ये अजीत अंजुम थे जिनसे खुलकर एक इंटर्न तक अपनी बात कह पाता था

नीतिन ठाकुर

जैसे ही अजीत जी की आवाज आती कि रनडाउन पर कौन है.. मैं अक्सर सहम जाता था

ajit anjum farewel7मैं फेसबुक पर कुछ भी और कितना ही लिख डालने के लिए बदनाम हूं। फिर भी अपने पेशे,दफ्तर या सीनियर्स- सहयोगियों के बारे में मैंने हमेशा ही कम लिखा। आज बात ही ऐसी है कि लिखना पड़ रहा है।

यूं तो Ajit Anjum सर के साथ अपने खट्टे-मीठे रिश्तों के बारे में लोग खूब लिख रहे हैं और बहुत चाहने के बावजूद मैं उनके बारे में कुछ भी लिख पाने में खुद को असमर्थ पा रहा हूं मगर जब न्यूज़ 24 के कर्मचारियों को उनका ‘विदाई मेल’ एक वेबसाइट पर पढ़ने को मिला तो मुझसे रहा नहीं गया। भावनाओं के सैलाब को शब्दों में बांधना यूं मुश्किल होता ही है..फिर भी जो मन में आ रहा है बस लिख रहा हूं।

ठीक से तो याद नहीं रहा लेकिन अब से कुछ साल पहले मैंने एसएमएस और फोन करके उनसे मिलने का वक्त लिया था। बहुत व्यस्त रहते थे सो फोन पर ही मुझसे मिलने की वजह पूछी। मैंने भी कहा कि मिलकर ही बताऊंगा। एक ही दफ्तर में होने के बावजूद (मैं इंटर्न था) मुझे उनका खाली वक्त नहीं मिल सका। रात को दफ्तर से घर के लिए निकलने का उनका वक्त मैं जानता था सो दो-तीन दिनों तक उनकी कार के पास दो-ढाई घंटे इंतज़ार भी किया। उनको जैसे ही देखता तो सहम जाता। संकोची था तो बड़ी हिम्मत से अपनी बात कह सका। आखिरकार वो दिन भी आया जब उन्होंने मुझे आराम से बात कहने का मौका दिया। मैंने अपनी बात कही और उन्होंने मुझे पूरे वक्त तसल्ली से सुना। लब्बोलुआब यही था कि मुझे न्यूज़ चैनल में नौकरी चाहिए। जवाब में उन्होंने कहा – ठीक है देखेंगे लेकिन फिलहाल हमारे साथ काम करना चाहोगे तो बताओ। अजीत सर उन दिनों बीएजी प्रोडक्शन हाउस का काम देख रहे थे जो न्यूज़ चैनल से हट कर था। मैंने उनके साथ काम करने के लालच में तुंरत हां कर दी और फॉक्स हिस्ट्री चैनल के लिए बन रहे क्राइम शो में खुद को झोंक दिया। कुछ महीनों तक दिन-रात एक किए रहा लेकिन अजीत सर से मुलाकात कम ही हुई। मैं नहीं जानता था कि वो मेरी रिपोर्ट लगातार रख रहे हैं। शो खत्म हो गया तो अजीत सर एक बार फिर न्यूज़ 24 में चले गए। उन्होंने ना जाने क्यों मुझे याद रखा और खुद चैनल में नौकरी के लिए बुला लिया। मेरे लिए इससे बड़ी बात हो नहीं सकती थी। उसके बाद तो खैर मैं पैकेजिंग में जुट ही गया। लिखने का मौका नहीं मिला था इसलिए घर आकर फेसबुक की दीवार रंगने लगा। मुझे तब अंदाज़ा भी नहीं था कि अजीत सर लगातार मेरी पोस्ट पढ़ रहे हैं। उन्होंने ही मेरा हौसला बढ़ाया और आउटपुट ज्वाइन कर लिखने के लिए कहा। मेरी शुरूआती ना-नुकुर के बाद उन्होंने सख्ती दिखाते हुए मुझे पैकेजिंग से हटा आउटपुट में शिफ्ट कर ही दिया। इसके बाद कई सीनियर्स ने मुझे न्यूज़ स्क्रिप्ट लिखने के बुनियादी तौर-तरीके और रनडाउन के गुर सिखाए (उनकी ही कृपा से नौकरी ठीकठाक चल रही है)। स्क्रिप्ट से तो आज तक जूझ रहा हूं और ना जाने कब तक जूझता रहूंगा..अलबत्ता रनडाउन ठीकठाक सीख गया। अपने काम का अंदाज़ा टॉकबैक पर उनकी आनेवाली आवाज़ों से लगा लेता था। जैसे ही टॉकबैक पर उनकी आवाज़ गूंजती- रनडाउन पर कौन है.. मैं अक्सर सहम जाता था। उनके सवाल का संतोषजनक जवाब दे पाता तो राहत की सांस लेता था और अगर कहीं फंस जाता तो अगले दिन तक खुद को कोसता रहता था। न्यूज़रूम में अजीत सर से मिलना कभी मुश्किल नहीं रहा। वो कभी भी केबिन से निकलकर चले आते। खुलकर सबके सामने इतनी तारीफ भी कर जाते कि शर्म-सी आने लगती थी। मन में सोचता भी था कि क्या वाकई मेरा काम काबिले-तारीफ था या सिर्फ मेरा हौसला बढ़ाने के लिए सर ऐसा करते हैं। कई मौकों पर सभी की तरह उनसे डांट भी खाई (स्वीकार करता हूं कि मेरी गलती के मुकाबले उन्होंने मुझे कम डांटा).. फिर उनको माफी मांगते भी अक्सर देखा। किसी को डांट देने के बाद मुझ तक से कह देते थे- मैंने उसको ज़्यादा बोल दिया यार!!

