पटना में मैनाघाट के सिद्ध एवं अन्य कथाएँ पर विमर्श

अरविन्द श्रीवास्तव

रविवार/ पटना. पटना प्रगतिशील लेखक संघ ने वरिष्ठ साहित्यकार हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ द्वारा रचित ‘मैनाघाट के सिद्ध एवं अन्य कथाएँ पर विमर्श आयोजित किया। शुभारंभ करते हुए साहित्यकार राजकिशोर राजन ने इस कथा संग्रह का परिचय देते हुए कहा कि कथाकार ने ‘आम्रपाली’ और ‘कुणाल’ को नए आयाम में प्रस्तुत कर प्राचीनता में नवीनता का आभास कराया है। यह हिन्दी कथा की बड़ी उपलब्धि है। संग्रह की अन्य कथाएं – मैनाघाट के सिद्ध, एक थी रूपा, भाभी रुकसाना कथाएं लोक जीवन से जुड़ी कथाएं हैं जो हमारे दुख-सुख के भागीदार हैं । उनकी कहानी ‘महुआ बनजारिन’ की कुछ पंक्तियों को राजन ने रेखांकित किया- ‘गांव में प्रचलित है कि नट्टिन गोधपरनी जब गाँव में प्रवेश करती है – बूढ़ी औरतें अपने घर के किशोर और तरुण लड़कों को छिपाकर किवाड़ बन्द कर देती। क्योंकि नट्टिन की आँख में अजगर का आकर्षण था…

कवि शहंशाह आलम ने कथाकार श्री शलभ के संदर्भ मे कहा कि पचासवें दशक से हिन्दी साहित्य के कोमल मधुर गीतकार के रूप में शलभ जी जाने जाते थे बाद में क्षेत्रीय इतिहासकार के रूप मे वे चर्चित हुए। कोसी अंचल के साहित्य, लोककथा एंव इतिहास के प्रति उनके योगदान को भी उन्होंने रेखांकित किया। श्री शलभ ने इस कथा संग्रह द्वारा कथाकार के रूप में अपने को दर्ज कराया है जो स्तुत्य है। ये कथाएं ऐतिहासिकता के साथ-साथ आधुनिकता का भी प्रतिनिधित्व करती है, कथाएं रोचकाता से पूर्ण हैं।

विभूति कुमार ने कहा कि लोकगीतों को कथा में पिरो कर इस कथाकार ने एक नवीन प्रयोग किया है। ‘महुआ बनजारिन’ इसका उत्कृष्ट प्रमाण है। भागलपुर दंगा से संबन्धित कथा ‘भाभी रुकसाना’ में साम्प्रदायिक सौहार्द का अद्भुत मिशाल दिखता है तथा ‘एक थी रूपा’ में ग्रामीण चित्रण को बड़ी कुशलतापूर्वक उकेरा गया है।
संचालन करते हुए अरविन्द श्रीवास्तव ने कहा कि श्री शलभ की साहित्यिक यात्रा एवं अनुसंधानात्मक कृतियों की चर्चा की एवं उपस्थित विद्वतजनों को धन्यवाद दिया।
– अरविन्द श्रीवास्तव/ मधेपुरा

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.