क्या दाभोलकर मर्डर भी “ओपन एंड शट” केस है ?

सुजीत ठमके

davolkarसिंघम-01 फिल्म आप ने देखी होगी। जी हां….. सिंघम -01…. इस फिल्म में दिल को झकझोर करने वाला एक डायलॉग है। एक पुलिस अफसर की बीवी होम मिनिस्टर नारवेकर के पास पति के मर्डर का इन्साफ मांगने जाती है। बेसहारा पत्नी होम मिनिस्टर साहब से कहती है। साहब मेरे पति की मौत कैसे हुई यह आप बेहतर जानते है। मै चाहती हु मेरे पति के मौत की सीबीआई जांच हो। तब होम मिनिस्टर साहब बेबस औरत का मजाक उड़ाता है और कहता है। सीबीआई जांच। मैडम यह ” ओपन एंड शट” केस है। इसकी जांच नहीं होती इसपर धूल बैठती है। जी हां … “ओपन एंड शट” केस सही सूना आपने। इस फ़िल्मी डायलॉग से जब कोई परिवार के साथ रियल लाइफ में दो दो हाथ करना पड़ता है तब उस परिवार के दर्द और पीड़ा की दास्ताँन की कल्पना ना करना ही समझदारी है। वो पीड़ा तब और भी बड़ी होती है जब सामाजिक कार्य से जुड़े एक ऐसे सज्जन की ह्त्या होती है जिसका पूरा जीवन ही अहिंसा, शान्ति, सदाचार, सादगी के भरा है। जी हां… नरेंद्र दाभोलकर। एक सामाजिक क्षेत्र से जुड़ा महाराष्ट्रा ऐसा नाम जिन्होंने जेब भरनेवाली मोटी रकम वाले डॉक्टरी पेशे को अलविदा कहकर समाज कार्यो से जुड़े। और महाराष्ट्र अंधविश्वास समिति का गठन किया।

