अजीत अंजुम ने भी स्वीकारा शहाबुद्दीन की महानता!

अजीत अंजुम, प्रबंध संपादक, न्यूज़24

अजीत अंजुम,प्रबंध संपादक,इंडिया टीवी-

shahabuddin-freeमुझे शहाबुद्दीन की महानता और महत्ता का इल्म नहीं था . अब हो गया है . मैं सार्वजनिक रूप से उनकी अहमियत और हैसियत को स्वीकार करता हूँ ..सलाम करता हूँ …आपकी हाँ में हाँ मिलाकर खुद को आपकी भीड़ में शामिल करता हूँ …शाहबुद्दीन एक महात्मा हैं, जिनपर दर्जनों मुकदमें ठोक दिए गए …सिवान के तीन भाइयों को हवा ने मारा और इस महान नेता को नामजद कर दिया गया …तीन बेटों की मौत पर उस पिता का मानसिक संतुलन बिगड़ गया और वो रहनुमा सरीखे शहाबुद्दीन पर इल्ज़ाम लगा बैठे ..उन्हें इलाज की ज़रूरत है ताकि वो संतुलित होकर एक रहनुमा की रहनुमाई कबूल करें और अपने बेटों के क़त्ल को ऊपर वाले की कारस्तानी मानकर अपना रुदन बंद करें …जेल से रंगदारी और सुपारी के झूठे इल्जाम लगाने वाले लोग आत्मग्लानि के साथ प्रायश्चित करें कि उन्होंने सिवान के महान को बदनाम करने की साजिश रची ,जिसकी वजह से उन्हें 11 साल सलाखों के पीछे काटना पड़ा ….शहाबुद्दीन को बेगुनाह साबित करने के लिए जो गवाह सबकुछ देखकर भी मुकर गए ,उन्हें आत्मज्ञान हुआ कि जो उन्होंने देखा/समझा था ,वो उनकी दृष्टि का दोष था , मृगतृष्णा थी . तभी तो गवाह बनने के अपने गुनाह से प्रायश्चित करने के लिए या तो वो अदालत पहुंचने से पहले गुम हो गए या फिर अपनी भूल को सुधार कर अदालत में आखिरी सच बता दिया कि कैसे शहाबुद्दीन जैसे जनसेवक को फंसा दिया गया.. वो तमाम लोग ,जो उनके खिलाफ लिखते बोलते रहे हैं , भूल सुधार करें …जयकारा जगाएं कि साहब बाहर आए हैं क्योंकि वो देश / काल और परिस्थिति की ज़रूरत हैं ..देखिए न , हजारों लोग जिसके स्वागत में उमड़े हों , सैकड़ों गाड़ियों का काफिला जिसके पीछे हो , इतने तोरण द्वार सजे हों , जिनकी गाड़ियों का सनसनाता क़ाफ़िला देखकर टोल नाकों के गेट अपने आप खुल गए हों …फेसबुक पर इतने पैरोकार हों , उन्हें आप गैंगस्टर और अपराधी कैसे कह सकते हैं …नीतीश सरकार को ये जांच करानी चाहिए कि एक जनसेवक पर 39 मुक़दमें कैसे लाद दिए गए …उन तमाम पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए ,जिनकी जांच की वजह से कई मामलों में उन्हें निचली अदालतों से सजा हुई . उन पुलिस वालों और सरकारी वकीलों का गांधी मैदान में अभिनन्दन होना चाहिए , जिनकी वजह से एक बेकसूर रिहा होकर सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ सिवान लौटा है …सिवान के इस रॉक स्टार को कोई गैंगस्टर कैसे कह सकता है

और हाँ , मैं अब से साहेब शहाबुद्दीन से लेकर ऐसे हर उस शख्स की बंदगी करना चाहता हूँ , जिन्हें कानून ने बहुत सताया फिर भी वो बरी होकर बाहर निकले …चाहे तो माननीय सूरजभान हों या रामा सिंह . सुनील पांडेय हों या मुन्ना शुक्ला और तो और आदरणीय अतीक अहमद और मुख़्तार अंसारी से लेकर बृजेश सिंह तक मेरा सलाम पहुंचे . हम जैसे कूढ़मगज और कमजर्फ लोगों ने इन्हें अब तक गलत समझा…जनता तो अपने जनसेवक को पहचानती ही है,तभी तो जेल से रिहा होने के बाद इतने तोरण द्वार सजते हैं , उनके इंतजार में भीड़ की शक्ल में हज़ारों लोग जमा होते हैं .उनकी एक झलक पाने को कोई पेड़ पर चढ़ जाता है तो कोई सेल्फी विथ शहाबुद्दीन के लिए भीड़ में सुराख़ करते हुए उन तक पहुँच जाता है ..कोई उनसे लिपट कर अपने मोबाइल के लैंस की जद में उन्हें खींचकर ले आता है…तो जयकारा लगाकर ही ख़ुश हो लेता है …सेल्फ़ी लेकर ख़ुद को धन्य समझने वाली जनता की नब्ज़ को हम नहीं समझ पाए तो क़सूर हमारा ही है न ?

अपने तीन बेटों के क़त्ल के बाद से मातम मना रहे चंदा बाबू को सिवान के चौक चौराहों पर छाती पीटकर क़बूल करना चाहिए कि उन्होंने साज़िशन शहाबुद्दीन सरीखे जनसेवक पर ग़लत इल्ज़ाम लगाया.उन्हें बदनाम किया …और अगर चंदा बाबू ऐसा न करें तो शहाबुद्दीन को मानहानि का मुक़दमा ठोक देना चाहिए …शहाबुद्दीन की बदनामी के लिए मीडिया के तमाम साथियों को क्या करना चाहिए …ये भी तय होना चाहिए. @fb

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