मजीठिया मंच:साथियों अभी नहीं तो कभी नहीं

प्रेस विज्ञप्ति

साथियों, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और उसकी टिप्पणियों को अमूमन हमारे अखबार देववाणी की तरह प्रकाशित करते हैं. लेकिन जब इसी अदालत का एक फैसला खुद पर लागू करने की बात आयी है, तो उनका रवैया नाफरमानी का है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, सभी अखबारों को 1 अप्रैल 2014 से अपने सभी कर्मियों को मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक वेतन देना है. लेकिन अधिकतर अखबारों ने उससे कन्नी काट ली है। मजीठिया के मुताबिक एरियर भी देना है, मगर उसके लिए तो मालिकों ने साफ मना कर दिया है।

अब आपको अपने इंक्रीमेंट का पता भी चल गया है। अब किस चीज का इंतजार है आपको। क्या आप अगले दस साल तक अपने संस्थान में काम कर के दस लाख रुपये बचा पाएंगे (जिसकी कीमत उस समय घटकर चार लाख ही रह जाएगी)? क्या इसी नौकरी के लिए डर के मारे सूखे जा रहे हैं? क्या आपको नहीं लगता कि अगर आप लड़कर मजीठिया के मुताबिक एरियर और बढ़े वेतन और नोटिस अवधि की सैलरी के रूप में अभी 6 से 10 लाख अभी लेकर नौकरी गंवा देते हैं (जिसकी कम संभावना है) तो भी बेहतर स्थिति में रहेंगे। या जो आप पत्रकारिता को दुनिया का आखिरी काम और जहां काम कर रहे हैं उसे आखिरी संस्थान मानकर चल रहे हैं, जिसके परे कुछ भी नहीं है? क्या आप जिस तरह की पत्रकारिता कर रहे हैं, उससे बेहतर नहीं कर सकते हैं?

या आप उस मुगालते या घटिया सोच का शिकार हैं कि कोई न कोई तो आपकी लड़ाई लड़ेगा. कहीं न कहीं से कोई न कोई पागल तो सामने आएगा ही जो संजय गुप्ता, शोभना भरतियाओं और सुधीर अग्रवालों से लड़कर उनकी जेब से पैसा निकालकर आपकी जेब में डाल देगा। तो फिर अपनी इस धूर्तता या मूर्खता पूर्ण उम्मीद का दामन पकड़े रहें। अन्यथा अपनी कमर सीधी कर खड़े हों, क्योंकि अगर कोई बेचारगी और मजबूरी है आपके सामने तो वह आपकी वजह से है इन भरतियाओं, गुप्ताओं या अग्रवालों के कारण नहीं है। इन धूर्त, शातिर और मक्कार मालिकों से लड़ने के लिए न तो आप सामने आ सकते हैं, न तो कोई आर्थिक सहयोग कर सकते हैं तो फिर भूल जाओ मजीठिया को। नहीं तो कम से कम एक छोटी शुरुआत तो करो ताकि कोई जुंबिश तो पैदा हो।

अरे, सुप्रीम कोर्ट में एक रजिस्टर्ड पत्र ही भेज दो गुमनाम रहते हुए नहीं, अपने नाम से। देश के मुख्य न्यायमूर्ति आपके गुप्ता, अग्रवालों और भरतियाओं के नौकर नहीं हैं कि उन्हें आपके पत्र लेकर दिखाने पहुंच जाएंगे कि फलां मिश्रा, त्रिपाठी, सिन्हा, श्रीवास्तव, सिंह या शर्मा ने भेजा है, अब इनसे निपट लो। तो साथियो मुख्य न्यायमूर्ति यानि चीफ जस्टिस को संबोधित पत्र तो भेजिये। कहिए कि आपके आदेश का सरासर उल्लंघन करते हुए आपको कोई एरियर नहीं दिया जा रहा है। मजीठिया के मुताबिक वेतन वृद्धि भी नहीं की गयी है। अपना मार्च का वेतन बताओ और मई के वेतन का भी जिक्र करो। डर के मारे जान न निकली जा रही हो तो अपनी दोनों महीनों की सैलरी स्लिप को फोटोकॉपी नत्थी कर दो। आगे की लंबी लड़ाई के लिए हम हैं तो अगर इतना करने की हिम्मत पड़ रही है तो पता नीचे दिया गया है-

The Registrar,
Supreme Court of India,
Tilak Marg,
New Delhi-110 201 (India)
PABX NOS.23388922-24,23388942-44,
FAX NOS.23381508,23381584,23384336/23384533/23384447
और ईमेल भी करें
e-mail at : supremecourt@nic.in

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