हैरतअंगेज करतब दिखाकर पेट पालने की जुगत में बच्चे-पारम्परिक पेशा या मजबूरी

रीता

children

रीता
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उम्र खेलने-कूदने की हो और स्कूल जाकर तालीम हासिल करने की लेकिन इन पर कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इन्हें विरासत में मिली अपनी परम्परा का निर्वहन जो करना है। यही कारण है कि ये कम उम्र में ही पेट पालने तथा परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी अपने नाजुक कन्धों पर लेकर शहर दर शहर घूम-घूमकर करतब दिखाते हैं। इस तरह का पेशा करने वाले प्रायः नट जाति के होते हैं, लेकिन गरीबी और बेरोजगारी की वजह से अब अन्य जाति वर्ग के लोगों ने भी इसे अपनाना शुरू कर दिया है, और उन्हें इसका अच्छा आर्थिक लाभ भी मिल रहा है। यह भी देखा गया है कि शिक्षा के अभाव में इस जाति/समुदाय के लोगों के बच्चे बड़े होकर अवैध तरीके से धनोपार्जन करना शुरू कर देते हैं, और छोटे-मोटे अपराध से लेकर जघन्य कृत्य करने से भी परहेज नहीं करते।

इनके कुनबे की युवतियाँ भी अनैतिक पेशा अख्तियार करके सुख-सुविधा, साधन की व्यवस्था करती हैं। इनके कुनबे के मुखिया (महिला-पुरूष, युवक-युवतियाँ) अपने बच्चों की कमाई का उपयोग माँस-मदिरा का सेवन करने के लिए करते हुए दुष्कृत्यों में संलिप्त रहते हैं। सुना गया है कि जो बच्चे अपने माता-पिता का कहना न मानकर करतब दिखाने से इनकार करते हैं, उन्हें उनके माँ-बाप के कोप का भाजन बनकर दैहिक प्रताड़ना भी झेलनी पड़ती है, जो कि अत्यन्त शोचनीय विषय है।

हालाँकि अब इन लोगों को भी सम्मानित जीवन जीते हुए देखा जाने लगा है। इस बारे में कहा जाता है कि कई समाजसेवी संगठनो की पहल व प्रेरणा से इनमें शिक्षा, स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा होने लगी है। इसके अलावा सरकार द्वारा दिया जाने वाला आरक्षण भी इनके लिए लाभदायी सिद्ध हो रहा है, जिसका परिणाम यह है कि ये लोग राजनीति के अलावा शासन, सत्ता एवं पुलिस व प्रशासनिक सेवाओं के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी प्रमुखता से अपना योगदान देने लगे हैं, फिर भी अभी इस तरह के लोगों को अपवाद ही माना जा सकता है।

इस जाति/समुदाय के लगभग 90 प्रतिशत लोगों में आज भी अशिक्षा है, वे अपनी पुरानी परम्पराओं की जंजीरों में जकड़े हुए हैं, और सदियों से चले आ रहे अपने रीति-रिवाजों के अनुसार ही कार्य करना उचित समझते हैं। वह चाहे बाजीगरी व करतब दिखाने का कार्य हो अथवा नाच-गाना आदि। देश/प्रदेश के कस्बों, शहरों व ग्रामीण बाजारों में इनका कुनबा अपने बच्चों समेत तरह-तरह के हैरतअंगेज करतब दिखाकर लोगों से कुछ पाने की उम्मीद में घूमता-फिरता रहता है। दुःखद पहलू यह है कि इनकी तरफ लोगों का ध्यान ही नहीं जा रहा है, यदि जाता भी है तो इनके करतब और कुकृत्य व अपराध के संवादों की सुर्खियों की खोज के लिए। लाल और नीली बत्ती वाली गाड़ियों में बैठे कथित माननीय भी इनके डेरे से होकर गुजरते रहते हैं, करतब दिखा रही टीमों को कभी-कभार ये लोग बतौर बख्शीस कुछ पैसे भी दे दिया करते हैं, किन्तु इनके स्थायित्व एवं विकास के लिए जिम्मेदार व चिन्तित कोई नहीं दिखता।

