टेलीविजन के इस पवित्र दृश्य को अपने पेशे में कहां देख पाएंगे ?

रियो ओलंपिक में फाइनल मैच के बाद सिधु और कैरोलीना मरीन
रियो ओलंपिक में फाइनल मैच के बाद सिधु और कैरोलीना मरीन

रियो ओलंपिक में फाइनल मैच के बाद सिधु और कैरोलीना मरीन
रियो ओलंपिक में फाइनल मैच के बाद सिधु और कैरोलीना मरीन
ये कोई मास्टरी की नौकरी के लिए इंटरव्यू और परिणाम थोड़े ही न था कि सिन्धु सेलेक्ट हुई प्रतिभागी कैरोलीना मरीन का नाम घृणा से लेकर कहती- सब सेटिंग है, सब जुगाड़ है. भाई-भतीजावाद है, यूपी-बिहार कार्ड है.
वो दोनों दुनिया के सामने एक खुले मैंदान की जाबांज खिलाड़ी है. वो जानती है कि जीत-हार के बीच दोनों के बीच जो कॉमन चीज है- खून को पसीने के रंग में बदल देने की तरलता. वो जानती हैं कि दोनों समान रूप से यहां तक पहुंचने के लिए अपनी हड्डियां गलाती आई हैं. दोनों ने न जाने कितनी हजार रातें और कुंहासे से भरी सुबह इसके लिए झोंक दिया है.

…और यही कॉमन चीजें टेलीविजन स्क्रीन पर एक बेहद ही पवित्र दृश्य पैदा करती हैं. मरीन जीत के बावजूद जमीन पर लेट जाती हैं. भावुकता के इस झण में बेहद तरल हो जाती हैं और मैच हार चुकी सिन्धु उसे बेहद प्यार से उठाती है, सहारा देती है. हॉलीवुड के किसी भी सिनेमा से ज्यादा प्रभावी रोमांटिक दृश्य. हिन्दी सिनेमा के किसी भी मेलोड्रामा से कहीं ज्यादा असरदार नजारा.

इस दृश्य में कहीं भारत, कहीं स्पेन नहीं है. कहीं कोच, कहीं घर-नाते-रिश्तेदार नहीं है. कोई हाजीपुर-गाजीपुर, बलिया-बनारस कनेक्शन नहीं है. कहीं भाषा, कहीं इगो नहीं है. है तो बस दो मेहनतकश खिलाड़ियों के बीच की तरलता, वो संवेदनशीलता जिन्हें इनदोनों ने कितनी सख्ती से खेल के दौरान रोके होंगे. शायद उस वक्त पैदा भी नहीं हुए होंगे.

सिन्धु-मेरीन एक-दूसरे को हग करते हैं. ये हार-जीत से कहीं ज्यादा उस मेहनत का सम्मान है जिसके बारे में दोनों भली-भांति परिचित हैं. ये कोई इंटरव्यू से लौटी हुई कैंडिडेट तो नहीं थी जिसे इंटरव्यू के पांच दिन पहले से पता था कि किसका चयन होना है. बावजूद इसके वो चली गई क्योंकि जाकर वो बेशर्म नजारे की रेगुलर दर्शक बनी रह सके.

हम कहां कर पाते हैं एक-दूसरे का इस तरह सम्मान. हम कहां यकीन कर पाते हैं कि जिसका चयन हुआ है उसने हाड़-तोड़ मेहनत की होगी. अपनी कई रातें खराब की होंगी. एक-एक फुटनोट के लिए घंटों माथापच्ची की होगी. चयनित कैंडिडेट के लिए उसका गाइड देवता है, तारणहार है लेकिन दो कैंडिटेट के बीच कभी वो पवित्रता आ सकती है जो आज हमने एक स्पोर्टस चैनल पर देखी ? किसी भी धार्मिक चैनल से कहीं ज्यादा पवित्र दृश्य, किसी भी रोमांटिक फिल्म से ज्यादा भीतर तक भिगो देनेवाले विजुअल्स. किसी एक के आका ने हममे से कितनों के मन की पवित्रता को छीन लिया है. हम मरकर भी सिन्धु-मरीन नहीं हो सकते. हम बदनसीब पारदर्शिता के बीच की इस पवित्रता से कभी नहीं गुजर सकते.

@fb

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.