दफ्तर में सब जानते थे कि वो चैनल के लिए जान लगाए हुए हैं सो ऐसे में किसी की एक गलती भी उनको बुरी तरह चुभती रहती थी। मुझे तो डांटने के बाद साथ में एक बार खाना तक खिलाया..तब तो नहीं हुआ लेकिन अब ज़्यादा हैरान होता हूं कि कहां कोई मैनेजिंग एडिटर अपने टिफिन से इंटर्न को खाना खिला देता है।
मैंने उनके शो की मुश्किल ही कभी तारीफ की (हालांकि उन्हें तारीफों की कमी कभी रही नहीं)। एक बार मैंने तारीफ का एसएमएस भेजा तो साथ में लिख भी डाला कि मैं आपकी तारीफ करने से इसलिए बचता हूं क्योंकि डर है कि इसे आप चापलूसी ना समझ बैठें। उनका जवाब मुझे आज तक याद है…उन्होंने जवाब में लिखा- मैं तो तुम्हारी इतनी तारीफ करता हूं तो क्या वो भी चापलूसी ही होती है???

मैं दंग था… अपना सिर खुजाता ही रह गया!!!!

ये अजीत अंजुम थे जिनसे इतना खुलकर एक इंटर्न तक अपनी बात कह पाता था…अपनी राय रख सकता था..अपना मनपंसद काम मांग सकता था। मैंने तो उनसे हमेशा ही यहां तक कहा कि मैं आपको बॉस की तरह कभी देख ही नहीं सका…आप मेरे टीचर हैं। उन्होंने भी हमेशा मेरी इस बात पर भरोसा किया। अब मैं वहां नौकरी नहीं करता और वो भी छोड़ चुके हैं लेकिन वो मेरे टीचर हमेशा रहेंगे। इस पेशे को छोड़ देने के बाद भी..
शुक्रिया सर।

(नहीं चाहता था कि लिखूं लेकिन रहा नहीं गया…लिखा भी तो ज़्यादा ही लंबा हो गया। )

(स्रोत-एफबी)

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