पत्रकारों का इंटरव्यू लेने वाले भी नहीं चाहते कि आप सभी सवालों के जवाब बिल्कुल सही-सही दें

विकास मिश्र,पत्रकार,आजतक

दफ्तर में आजतक मीडिया इंस्टीट्यूट के छात्रों का इंटरव्यू हो रहा है। जिनका हो रहा है, वो बहुत खुश हैं, उत्साहित हैं। जिनका नाम अभी लिस्ट में नहीं है, वो परेशान हैं, छटपटा रहे हैं। जो इंटरव्यू देकर आ रहा है, अपनी कहानी बता रहा है। नौकरी का पहला इंटरव्यू, पहले प्यार की पहली छुवन जैसा..कभी न भूलने वाला। बातें हो रही हैं.. जो पूछा बता दिया, बस एक सवाल रह गया। दूसरे का मलाल है..मुझसे तो बस चार मिनट ही बात की होगी और पूछते तो ठीक लगता। मुझे भी एक इंटरव्यू का मजेदार किस्सा याद आ गया।

मैं दैनिक जागरण में था, मेरठ में। सिटी इंचार्ज था, सेलेक्शन कमेटी में भी था। विज्ञापन दिया गया, इंटरव्यू के लिए पूरा मजमा जुट गया। इंटरव्यू लेने वालों में जागरण के डायरेक्टर देवेश गुप्ता, देहरादून के संपादक अशोक पांडेय, मेरठ के संपादकीय प्रभारी श्रीकांत अस्थाना Shrikant Asthana , देहरादून के जीएम संजय शुक्ला और मेरठ के प्रादेशिक प्रभारी जय प्रकाश त्रिपाठी थे।

कुछ संयोग ही ऐसा था कि नौकरी पाने की आस में तमाम वो लोग आ गए, जिन्हें अपने प्रोफेशन का क ख ग भी पता नहीं था। एक से पूछा कि पत्रकारिता में क्यों आना चाहते हो, बोला-मुझे ब्यूरो चीफ बनना है। मैंने कहा ब्यूरो की स्पेलिंग लिखो-नहीं लिख पाया। करीब आठवें या दसवें नंबर पर एक लड़का आया, नाम बताया-कुणाल देव। दिल्ली से आया था, पांच में से तीन सवालों के जवाब भी नहीं दे पाया। फिर ईमानदारी से उसने कहा-सर, अभी मैंने घर वालों की मर्जी के खिलाफ शादी की है, जरूरतमंद हूं, हैंड टू माउथ हूं। इतने पैसे नहीं कि खरीदकर अखबार पढ़ सकूं, इस नाते थोड़ा खबरों से दूर हूं, आप मौका देंगे तो निराश नहीं करूंगा। वो बाहर निकला, उसकी कॉपी ठीकठाक थी। ट्रांसलेशन ठीक था। मैंने जोर लगाया, उसकी ईमानदारी पर बात हुई। इंटरव्यू की बोहनी हुई, पहला लड़का सेलेक्ट हुआ।

इसके बाद फिर वही बर्बाद खेप। हिंदी का एक वाक्य भी दुरुस्त नहीं। हम सभी बोर होने लगे थे। फिर ये हुआ कि बंद करो। पता चला कि बस एक ही कंडीडेट बचा हुआ है। सहमति बनी कि बुला ही लीजिए, इसे भी देख लेते हैं।

