तरुण तेजपाल ने पत्रकारों को क्या नायाब रास्ता दिखाया है?

अभिषेक उपाध्याय

तहलका के मालिक तरुण तेजपाल क्या यही करते अगर “सेक्सुअल असाल्ट” का ये आरोप उनके संस्थान के किसी आम पत्रकार पर लगा होता? क्या उसे भी कहते कि जाओ छह महीने के लिए काम से हट जाओ, फिर लौट आना? या तहलका की मैनेजिंग एडीटर शोमा चौधरी जो खुद महिला हैं, क्या तब भी यही तर्क देती कि मुझे सही ढंग से क़दम उठाने के लिए समय चाहिए?

क्या तब भी बड़ी आसानी से कह देतीं कि ये तहलका का इंटर्नल मैटर है और उस आम पत्रकार ने माफी मांग ली है? जितना मैं समझ पा रहा हूं एक झटके में उस आम पत्रकार को नौकरी से निकाल फेंका जाता। यही नहीं महान आदर्शों की बात करने वाला तहलका प्रबंधन शायद उसके खिलाफ पुलिस में एफआईआर भी दर्ज करा देता ताकि सनद रहे। मगर यहां बात खुद तरुण तेजपाल पर आई है। उन्हीं के संस्थान में काम करने वाली उनकी बेटी की उम्र की पत्रकार ने उन पर सेक्सुअल असाल्ट का आरोप लगाया है जिसे वे “इरर ऑफ जजमेंट” जैसे एलीट शब्द का बेहतरीन इस्तेमाल करते हुए स्वीकार भी कर रहे हैं।

वे कह रहे हैं, “एक बुरे फ़ैसले, परिस्थिति को ठीक से न समझ पाने की वजह से यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई है. जो हमारे सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है. मैंने पहले ही बगैर किसी शर्त के संबंधित पत्रकार से अपने दुर्व्यवहार के लिए माफ़ी मांग ली है, लेकिन और प्रायश्चित करना चाहिए।” और इस प्रायश्चित के तौर पर वे छह महीनो के लिए तहलका के संपादक पद से इस्तीफा दे चुके हैं।

वो कहते हैं न कि शक्तिशाली अपने कानून खुद बनाता है और अपनी सजा भी खुद ही तय कर लेता है। तरुण तेजपाल ने बेटी की उम्र की उस लड़की पत्रकार के साथ दो बार यौन दुर्व्यवहार किया और अब उसका प्रायश्चित कर रहे हैं, ६ महीने के लिए तहलका के संपादक पद से इस्तीफा देकर। वाकई बहुत बड़ा त्याग, बलिदान और प्रायश्चित कर रहे हैं तरुण। अरे ! है कोई झा और श्रीमाली की तरह का इतिहासकार जो इस दौर की पत्रकारिता का इतिहास लिख रहा हो? अगर है, तो रिकार्ड कर ले तरुण तेजपाल के इस महान बलिदान को। आने वाली पत्रकारों की नस्ल के बहुत काम आएगा ये बयान।

तरुण ने पत्रकारों को क्या नायाब रास्ता दिखाया है। सेक्सुअल असाल्ट करो पहले। अपने बेटी की उम्र की लड़की से भी कर सकते हो। कोई दिक्कत वाली बात नहीं है। फिर इसे “इरर ऑफ जजमेंट” करार दो और छह महीनो के लिए पत्रकारिता छोड़कर गोवा के किसी कैसीनो में पत्तों पर दांव लगाना शुरु कर दो, जैसे जेम्स बांड के तौर पर पीयर्स ब्रॉस्नन अपनी फिल्म “डाइ अनादर डे” में लगाता है। ये “इरर आफ जजमेंट” भी अदभुत है। पहले राडिया टेप में पकड़े गए पत्रकारों को महसूस हुआ वो भी पकड़े जाने के बाद। अब तरुण तेजपाल को महसूस हो रहा है औऱ यहां भी लड़की के लिखित शिकायत करने के बाद। अब तो यही लगता है कि छत्तीसगढ़ के प्राइमरी स्कूल की जिस एक आम शिक्षिका सोनी सोरी का मुद्दा तहलका उठाता है, कहीं सोनी सोरी के गुनहगार भी तरुण तेजपाल के आदर्श का हवाला देते हुए खुद के प्रायश्चित का रास्ता न खोज लें। सोनी सोरी को माओवादियों के समर्थन के आरोप में जमकर यातनाएं दी गईं। उन्हें निर्वस्त्र किया गया। उन पर करंट छोड़ा गया। यहां तक उनके जननांगों में पत्थर तक डाल दिए गए। तेजपाल साहिब, वाकई डर लगता है कि आपका आदर्श अभी क्या क्या गुल खिलाएगा? और कितनो को रास्ता दिखाएगा?

(स्रोत- एफबी)

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