केजरीवालजी गोभी कहीं भी साठ रुपए किलो नहीं। बाजार में सस्ती सब्जी आ गई है। मटर टमाटर गोभी गाजर ठीक भाव में मिल रहा है।
लगातार झूठ बोलकर आप अपनी प्रतिष्ठा गिराते जा रहे हैं। चूरन बेचने वालों की शैली में मत कहिए। दूसरे किसे मुख्यमंत्री बनाने जा रहे हैं ये बात आप इस तरह कहते हैं मानों भाजपा की गोपनीय मीटिंग में आप आमंत्रित अतिथि की तरह गए हों।

2- आपके पास क्या टीवी में अपनी बात रखने वाले अच्छे अनुभवी लोग नहीं। केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के अलावा जो आते हैं वो कच्चे हैं। केवल मुस्कराते रहते हैं। यह श्री श्री रवि शंकर की कक्षा नहीं। राजनीति का मैदान है। किसने पढ़ा दिया है कि मुस्कराने से आधी लड़ाई जीत ली जाती है। कुछ तर्कपूर्ण बातें भी तो रखिए। योगेंद्रजी जलेबी बनाते रह जाते हैं, आशूतोष जार्ज फर्नाडीज की शैली में दिखने की कोशिश करते हैं। एक और आते हैं स्टिंग वाले। वो आप पार्टी से ज्यादा कांग्रेस और सीपीएम के प्रचारक लगते हैं।

3- कब तक नकारात्मक राजनीति करेंगे। दूसरे क्या हैं इसके बजाय हम क्या हो सकते हैं इस पर जोर दीजिए।

4- आप कहते हैं कि दूसरों पर आक्षेप नहीं लगाते। पर बंधू आपकी पूंजी तो यही है कि दूसरों पर आक्षेप लगाते लगाते आप यहां तक पहुंचे। वरना आपका खुद का क्या है। अभी कौन सी समाज सेवा कर ली आपने। बातें ही तो की हैं।

5- टिकट आप भी चुपचाप बांट देते हैं। तौर तरीके भी पुराने घाघ पार्टियों की तरह हैं। आपने भी लोक लुभावन मोर्चें बना डाले हैं। आपके यहां भी घाघों ने कुंडली मार ली हैं। नई इंट्री बहुत कठिन हैं। आप अब जन लोकपाल की बात जुबा पर नहीं लाते। अब उन तमाम बातों को भूल गए हैं , जिसकी लौ अन्ना हजारे ने जगाई थी। सच ये है कि दिल्ली के लिए कुछ नया आपके पास भी नही हैं।और अन्ना हजारे का आपको आशीर्वाद , पैसा तो आपके पास भी खूब आ गया है। आगे भी आना ही है। चाहे हारो या जीतो। दिमाग आपने भी खूब लगाया है।

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