करीब साढ़े पांच फीट का सामान्य शक्लो सूरत का एक लड़का भीतर आया। हम सभी अलसाए इंटरव्यू लेने वालों को नमस्ते किया। भास्कर के किसी एडीशन में फीचर पेज पर था। दो सवाल पूछे गए, उसने तुरत सही जवाब दिए। फिर पूछा कि तुम्हारा इंट्रेस्ट किस सब्जेक्ट में है, उसने जवाब दिया-स्पोर्ट्स में। देवेश जी ने कमर सीधी की, क्योंकि खेल में उनकी गहरी दिलचस्पी है। उन्होंने पूछा-स्पोर्ट्स में सिर्फ क्रिकेट ही या कुछ और। बोला-जी नहीं सर पूरा स्पोर्ट्स। देवेश जी ने धड़ाधड़ पांच सवाल पूछे। सवाल खत्म नहीं होता कि उधर से जवाब आ जाता। बिल्कुल सही जवाब। सबका आलस टूट चुका था। हम सभी भौंचक हो रहे थे। श्रीकांत अस्थाना ने तीन राजनीतिक सवाल पूछे। उसने धड़ाधड़़ जवाब दे दिए। अब तो ये हो गया, कि इंटरव्यू लेने वाला हर योद्धा सवाल पूछकर पस्त होने लगा। मैंने भी खेल से जुड़े कुछ सवाल पूछे, बिल्कुल सही जवाब आया। अशोक पांडे ने पूछा-विजडन में सर्वश्रेष्ठ कप्तान का अवार्ड किसे मिला। छूटते ही जवाब आया-नवाब मंसूर अली खान पटौदी। अब हम सबकी हंसी भी छूट रही थी। देवेश जी ने फिर से मोर्चा संभाला। सवालों की बमबारी कर दी, लेकिन क्या योद्धा था-हर सवाल का जवाब जैसे रटकर आया हो। अब हम लोगों के लिए एक चुनौती बन गई कि ऐसा सवाल पूछें, जिसका जवाब ये न जानता हो और इंटरव्यू की इतिश्री करें। वो सवाल भी देवेश जी के ही राइफल से निकला-जब सचिन ने अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की थी, तो उसी दिन पाकिस्तान के एक और क्रिकेटर ने भी पहला टेस्ट खेला था। कौन था वो..। अभ्यर्थी खामोश हो गया, सोचने की मुद्रा में इससे पहले जाता, पांडे जी बोले बताओ कितना तनख्वाह पाते हो और कितना चाहते हो यहां। वो सकपकाया, जितना भी बोल पाया, देवेश जी ने कहा कि जल्दी ज्वाइन कर दो। सैलरी जितना मांग रहे हो, हम उससे पांच सौ रुपये ज्यादा देंगे। रिपोर्टिंग के लिए जाओगे तो पेट्रोल का भी खर्चा मिलेगा। लड़का बाहर निकल गया। उसके जाते ही हम लोग ठहाका मारकर हंस पड़े। पांडे जी अपने अंदाज में बोले-‘अरे यार साले पटौदिया का नाम तो हम भी नहीं जानते थे, ऐसे ही पूछ दिया था।’

अचानक फिर कमरे का दरवाजा खुला, वही लड़का था। सिर गेट के भीतर डाला, पूरा बदन बाहर था। बोला-सर वो वकार यूनुस था….नमस्ते सर। दरवाजा बंद करके वो चला गया। थोड़ी देर हम सभी खामोश रहे, फिर काफी देर तक कमरे में उसी की चर्चा रही। वो लड़का है प्रभाष झा Prabhash Jha , जो इन दिनों नवभारत टाइम्स डॉट कॉम में न्यूज एडिटर है। कुणाल देव जागरण से हिंदुस्तान होते हुए प्रभात खबर में चीफ सब एडिटर है। वो इंटरव्यू हुए दस साल से ज्यादा हो गए, लेकिन उसकी यादें अभी भी जेहन में बिल्कुल ताजा है।

(लगे हाथ मॉ़रल ऑफ द स्टोरी बता दूं-इंटरव्यू लेने वाले भी नहीं चाहते कि आप सभी सवालों के जवाब बिल्कुल सही सही दे ही दें। सारे जवाब जानते हों तो भी कम से कम एक के बारे में अनजान बने रहिए।)

(स्रोत-एफबी)

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