समाज में डायन की तरह खाने वाले अंधविश्वास, भूतबाधा, काल जादू , टोटका जैसी कई कुरीतियों को लगातार कई वर्षो के महाराष्ट्र और पडोसी राज्यों में भी उठा रहे थे। महाराष्ट्र अंधविश्वास संघठन के जरिये लाखो युवाओ को जोड़ा। और बात रखने के लिए साधना नामक मराठी साप्ताहिक भी निकाला। अंधविश्वास एवं कई विषयो पर किताबे भी लिखी। दाभोलकर कई वर्षो के लगातार मांग कर रहे थे की महाराष्ट्र में अंधविश्वास के खिलाफ सख्त कानून बने। चुकी उनके मौत के बात विधानसभा में यह कानून पारित हुआ। कानून पारित हुआ यह एक अलग विषय है। किन्तु मूल मुद्दा है दाभोलकर के मर्डर केस के गुत्थी का। यह गुत्थी सुलझती कम और उलझती ज्यादा दिख रही। २० अगस्त २०१३ पुणे । सुबहः करीब ७ बजे। दाभोलकर साहब मॉर्निंग वाक के लिए निकले और मोटर सायकल पर सवार गुंडों ने दाभोलकर पर दनादन गोलिया दागी। डॉक्टर साहब ने जगह पर ही दम तोड़ दिया। दाभोलकर साहब की जहा ह्त्या हुई वो पुणे का सेंटल इलाखा है। रियायशी इलाखा है। पास में ही बालगंधर्व रंगमंच है। चंद दुरी पर पुणे का स्थानीय बस स्थानक और लगभग सभी राजनीतिक दलों एवं सामाजिक संघठनो के दप्तर भी है। डॉक्टर दाभोलकर के ह्त्या को १ वर्ष पुरे हो चुके है। पुणे पुलिस की १७ टीमें, खुफिया विभाग, बड़े बड़े कद्दावर पुलिस अफसर, सीआईडी,खबरियो का जाल, बड़ा लाव लश्कर। और १ वर्ष बाद भी पुलिस के खाली हाथ। जी हां। …. यह है दाभोलकर केस की त्रासदी। पुलिस ने केस के हर थेओरी पर काम किया है। हर पहलू को खंगाला। पुणे पुलिस ने कई टीमें पडोसी राज्यों में भी भेजी। इर्दगिर्द के सभी सीसीटीवी फूटेज को खंगाला। फुटेज को फोरेंसिक लैब में भेजा किन्तु रिपोर्ट में क्या आया किसी को पता नहीं। स्टेट के होम मिनिस्टर आर. आर. पाटिल और पक्ष के नेता हर वक्त फिल्मी स्टाइल जवाब देते रहे। मसलन पुलिस हत्यारों के नजदीक पहुंची है। कातिल पकडे जाएंगे। मामला संवेदनशील है इसीलिए मीडिया से कुछ कहना उचित नहीं। मामले को क्राक करने में पुणे पुलिस एवं स्टेट की सीआईडी होनहार है। मामला सीबीआई के तरफ सौपने की जरुरत नहीं। इस केस का फिल्मी पहलु देखिये जिस दाभोलकर साहब ने तमाम उम्र अंधविश्वास के जंग लड़ी और अपनी जान गवाई उसी शख्स के हत्यारों को खोजने के लिए पूर्व पुलिस अफसर पोल ने प्लैनचेट जैसे अवैज्ञानिक तकनिकी का इस्माल किया। खोजी पत्रकार आशीष खेतान ने इसपर स्टिंग भी किया। इस मर्डर केस का रोचक पहलु देखिए। गृहमंत्री आर. आर पाटिल इस मामले के सीबीआई जांच को नकारा था। और विपक्ष के कुछ कद्दावर नेता इस ह्त्या का दबी जुबान समर्थन करते रहे। उन नेताओ का तर्क है की दाभोलकर हिन्दू धर्म के खिलाफ थे। दाभोलकर सीआईए के एजेंट है। विदेशो और एनजीओ से मिलने वाले करोडो के फंड के लिए दाभोलकर यह सब करते थे। किन्तु यह दलील खोखली है। दाभोलकर साहब जिस डॉक्टरी पेशे से जुड़े थे अगर वो चाहते तो खुद का मल्टी स्पेशलिटि अस्पताल खोलकर करोडो रुपये कमा चुके होते। लक्ज़री लाइफ स्टाइल जी रहे होते आदि। इस मर्डर केस में जब मीडिया, सामाजिक संघठन, दाभोलकर साहब के पुत्र हामिद दाभोलकर,पुत्री मुक्ता दाभोलकर एवं परिवार, कोर्ट ने लगातार मामले की गंभीरता को दिल्ली के नेताओ से रु -ब- रु करवाया तब कही जाकर मामला सीबीआई की तरफ गया। दरअसल दाभोलकर साहब कभी भी हिन्दू धर्म के खिलाफ नहीं थे। कुरीतियों के खिलाफ थे। दाभोलकर साहब को कट्टरपन्ति संघठनो द्वारा कई बार जाने से मारने की धमिकिया आती रही। और मर्डर के ठीक चंद घंटे बात सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर दाभोलकर साहब के खिलाफ पोस्टर झलके। यह पोस्टर क्या संकेत करता है ? क्या यह सायबर क्राइम वालो का काम नहीं था की यह पोस्टर कहा से होस्ट हो रहे है इसकी कुंडली को खंगाले ? दाभोलकर के ह्त्या से जुड़े ना जाने कई गंभीर सुलगते सवाल सरकारी मशनरी पर खड़े हो रहे है। सीबीआई की इन्वेस्टिगेशन भी इस मामले में अभी तक बहुत आगे नहीं बड़ी। ऐसेमें गंभीर सवाल उठते है क्या दाभोलकर मर्डर भी ओपन एंड शट केस है ?

सुजीत ठमके
पुणे-411002

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.