हमें उत्तर प्रदेश के अम्बेडकरनगर जनपद के पूर्वांचल स्थित ग्रामीण क्षेत्र के एक पत्रकार ने एक फोटो और इससे सम्बन्धित संवाद भेजा, जिसे देख-पढ़ कर यह प्रतीत होता है कि इस तरह के मासूम बच्चों को सरकार के सर्व शिक्षा अभियान की जानकारी ही नहीं है। जबकि सर्वशिक्षा अभियान के नाम पर पैसे पानी की तरह बहाये जा रहे हैं। उक्त संवाददाता के अनुसार करतब दिखाने वालों में बड़े, किशोर व छोटे बच्चे (लड़के और लड़कियाँ) शामिल हैं। जिले के विभिन्न शहरी व ग्रामीण बाजारों में करतब दिखाने वाले इस ग्रुप का नन्हा मुखिया रवि नामक एक किशोर बताया गया है, जिसने उक्त संवाद सूत्र को बताया कि गरीबी के चलते हम लोग घूम-घूम कर जगह-जगह अपना करतब दिखाकर पैसा कमाते हैं। इससे हमारे व हमारे परिवार के लिए दो वक्त की रोटी की व्यवस्था हो जाती है। उक्त जिले के विभिन्न जगहों पर डेरा डालकर रहने वाले इन बच्चों का नाम- सोहानी (12), रवि (9), अमृता (4) और नेहा (3) बताया गया है। रवि के अनुसार वे लोग स्कूल नहीं जाते हैं, उनका पिता भी इन्हीं लोगों के साथ करतब दिखाने वाले पेशे से जुड़ा है।

इस संवाद को पढ़ने और सम्बन्धित फोटो को देखने के बाद प्रश्न यह उठता है कि सरकार द्वारा चलाई जाने वाली सभी योजनाएँ आखिर इन तक क्यों नहीं पहुँच रही हैं? क्या शासन द्वारा चलाई जाने वाली सारी योजनाओं का क्रियान्वयन करने वाले प्रशासनिक अमलों की नजर इन तक नहीं पहुँच रही है? या फिर इन बच्चों के पालक (माता-पिता/अभिभावक) इन्हें जबरिया ऐसा करने पर मजबूर कर रहे हैं। बेहतर यह होगा कि सरकारी योजनाओं का ईमानदारी एवं कर्मठता के साथ पारदर्शिता बरतते हुए क्रियान्वयन कराया जाए, ताकि शिक्षा ग्रहण करने की उम्र में अपना जान जोखिम में डालकर करतब दिखाने वाले इन नन्हें-मुन्ने बच्चों का भविष्य सँवर सके, और ये अपराधी बनने की जगह सुशिक्षित नागरिक बनकर अपने समाज और देश का नाम रौशन कर सकें।

हम तो चाहेंगे कि इस तरह के मासूमों के वे माँ-बाप जो उन्हें करतब दिखाने के लिए प्रताड़ित व बाध्य करते हों, उन पर वांछित धाराओं में मुकदमा दर्ज कर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाए और न्यायालय द्वारा उन्हें दण्डित किया जाए। यदि इस तरह के कुछेक प्रकरण सामने आयें तो भयवश ये लोग ऐसा करने से जरूर बाज आयेंगे। काश! ऐसा ही कुछ होता………।

-रीता
सम्पादक
रेनबोन्यूज डॉट इन

1 COMMENT

  1. रीता जी, विषय जितना रोचक है उतनी ही आपकी लेखनी से निकले शब्दों की बौछार भी। काश हम जैसे जागरूक विचारक और लेखकों का थोड़ा-थोड़ा समय इस प्रकार की सामाजिक बुराइयों तथा अपवादों को देश और समाज के सम्मुख रखने दे पाएं।

    देश की राजधानी और राजधानी क्षेत्र के हर छोटे बड़े चौराहों पर भीक मांगते छोटे-छोटे बच्चे और उनके साथ ही कुछ महिलाएं भी हम जैसे सभ्यसमाज को आईना दिखाकर हमारा उपहास करते हुए से नज़र आते हैं। इस ओर भी हमें अपने प्रयास करने की ज़रूरत है।

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