क्या भाषा प्रयोग का अधिकार सिर्फ ओम थानवी जैसे चंद स्वयंभू लोगों के पास गिरवी पड़ी है

श्रवण कुमार शुक्ला

[box type=”info”] ‘यादों में आलोक’ कार्यक्रम पर पत्रकार श्रवण कुमार शुक्ला की एक टिप्पणी :[/box]

 

ashok vajpaeyपत्रकारिता में मर्यादा-उफ्फ्फ ऐसी मर्यादाएं सीखी जो जन्मभर याद रहेंगी। वक्ताओं में कुछ तो ऐसे थे जिन्हें ईमानदार कहने का मतलब है खुद को ही ईमानदार शिरोमणि का तमगा दे डालना।

हां…राहुल देव जी की एक बात बेहद अच्छी लगी कि कृपया भाषा में घालमेल करके उसका शीलभंग न करें, जोकि आजकल पत्रकारिता के सभी संस्थान कर रहे हैं। उन्होंने बेहद तल्ख़ अंदाज़ में टीवी पत्रकारों को चुनौती देते हुए सवाल किया कि हिंदी बोलते समय वो अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करने की जो छूट लेते हैं… क्या वो अंग्रेजी वाले ले पाएंगे? हिंदी की मर्यादा के उल्लंघन का इससे बेहतर उदहारण और क्या हो सकता है? राहुल देव ने जो बेहद महत्वपूर्ण बात कही वो ये कि हम हिंदी वाले भाषा को लेकर लचीले हो गए हैं, इसीलिए हमारी भाषाई सीमा का उल्लंघन होने के बावजूद हमें बुरा नहीं लगता।

निःसंदेह पूरे कार्यक्रम के दौरान अगर किसी ने प्रभावित किया तो वे राहुल देव जी थे। इस कार्यक्रम में एक बात जो अखरी वो ये कि भाषा में प्रयोग होना चाहिए लेकिन ये प्रयोग वही लोग करें जो खुद स्थापित हो चुके हों। बेहद बचकाना और थू-थू करने लायक बात। अगर ओम थानवी जी की चले तो हम जैसे नवोदित लोग भाषा में कुछ प्रयोग करने की हैसियत ही नहीं रख सकते, क्योंकि ये उन जैसे चंद स्वयंभू लोगों के पास गिरवी पड़ी है।

(संदर्भ- तेज-तर्रार और खतरनाक टाइप के पत्रकार आलोक तोमर(एक समय सत्ता से लेकर जन-गलियारे तक जबरदस्त धमक बनाने वाले आलोक तोमर भाषाई प्रयोगों को लेकर विवादों में घिरे रहे) की याद में ‘यादों में आलोक’ कार्यक्रम का आयोजन वृहस्पतिवार को कांस्टीट्यूशन क्लब में किया गया।)

(स्रोत-एफबी)

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