शहाबुद्दीन नाम के चिरकुट का नाम सुन-सुन कर पक गया

विवेकानंद सिंह

शहाबुद्दीन नाम के चिरकुट का नाम सुन-सुन कर पिछले कुछ दिनों से थक गया हूँ। ऑफिस के कुछ साथी शाहबुद्दीन की ऐसी कहानियाँ सुना रहे हैं, जैसे साक्षात् कोई यमराज बाहर निकल आया हो। एक भाई ने कहा कि दम है, तो फेसबुक पर लिख कर दिखाइए। हमने कहा सीवान हो आता हूँ, तो उम्र में सीनियर एक भाई साहब ने मजाक उड़ाते हुए कहा कि दो-तीन डायपर साथ ले जाना, हो सकता है जरूरत पड़ जाये।

मीडिया का एक हिस्सा हाई कोर्ट के इस फैसले को लालू प्रसाद द्वारा नीतीश कुमार को पटकनी देने की साजिश का काउंटडाउन बता रही है। खबरों के नाम पर स्क्रिप्ट लिखे जा रहे हैं, चूँकि उनका छपना मुश्किल है, इसीलिए सोशल मीडिया पर भी उसे तैराया जा रहा है। ताकि जब वह मैसेज हर माँ तक पहुंचे, तो वह अपने बच्चे से बोले कि चुपचाप सो जा, शाहबुद्दीन बाहर आ गया है।

शाहबुद्दीन उम्रकैद की सजा भुगत रहा था, ऐसे में 11 साल बाद उसके बाहर निकलने पर, जो लोग जश्न मना रहे हैं और जो लोग हाय-तौबा मचाये हुए हैं। वे कमोवेश एक ही सिंड्रोम के शिकार हैं। अगर आपको लगता है कि कोर्ट के फैसलों में सरकार की मिलीभगत है और हाई कोर्ट के इस फैसले के लिए राज्य सरकार दोषी है, तो शाहबुद्दीन के प्रिय नेता लालू प्रसाद को सीबीआई कोर्ट से जमानत देने के लिए केंद्र सरकार भी दोषी है। लालू प्रसाद ही अगर बाहर न होते, तो आज शाहबुद्दीन भी नहीं निकलते! मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि बिहार में कानून का राज है, थोड़ा पीएम साहब की तरह अपने सीएम साहब पर भी भरोसा रखिए। कानून का राज इसीलिए है कि बाहुबली के परिवारवाले सत्ता के गलियारों में भ्रमण कर रहे हैं।

वैसे भी क्या बिहार में गुंडा-बहुबलियों का आभाव रहा है? हर मोहल्ले में कोई-न-कोई गुंडा है, जो अब या तो पार्षद बन गया है, या ठीकेदार। हम इन्हीं जैसों के बीच रहने के आदि हो चुके हैं। इनके आका विधायक से सांसद तक हैं। फ़ूड चैन की तरह इनका बाहुबली चैन है। इनके अंधसमर्थक भी हैं और अंधविरोधी भी! समर्थकों के लिए रॉबिनहुड और गैर समर्थकों के लिए यमराज। इनलोगों ने सुविधानुसार अपना इलाका बाँट रखा है। मोकामा से पटना फलाना सिंह, मुजफ्फरपुर से वैशाली चिलाना शुक्ला, पूर्णिया से मधेपुरा ढिमका यादव etc। कोई इलाका अछूता नहीं है। मैं जिस रजौन, बांका से हूँ, हाल के समय तक नक्सल प्रभावित रहा है। मैंने धान के खेत में हथियार के साथ रात गुजारनेवाले लोगों को देखा है। धीरे-धीरे वे मुख्यधारा में लौटे, आज उनमें से कुछ मुखिया भी हैं।

शाहबुद्दीन के बाहर निकलने पर भीड़ और जश्न में नया क्या है? यह तो इस राज्य की जनता का चरित्र है। बाथे-बथानी टोला नरसंहार के मुखिया के बाहर आने पर कम जश्न मना था क्या? गलत को गलत के उदाहरण से सही नहीं ठहरा रहा, बस बिहार का चरित्र बता रहा हूँ। बाकी न्याय कानून करे, जैसे करती आई है। प्रशांत भूषण जी ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने का फैसला लिया है। उनको मेरा नैतिक समर्थन है।

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