चेतन भगत कौअे को कौवा ही रहने दो ना, हंस क्यों बनाना चाहते हो?

चेतन भगत
चेतन भगत

नदीम एस.अख्तर

नदीम एस अख्तर
नदीम एस अख्तर
क्या केवल पैसा बनाने के लिए लिखते है चेतन भगत ?
क्या केवल पैसा बनाने के लिए लिखते है चेतन भगत ?

चेतन भगत ने एक लेख लिखा है कि अब हमें हिन्दी को देवनागरी की जगह रोमन में लिखना शुरु कर देना चाहिए और उनके अनुसार इसमें हर्ज भी नहीं है. लेकिन मेरी समझ से समस्या इतनी छोटी या फौरी नहीं है, जैसा चेतन बता रहे हैं या हम और आप समझ रहे हैं. हिन्दी के विस्तार में रोमन सहायक जरूर हो सकती है लेकिन देवनागरी को त्यागकर हिन्दी लिखने के लिए रोमन अपना लेने की बात करना कहां की बुद्धिमानी है.??!!

भाषा या लिपि का सम्बंद्ध सिर्फ लिखने-पढ़ने या समझने से नहीं होता. वह आपके संस्कार, आपकी संस्कृति और आपके व्यक्तित्व-चिंतन का भी आईना होता है. देवनागरी छोड़कर रोमन में हिन्दी लिखने का मतलब है कि कौआ, हंस की चाल चलने की कोशिश करे. अरे भाई, कौअे को कौवा ही रहने दो ना, हंस क्यों बनाना चाहते हो? कौवे को आप चाहे जो कह लो लेकिन श्राद्ध तभी सफल होगा ना, जब इसका भात कौआ खाएगा. हंस को श्राद्ध का चावल कौन खिलाता है भाइयों !!

हिन्दी इतनी उदार है कि ये हर भाषा के शब्दों को खुद में जोड़कर और समृद्ध होती चली जाती है. कुछ दूसरी भाषाओं के साथ भी ऐसा ही है. सो हिन्दी के विस्तार के लिए दिल तो बड़ा करना ही होगा. मसलन जो लोग देवनागरी नहीं जानते यानी देवनागरी में हिन्दी लिख-पढ़ नहीं सकते, जैसे साउथ इंडिया के लोग या नॉर्थ ईस्ट के लोग या पाकिस्तान के लोग, उनसे रोमन में लिखकर हिन्दी में संवाद किया जा सकता है और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से भी (अगर वे हिन्दी बोलना जानते हों तो) लेकिन असल मुद्दा ये नहीं है. दुनिया में हिन्दी के विस्तार और प्रचार-प्रसार के लिए हम किसी भी लिपि का सहारा ले सकते हैं और इसे हम सहर्ष स्वीकार करेंगे. लेकिन असल बात तो अपने देश की है. अपने देश में ही हम हिन्दी का इसलिए तिरस्कार कर रहे हैं (हिन्दी पट्टी में भी) कि अंग्रेजी अब यहां कैरियर और राज करने की भाषा बन चुकी है. इसके पहले फारसी को यह मुकाम हासिल था. खैर, बात हिन्दी की हो रही थी. सो हिन्दी को रोमन में कौन लिख रहा है. हम और आप तो कतई नहीं (जो ठीक-ठाक हिन्दी की देवनागरी लिपि जानने का दावा करते हैं). दरअसल हिन्दी को रोमन में नई पीढ़ी लिख रही है, जिनकी पढ़ाई-लिखाई अंग्रेजी मीडियम के स्कूलों में हुई है. वे हिन्दी बोल और समझ तो लेते हैं लेकिन देवनागरी लिखना या ठीक से लिखना नहीं जानते. और देवनागरी की टाइपिंग तो कतई नहीं. हां कलम से कामचलाऊ देवनागरी वे लिख लेते हैं.

सो उनके लिए सबसे आसान है कि वो हिन्दी को डिजिटल दुनिया में रोमन में लिखें (जहां उन्हें जरूरी लगता है). लेकिन असल समस्या उनमें नहीं है. समस्या और रोग हमारे सिस्टम में है. हमारे नीति-निर्धारकों में है. एक अंग्रेज का माथा घूमा था तो उसने अंग्रेजी बोलने-लिखने-पढ़ने वालों की फौज भारत में तैयार कर दी. मतलब उसने हमारे एजुकेशन सिस्टम को बदल दिया. जो प्राथमिक शिक्षा उर्दू-फारसी में होती थी, उसे बदलकर उस महान अंग्रेज ने अंग्रेजी कर दिया.

लेकिन, लेकिन लेकिन, हम गुलाम मानसिकता के लोग आजादी के इतने साल बाद भी (कम से कम हिन्दी पट्टी में ही) प्रारंभिक-मध्य-उच्च पढ़ाई का माध्यम हिन्दी को नहीं बना पाए. उसकी जगह पब्लिक स्कूल लेते चले गए और हमने खुशी-खुशी अपने बच्चों को अंग्रेजीदां बनाने के वास्ते वहां भेजना (मोटी फीस भरकर) शुरु कर दिया. राजकाज और अदालतों का भाषा में भी अंग्रेजी का वर्चस्व कायम रहा.

तो जब जड़ मे ही मट्ठू लगा दोगो आप लोग तो चेतन भगत जैसे लोगों को तो मौका मिल ही जाएगा ना कि -हिन्दी को रोमन में लिखो-, बोलने का. अगर नई पीढ़ी हिन्दी में रचबस जाए, पढ़ाई से लेकर बाकी जगहों पर उसे सम्मान मिले तो फिर क्या जरूरत है कि हिन्दी को रोमन में कोई लिखेगा ??!!! नई पीढ़ी भी हिन्दी को देवनागरी में लिखने के लिए टाइपिंग उसी तरह सीखेगी, जैसे कि वो अंग्रेजी के कीबोर्ड -A S D F G- की टाइपिंग सीखते हैं. जापान से लेकर चीन और रूस, सब ने अंग्रेजी को अपनाया लेकिन अपनी भाषा की गरिमा और महत्ता से कभी समझौता नहीं किया. लेकिन हम अनेकता में एकता वाले देश ने हिन्दी और देवनागरी को चाकरों की भाषा बना दी और अंग्रेजी को जस का तस एलीट और शासकों की भाषा रहने दी. नतीजा सामने है.

अगर समय रहते ना चेते तो इसके अभी और गंभीर परिणाम भोगने पड़ेंगे. वो दिन दूर नहीं, जब व्हाट्सएप और मैसेजिंग में रोमन मे भी हिन्दी लिखी जानी बंद हो जाएगी. तब रोमन में सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी ही लिखी जाएगी.

पहले अपनी शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त कीजिए, फिर हिन्दी और देवनागरी की बात करिए. वरना चेतन भगत का क्या है. आज वो रोमन में अंग्रेजी उपन्यास लिख रहे हैं, कल को रोमन में हिंगलिश उपन्यास भी लिख देंगे और नई पीढ़ी उसे हाथोंहाथ लेगी.

हिन्दी और हिन्दी दिवस का स्यापा कर हम बस यही कर सकते हैं कि हिन्दी लिखने-पढ़ने वाली पीढ़ी के मरने का इंतजार करें. उनके साथ देवनागरी भी पंचतत्व में विलीन हो ही जाएगी. @fb

(लेखक आईआईएमसी में अध्यापन कार्य में संलग्न हैं)

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