एक्शन के नाम पर जैक्शन का कामेडी एडल्ट मसाला – एक्शन जैक्शन

अजय देवगण की फिल्म एक्शन जैक्शन देखिए मगर जरा संभलकर
अजय देवगण की फिल्म एक्शन जैक्शन देखिए मगर जरा संभलकर

सैयद एस.तौहीद

अजय देवगण की फिल्म एक्शन जैक्शन देखिए मगर जरा संभलकर
अजय देवगण की फिल्म एक्शन जैक्शन देखिए मगर जरा संभलकर

अजय देवगन की एक्शन इमेज वाली ताजा फ़िल्म एक्शन जैक्सन रिलीज हुई.अभिनेता का एक्शन को लेकर भरोसा यहां दिख रहा…जबरदस्त बाडी लुक दिख रहा.इस अंदाज़ में अजय कातिलाना नजर आ रहे.लेकिन क्या वो कारगर हो सका? जवाब फ़िल्म बेहतर दे सके. लेकिन यहां सिवाए एक्शन ही नहीं कामेडी को भी डालने की कोशिश हुई…कारगर नहीं बेकार से वजहों से उपजी. गोलमाल किस्म की कामेडी बन नहीं सकी..कोशिश जरुर अजय ने बेहतर की .डबल रोल में अजय जरुर पसंद किए जाते गर पटकथा दमदार किस्म की होती.एक्शन व कामेडी के प्रसंग पटकथा से मात खा रहे. एक्शन व मसाला पेशकश में भरोसा रखने वाले प्रभु देवा पूरी फार्म में नजर नहीं आ रहे.दुहराव से बचने लिए शायद कामेडी का एडल्ट मसाला डाला होगा.फिर भी सामने जो दिख रहा वो निराश करता है. अजय देवगन की तलवारबजी पर एक्शन डायरेक्टर ने मेहनत की है.कुल मिलाकर फ़िल्म के एक्शन सीन खासियत भी लग रहे.एक्शन पर आंख बंद कर भरोसा किया जाना चाहिए? खासकर तब जब कहानी में बेतुकी सी बातें फ़िल्म को खराब कर रही हों. किसी की किस्मत किसी को अंडरवियर में देखने से बदल जाएगी? कामेडी के लिए रखी गयी यह बात थोड़ी देर हंसाकर सोच में डाल देती है. इस बेतुकी व बेकार बात को पटकथा में जगह नहीं मिलनी चाहिए थी..ख़ुशी का लक विशी को मंदिर में पूजा करते देख या सोशल वर्क देखकर बदल सकता था ? कामेडी के किसी दुसरे तरीके से ख़ुशी का लकी होना ज्यादा बेहतर होता.

कहानी अजय के विशी व एज नाम के हमशक्ल किरदारों के ताना बाना पर आधारित है.विशी व एज काम के लिहाज से ज्यादा अलग नहीं दिख रहे,एक्शन का डबल डोज लाने खातिर ऐसा किया गया होगा. एक मुंबई में दो नंबरी काम करके जिंदगी बिताने वाला विशी व दूसरा हांगकांग के अंडरवर्ल्ड डॉन जेवियर का साथी एजे.एजे की एक्शन शख्सियत पर मरने वाली जेवियर की कातिलाना खतरनाक बहन मरीना (मनस्वी) किसी भी सूरत में अपनी दीवानगी को पा लेना चाहती है .लेकिन एज को वो बिलकुल भी नहीं सुहाती. साइको सी मरीना फिर भी एज ही का नाम रट रही व उसे पाने के लिए किसी को भी मार देगी.ऐसे में उसके लिए एज की पसंद अनुष्का को रास्ते से हटाना बड़ा काम नहीं था. इसमें उसे भाई जेवियर की मदद मिल रही थी.बहन मरीना की खुशी के लिए जेवियर अनुष्का की जान लेने की कोशिश में तकरीबन सफल हो जाता..लेकिन एज समय पर पहुंचकर अनुषका (यमी गौतम) को खतरनाक आदमियों से बचा ले गया. प्रेमिका पर जानलेवा हमला करवाने कारण एज जेवियर से बदला लेना वाला बन गया. दोनों में दुश्मनी हो गयी.अनुष्का व होने वाले बच्चे की खातिर कुछ समय के लिए एज क्राइम की दुनिया त्याग कर चला गया. अपराध के साए से मीलों दूर अनुष्का का इलाज करवाने हांगकांग से इण्डिया चला आया. फिलहाल अनुष्का की देखरेख करना उसके लिए जरुरी था.मुंबई में अपने हमशक्ल विशी को देखकर अपनी जगह उसे हांगकांग भेज देता है…इस दरम्यान वो इंडिया में रहकर अनुष्का का इलाज करवाने लगा.हालांकि विशी भी यह काम कर सकता था.मरीना का बदला चुकाने लिए जेवियर अब भी मगर उसे तलाश रहा.मरीना का प्यार स्वीकार न करना उसकी गलती थी .पावर व रूपए का रसूख दिखाकर वो एज की तलाश में आदमी लगाए हुए है.आखिरकार एज जेवियर की निगाह से बच नहीं पाता. जेवियर के आदमी एज का काम तमाम करने की फिराक में थे. हमशक्लो के फेर में उलझकर यह लोग कभी विशी को एज समझ गए तो कभी एज को विशी..इसके बाद की कहानी में खास दम नहीं…क्योंकि वजहें दमदार नहीं.

आखिर में एज ने जेवियर को खतम कर उसका साम्राज्य मिटा दिया.जिस अंदाज़ में खलनायक का खात्मा होना चाहिए उसी अंदाज में.काश जिस बदले की आग में एक्शन व मारकाट हुई वो थोडा अधिक प्रभावी तरीके से रखी गयी होती.फिल्मकार ने अजय को अभिनय का ठीक ठीक अवसर नहीं दिया. खिलने के लिए अजय को विस्तार मिलना चाहिए था.डबल रोल का उन्हें फायदा मिलना चाहिए था. अजय देवगन को चाहनेवाले यह फ़िल्म एक्शन के लिए फिर भी शायद देखें.अभिनेता का शानदार एक्शन पूरी फ़िल्म को चला नहीं सकता.जिसे अभिनय के लिए जबरदस्त प्लाट देनी चाहिए उसे मिली नहीं.जवाब के लिए सवाल मिले नहीं. मरीना के निगेटिव शेड से इसकी थोड़ी भरपाई करने की कोशिश हुई..अफसोस वो किरदार के साथ पूरा इंसाफ कर न सकी. मरीना की दीवानगी फिर भी ठीक लगी लेकिन वजह भी रखने में नया करने की जरूरत थी.उसके एकतरफा खतरनाक प्यार की ज्यादा मजबूत वजहें होनी चाहिए थी. एक्शन व उसके रिएकशन का अनुपात कमजोर नजर आ रहा .अजय व एक्शन की बात में एक बारगी ध्यान उनकी दमदार आंखो तरफ जरुर होता है. अभिनेता की इस ताकत का इस्तेमाल कमाल कर सकता था. बड़ी लागत से बनी यह फ़िल्म कम्पलीट मसाला एंटरटेनर बन सकती थी..बोरियत से बच सकती थी.फ़िल्म के शीर्षक का ध्यान कर दमदार पटकथा लिखे जाने की जरुरत थी..आवश्यक बदलाव से कमाल हो सकता था.काश प्रभुदेवा का यह प्रयास अपनी ही उम्मीदों पर थोडा खरा होता.

(सैयद एस.तौहीद)

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